
चाँदनी ने अभिभूत किया, आँख मेरी पानी हुई....
अम्बर के तारों को गिन कर हो रहा था इंतज़ार
अँधियारे में डोलते वृक्षों सा दिल था मेरा बेक़रार
प्रीत की बातें, कौन कहता है कि बस पुरानी हुई
तुम आए, चाँद साथ लाए, रात मेरी सुहानी हुई....
स्वप्नों में रोज़ नए रंग- रूप धर कर सताते हो
रूठती- इठलाती मैं, मुस्करा कर तुम मनाते हो
तेरी इन्हीं शरारतों,अनुभूतियों की मैं दीवानी हुई
तुम आए, चाँद साथ लाए, रात मेरी सुहानी हुई....
सुधियों में तेरा वास है तो ऐसा लगता है मुझे
सिर्फ तुम्हीं तो हो वो जो अपना कहते हो मुझे
चाँदनी सी पावन तेरी सोच तेरी ही निशानी हुई
तुम आए, चाँद साथ लाए, रात मेरी सुहानी हुई....
5 टिप्पणियाँ
SUDHA DHEENGRA KEE GEETANUBHUTI
जवाब देंहटाएंPRIYKAR LAGEE HAI .
प्रेम रस से पूर्ण
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति...
बधाई...सुधा जी...
" प्रेम रस की धार अंतर में बहे,
और फिर ये मन ना जाने क्या सहे |"
सस्नेह
गीता
प्रियतम आगमन और प्रेम अनुभुति का मनभावन वर्णन समाहित किये रचना
जवाब देंहटाएंतुम आए, चाँद साथ लाए, रात मेरी सुहानी हुई....
जवाब देंहटाएंलाजवाब कल्पना
सरस-सार्थक गीति रचना...
जवाब देंहटाएंसुधा सुधि की ज़िंदगी दे बंदगी बन गयी है.
कौन किसको अधिक चाहे शर्त भी ठन गयी है..
है नहीं मौसम, न ऋतु है मगर अनहोनी हुई-
दिवाली के संग होली 'सलिल' की मन गयी है..
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