
इंसा का रूख कुछ और होता ;
सुप्त जागृति को मिलती लय
जीवन बन जाता संगीतमय ;
न रोता वो कल का रोना
सीख लेता आज में जीना ;
न सताती भविष्य की चिंता
दुख में पल पल न गिनता ;
यूं तो वो हर रोज ही जगता
अन्दर के चक्षु बन्द ही रखता ;
देखता सिर्फ भूत और भविष्य
वर्तमान का ना होता दृष्य ;
समझ को कर तालों में बन्द
इच्छाओं में हो जाता नज़रबन्द ;
ऐसे ही हर दिन होता सवेरा
भ्रम में होता खुशियों का डेरा ;
न जाना वो सूर्य का सन्देश
धूप और छाँव का समावेश !!
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सुमन मीत
4 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
समझ को कर तालों में बन्द
जवाब देंहटाएंइच्छाओं में हो जाता नज़रबन्द ;
ऐसे ही हर दिन होता सवेरा
भ्रम में होता खुशियों का डेरा ;
न जाना वो सूर्य का सन्देश
धूप और छाँव का समावेश
मोहक कविता है
सुमधुर सुमन गीत
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.