
छूट गये वनपाखी, रात के बसेरे
जाल धर निकल पडे, मगन मन मछेरे
पानी में संत चुप खडे उजले उजले,
कौन सुनेगा मछली व्यर्थ किसे टेरे
कानों से टकराती सिसकियाँ नदी की,
पुरवा जब बहती है रोज मुँह अंधेरे
रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओरे मन
ना चंदा के घर, ना सूरज के डेरे
जुडे ही नहीं जिद्दी, किसी वंदना में,
कैसे समझाऊं मैं हाँथों को मेरे
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धूप में छांव लुटा दूं तो चलूं
और कुछ दर्द चुरा लूं, तो चलूं,
आँसुओं को समझा लूँ, तो चलूं।
दर्द बे-ठौर हो गये हैं जो
उन्हें हृदय में बसा लूँ, तो चलूँ।
गुलाब की सुगंध-सा बह कर,
भोर का मन महका दूँ, तो चलूँ।
ठहरो, किरनों की गठरी को,
ठीक से सिर पे उठा लूँ, तो चलूँ।
ज़िन्दगी यह तपती दोपहरी,
धूप में छांव लुटा दूँ, तो चलूँ।
जिसे डुबा न सके साँझ कोई,
ऎसा इक सूर्य उगा लूँ, तो चलूँ।
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काट रहे हैं फीते लोग
उन्मन हैं मनचीते लोग,
वर्तमान के बीते लोग।
भीतर भीतर मर मर कर,
बाहर बाहर जीते लोग।
निराधार खून देख कर
घूंट खून के पीते लोग।
और उधर जलसों की धूम
काट रहे हैं फीते लोग।
भाव शून्य शब्दों का कोश,
बाँट रहे हैं रीते लोग।
9 टिप्पणियाँ
... sundar prastuti !!
जवाब देंहटाएंvery impressive Gazals.
जवाब देंहटाएंसवेरे सवेरे .....
जवाब देंहटाएंजुडे ही नहीं जिद्दी, किसी वंदना में,
कैसे समझाऊं मैं हाँथों को मेरे
.....
ज़िन्दगी यह तपती दोपहरी,
धूप में छांव लुटा दूँ, तो चलूँ।
जिसे डुबा न सके साँझ कोई,
ऎसा इक सूर्य उगा लूँ, तो चलूँ।
.......
निराधार खून देख कर
घूंट खून के पीते लोग।
और उधर जलसों की धूम
काट रहे हैं फीते लोग।
.......
क्या क्या उद्धृत करू .. नि:शब्द स्वांस रोके सा ....!
बाबा जगदलपुरी को पढ़्ना प्रभात की किरणों का आचमन है
कोटिश: नमन इस सद्य प्रेरणा पुरूष को
अच्छी गज़ल...बधाई
जवाब देंहटाएंऔर उधर जलसों की धूम
जवाब देंहटाएंकाट रहे हैं फीते लोग।
भाव शून्य शब्दों का कोश,
बाँट रहे हैं रीते लोग।
कमाल की पंक्तियाँ
nice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
भाव शून्य शब्दों का कोश,
जवाब देंहटाएंबाँट रहे हैं रीते लोग।
लाला जगदलपुरी की गज़लों की उँचाई बहुत अधिक है।
भीतर भीतर मर मर कर,
जवाब देंहटाएंबाहर बाहर जीते लोग।
भाव शून्य शब्दों का कोश,
बाँट रहे हैं रीते लोग।
वाह....भावों का इतना सुंदर रूप आत्मा तक को तृप्त करता चला जाता है....आभार साहित्यशिल्पी...
एक प्रभावी सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंमेरे शब्दों में
उन्हीं के पांवो में पडी थी गुलामी की सांकल
देश के लिये जिन्हें आजादी के बिगुल बजाने थे
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.