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मिमियाती ज़िन्दगी, दहाडते परिवेश [ग़ज़ल संग्रह से रचनायें -6] - लाला जगदलपुरी

रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओरे मन

छूट गये वनपाखी, रात के बसेरे
जाल धर निकल पडे, मगन मन मछेरे

पानी में संत चुप खडे उजले उजले,
कौन सुनेगा मछली व्यर्थ किसे टेरे

कानों से टकराती सिसकियाँ नदी की,
पुरवा जब बहती है रोज मुँह अंधेरे

रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओरे मन
ना चंदा के घर, ना सूरज के डेरे

जुडे ही नहीं जिद्दी, किसी वंदना में,
कैसे समझाऊं मैं हाँथों को मेरे
-----

धूप में छांव लुटा दूं तो चलूं

और कुछ दर्द चुरा लूं, तो चलूं,
आँसुओं को समझा लूँ, तो चलूं।

दर्द बे-ठौर हो गये हैं जो
उन्हें हृदय में बसा लूँ, तो चलूँ।

गुलाब की सुगंध-सा बह कर,
भोर का मन महका दूँ, तो चलूँ।

ठहरो, किरनों की गठरी को,
ठीक से सिर पे उठा लूँ, तो चलूँ।

ज़िन्दगी यह तपती दोपहरी,
धूप में छांव लुटा दूँ, तो चलूँ।

जिसे डुबा न सके साँझ कोई,
ऎसा इक सूर्य उगा लूँ, तो चलूँ।
-----

काट रहे हैं फीते लोग

उन्मन हैं मनचीते लोग,
वर्तमान के बीते लोग।

भीतर भीतर मर मर कर,
बाहर बाहर जीते लोग।

निराधार खून देख कर
घूंट खून के पीते लोग।

और उधर जलसों की धूम
काट रहे हैं फीते लोग।

भाव शून्य शब्दों का कोश,
बाँट रहे हैं रीते लोग।

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9 टिप्पणियाँ

  1. सवेरे सवेरे .....

    जुडे ही नहीं जिद्दी, किसी वंदना में,
    कैसे समझाऊं मैं हाँथों को मेरे
    .....
    ज़िन्दगी यह तपती दोपहरी,
    धूप में छांव लुटा दूँ, तो चलूँ।

    जिसे डुबा न सके साँझ कोई,
    ऎसा इक सूर्य उगा लूँ, तो चलूँ।
    .......

    निराधार खून देख कर
    घूंट खून के पीते लोग।

    और उधर जलसों की धूम
    काट रहे हैं फीते लोग।
    .......


    क्या क्या उद्धृत करू .. नि:शब्द स्वांस रोके सा ....!

    बाबा जगदलपुरी को पढ़्ना प्रभात की किरणों का आचमन है

    कोटिश: नमन इस सद्य प्रेरणा पुरूष को

    जवाब देंहटाएं
  2. और उधर जलसों की धूम
    काट रहे हैं फीते लोग।

    भाव शून्य शब्दों का कोश,
    बाँट रहे हैं रीते लोग।

    कमाल की पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं
  3. भाव शून्य शब्दों का कोश,
    बाँट रहे हैं रीते लोग।
    लाला जगदलपुरी की गज़लों की उँचाई बहुत अधिक है।

    जवाब देंहटाएं
  4. भीतर भीतर मर मर कर,
    बाहर बाहर जीते लोग।


    भाव शून्य शब्दों का कोश,
    बाँट रहे हैं रीते लोग।

    वाह....भावों का इतना सुंदर रूप आत्मा तक को तृप्त करता चला जाता है....आभार साहित्यशिल्पी...

    जवाब देंहटाएं
  5. एक प्रभावी सशक्त रचना.

    मेरे शब्दों में
    उन्हीं के पांवो में पडी थी गुलामी की सांकल
    देश के लिये जिन्हें आजादी के बिगुल बजाने थे

    जवाब देंहटाएं

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