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वृक्ष और मनुष्य [कविता] - कविता गौड

मनुष्य कभी वृक्ष नहीं बन सकता
क्योंकि उसमें वो त्याग और परोपकार
का भाव नहीं होता

मनुष्य कभी वृक्ष नहीं बन सकता
क्योंकि उसमें दूसरों द्वारा पहुँचाए कष्ट
सहने की ताकत नहीं होती

मनुष्य कभी वृक्ष नहीं बन सकता
क्योंकि वह अपनी जड़ें खोदने वाले
को कभी शरण नहीं देता

मनुष्य कभी वृक्ष नहीं बन सकता
क्योंकि वह करता नहीं क्षमा
याद रखता है और बदला लेता है

मनुष्य कभी वृक्ष नहीं बन सकता
क्योंकि अपना सब कुछ मनुष्यों के
लिए अर्पण करने वाले वृक्ष को भी
मनुष्य नहीं बख़्शता
काट डालता है
क्योंकि वह जलता है वृक्ष की नम्रता से
वृक्ष की कर्त्तव्य-निष्ठा से

मनुष्य कभी वृक्ष नहीं बन सकता

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9 टिप्पणियाँ

  1. मनुष्य कभी वृक्ष नहीं बन सकता
    क्योंकि अपना सब कुछ मनुष्यों के
    लिए अर्पण करने वाले वृक्ष को भी
    मनुष्य नहीं बख़्शता
    काट डालता है
    क्योंकि वह जलता है वृक्ष की नम्रता से
    वृक्ष की कर्त्तव्य-निष्ठा से

    वृक्ष को बचाने का संकल्प आज सभी के लिये कर्तव्य है। इस कविता के लिये कविता जी को धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. सही कहा आपने कि मनुष्य कभी वृक्ष नहीं बन सकता

    जवाब देंहटाएं
  3. mnushy vriksh nhi bnta thik hai pr swami ram krishn prm hns bnta hai jo ghas ki jden ukhdne pr us ke nishan swym ki pith pr anubhv krta hai
    yh kevl jankari hai
    rchna sundr hai vishy ka achchha chynhai

    जवाब देंहटाएं
  4. वृक्ष और मनुष्य की तुलनात्मक सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. मनुष्य कभी वृक्ष नहीं बन सकता
    क्योंकि अपना सब कुछ मनुष्यों के
    लिए अर्पण करने वाले वृक्ष को भी
    मनुष्य नहीं बख़्शता
    काट डालता है
    क्योंकि वह जलता है वृक्ष की नम्रता से
    वृक्ष की कर्त्तव्य-निष्ठा से

    भाव अच्छे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  6. आप ने बहुत सही कहा मनुष्य कभी वृक्ष नही बन सकता

    जवाब देंहटाएं

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