
देख, दुनिया की ऐसे अदावत न कर।
आसमाँ से तेरी दोस्ती क्या हुई,
सोच अपनों की ऐसे खिलाफत न कर।
चाँद तारों की ऐसे खिलाफत न कर,
धूप सूरज की ऐसे खिलाफत न कर।
ठीक है तेरी दौलत की गिनती नही,
क्या पता है समय का दिखावट न कर।
हाथ में तेरे बेशक है ताकत सही,
गैब से थोडा डर तू शरारत न कर।
प्यार के बोल मीठे हैं अनमोल हैं,
और इस के सिवा तू लिखावट न कर।
जान ले तेरे प्रीतम की मूरत है क्या
छोड़ दे और चीजें इबादत न कर।
8 टिप्पणियाँ
nice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
सुंदर...गीतिका...
जवाब देंहटाएंआभार ...
बधाई स्वीकार करें ... व्यथित जी..
सादर
गीता.
एक अच्छी गज़ल पढ़ने को मिली. हालांकि गज़ल के व्याकरण की पूरी परवाह नहीं की गई पर फिर भी गज़ल बढ़िया है.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना. निवेदन यह की यह गीतिका नहीं है. गीतिका हिंदी पिंगल का एक मात्रिक छंद है जिसका रचना-विधान बिलकुल अलग है. इसे हिंदी ग़ज़ल या मुक्तिका कहना उचित होगा चूंकि इसके हर द्विपदी अन्यों से अलग भाव-भूमि पर होने के कारण मुक्त है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंkhubsurat rachna... chhote beher mein janch rahee hai.. aacharya sanjiv ki baat par bhi gaur karein. :)
जवाब देंहटाएंBahut hi khoobsoorat ghazal pesh ki hai. sahitya shilpi ka aabhaar ise padhwaane ke liye
जवाब देंहटाएंutkrist rachna sir,kya khoob likha hai--- badahai
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.