
रोटी खाने को कम है बची थालियाँ
बात रोने की है और बजी तालियाँ
जिन्दगी में भरोसा न टूटे कभी
अच्छी बातें भी लगती तभी गालियाँ
फर्क ससुराल, शमशान में कुछ नहीं
खोजने से जहाँ न मिली सालियाँ
थी हुकुमत की कोशिश नहर के लिए
सोचाता हूँ वहाँ क्यों बनी नालियाँ
बदले हालात, जज्बात दिल में अगर
बिन सुमन के कहीं क्या सजी डालियाँ
बात रोने की है और बजी तालियाँ
जिन्दगी में भरोसा न टूटे कभी
अच्छी बातें भी लगती तभी गालियाँ
फर्क ससुराल, शमशान में कुछ नहीं
खोजने से जहाँ न मिली सालियाँ
थी हुकुमत की कोशिश नहर के लिए
सोचाता हूँ वहाँ क्यों बनी नालियाँ
बदले हालात, जज्बात दिल में अगर
बिन सुमन के कहीं क्या सजी डालियाँ
5 टिप्पणियाँ
रोटी खाने को कम है बची थालियाँ
जवाब देंहटाएंबात रोने की है और बजी तालियाँ
अति सुन्दर आभार।
सुंदर मनो भाव लिए रचना
जवाब देंहटाएंरोटी खाने को कम है बची थालियाँ
जवाब देंहटाएंबात रोने की है और बजी तालियाँ
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थी हुकुमत की कोशिश नहर के लिए
सोचाता हूँ वहाँ क्यों बनी नालियाँ
सुमन जी आभार
Shyamal Suman ji ghazal sadagi mein khud ko sajaati hai hamesha ki tarah jahan unki fikro-fan rekhankit hota hai
जवाब देंहटाएंबदले हालात, जज्बात दिल में अगर
बिन सुमन के कहीं क्या सजी डालियाँ
Gazal ka aagaaz aur makte ka nikhar apne naam ke saath behad khoobsoorat laga..
आप सबके प्रति समर्थनक हेतु हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
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