
पहला चित्र
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नये साल की बधाई पर एक बात तो सोचें कि नये साल में नया क्या है, भ्रष्टाचार वही पुराना है, घोटालों का पुराना तराना है। नेताओं की करतूतें वही हैं, दुर्घटनाएं भी वैसी ही हैं, कोहरा भी हवाई उड़ानों को रोकता हुआ – मतलब, तो सब वही पुराना है। बस संख्या ही तो आगे बढ़ गई है, फिर भी बधाई।
संख्या तो रोज ही आगे बढ़तर है बल्कि प्रति सप्ताह, दिनों के साथ सप्ताह और महीने में एक माह आगे बढ़ जाता हे। अगर नये की बधाई दी जानी चाहिए तो रोज बधाई क्यों नहीं देते हैं हम।
और तो और सूरज वही पुराना है। उसमें तनिक सा बदलाव नहीं है। वही सूरज जो बादलों के आगे आने से मुंह छिपा लेता है। जब वैसा ही सूरज आज भी है तो फिर नये साल में नया क्या है।
नौकरियां और धंधे वही पुराने हैं। पद वही हैं, प्रतिष्ठाएं वही हैं। ऐसा भी तो नहीं है कि जो जी एम है वो चेयरमैन बन गया हो। चपरासी बन गया हो हैडक्लर्क। रिसेप्शनिस्ट बन गई हो एयर होस्टेस।
किराए पर रहने वाले बन गए हों मकान मालिक। झुग्गियों में रहने वाले फ्लैटों में आ गए हों। रिक्शा चलाने वाले ऑटो चलाने लगे हों, ऑटो चलाने वाले टैक्सी और टैक्सी चालक ट्रक, ट्रक चालक रेल और रेल चालक उड़ाने लगे हों हवाई जहाज। जब ऐसा कुछ नहीं हुआ है तो फिर नये साल में नया क्या है।
ऐसा भी नहीं लग रहा है जो लिखते हैं कविताएं उन्होंने कहानी लिखना शुरू कर दिया हो, कहानीकार ने उपन्यास और उपन्यास लेखक लिखने लगे हों शोध प्रबंध। पाठक बन गये हों लेखक और लेखक बन गये हों संपादक। ब्लॉग बन गई हों वेबसाइटें। मोबाइल बदल चुके हों रातों रात लैपटाप में।
अखबार सारे बदल गए हों, नीले पीले लाल सौ, पांच सौ और एक हजार के करेंसी नोट में। जब ऐसा कुछ नहीं हुआ है तो फिर काहे का नया साल बंधु।
उतारो साल की खाल – नहीं उतार पा रहे तो फिर काहे का नया साल। और बात कीजिए, चिंतन कीजिए और इसके आगे और चिंतन कीजिए। जब कुछ नया मिल जाए तब बधाई लीजिए और दीजिए।
कोहरा भी हरा नहीं सफेद है। कोहरा न हरा हो पर बन जाए रूई, और उसे भर कर गर्मागर्म गद्दे और बनाई जायें रजाई, और उसी से ठंड से बच जाएं, तब तो कोई एक मुद्दा ऐसा होता कि दें और लें बधाई, जब ओढ़ें गर्मागर्म रजाई।
पुरस्कार देने वाले पुरस्कार ले रहे हों और लेने वाले देने वाले बन जायें – तब तो नया साल मनायें, बधाई गायें, नहीं तो यूं ही क्यों गुनगुनायें।
दूसरा चित्र
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जिस तेजी से जा रहा है, उससे भी दोगुनी तेजी से आ रहा है। बस, फर्क इतना भर है कि पुराना जा रहा है और नया आ रहा है। पर जो पुराना जा रहा है, वो जब आया था, तब बिल्कुल नया था। उसी प्रकार वो नया, अब पुराना होकर लौट रहा है। यह जाना वापसी है क्या, वैसे होती नहीं है किसी की वापसी, जो आता है नया, वो एक दिन जरूर पुराना हो जाता है। यही हाल विचारों का है। इधर नया विचार आया, उधर पुराना भी मौजूद रहता है। जो उससे परिचित नहीं हैं, मिले नहीं हैं, उनके लिए नएपन के साथ और जो परिचित हैं, पहले मिल चुके हैं, उनसे अपनेपन के साथ। गौर कीजिएगा, यहां पर पुरानापन नहीं कहा गया है। पुरानापन वास्तव में अपनापन है, नयेपन में अपनेपन को तलाशा जाता है जबकि विचार पुराना हो या नया हो, सबमें अपनेपन का अहसास पुराने को भी नया बनाता चलता है।
जितने भी बेहतर विचार हैं, वे सदा नये रहते हैं जबकि पुराने विचार, बुरे हैं तो सब चाहते हैं कि इनसे पीछा छूटे या इन्हें भुला दिया जाये। पर ऐसा इसलिए नहीं हो पाता है क्योंकि बुराई या बुरे विचार बहुत तेजी से प्रचार-प्रसार पाते हैं। एक गंदी मछली तालाब के सारे पानी को बहुत तेजी से गंदा कर देती है जबकि सिर्फ एक गंदी मछली के सिवाय, तालाब में बाकी सब अच्छा है, पर पानी अच्छा नहीं रह पाता है। यह बुराई का वर्चस्व है, उस तालाब में और पांच नदियों का पानी डाल दिया जाये परंतु उस तालाब का पानी उस एक गंदी मछली की वजह से गंदा ही रहेगा।
बुरा बनकर बदनामी तो मिलती है, खूब तेजी से मिलती है जबकि अच्छा बनकर या नेक काम करके जो नेकनामी मिलती है, वो स्थाई रहती है। जब तक कोई बुराई, उस पर हमला कर अच्छाई को बुरे में बदल, सनसनी नहीं पैदा करती है। इसी प्रकार समाज में अच्छाईयां रची-बसी हुई हैं परन्तु उनका इसलिए मालूम नहीं चलता है क्योंकि अच्छाईयों से किसी का नुकसान नहीं होता है जबकि बुराई से नुकसान होते ही वो सबकी निगाह में आ जाती है।
अच्छाईयों से भरे इस संसार में सभी अच्छे रहें, इसी कामना के साथ, समस्त प्राणियों को नव वर्ष की शुभकामनाओं की बरसातमय मंगलकामनायें।
तीसरा चित्र
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गया साल सिर्फ घोटालों का नहीं रहा है। खेलों का नहीं रहा है। कितनों की ही उम्मीदें पूरी करके गया है। गया साल बीता नहीं है, रीता भी नहीं है, खामोशी के साथ गया है पर उसने कहीं पर भी सन्नाटा नहीं छोडा है। सब्र का पाठ पढ़ाया है, सब्र करना सिखलाया है। तकनीक तेजी से बदल रही है। जितनी तेजी से तकनीक बदल रही है। लगता है कि बटन दबाने भर की देर है। बटन दबाने में जरा सा विलम्ब हुआ तो बटन दबाने से मिलने वाला नतीजा बदल जायेगा। तकनीक इस तेजी से बदल रही है। सब घट रहा है, फिर भी बटन दबाना अब घाटे का सौदा (डील) नहीं रहा है।
कितने ही फ्लाईओवर बना लिये, पर जाम ने कम नहीं होना था, सो नहीं हुआ। कॉमनवेल्थ गेम्स सिर्फ घोटालों के लिए ही चर्चा में हैं, ऐसा मुगालता मत पालें। जितनी रचनात्मक, सर्जनात्मक ऊष्मा इससे उत्पन्न हुई है, उतनी बीते कई सालों में नहीं मिली है। गया साल मिसालों का साल रहा है। साल जो सालता रहे – घोटालों के लिए, यह साल नि:संदेह सालता स्थाई भाव की तरह। पिछले साल कई तरह के भावों में गिरावट और बढ़ोतरी हुई है।
राजधानी मेट्रोयुक्त हो गई परंतु भीड़मुक्त नहीं हो सकी। इस भीड़ का निदान पिछले कई दशकों में बने फ्लाईओवर नहीं कर पाये, रोजाना बनती-बढ़ती-फैलती सड़कें नहीं कर पाईं। उसे हवा में या जमीन में मुंह छिपाने वाली मेट्रो भला कैसे कर पाती। अब मेट्रो झटके मार रही है, कभी झटके मार कर रूक जाती है। कभी झटके मार कर चल देती है। कभी झटका मार कर लपक लेती है। मेट्रो की झटकन राजधानीवासियों के सब्र को बढ़ा रही है।
12 टिप्पणियाँ
तीनों चित्र अच्छे बने हैं। नये साल की आपको बधाई अविनाश जी।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीतेश जी, आपको भी 10 से 11 में प्रवेश के लिए दिली मुबारकबाद। मानवसेवा की रूखी-सूखी मेवा सबको पसंद है
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
अविनाश जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं और नये साल में इसी तरह जारी रहें।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आलोक जी और नंदन जी।
जवाब देंहटाएंप्याजो की जवानी का भी आनंद लूटिएगा
सार्थक आलेख के लियें बधाई आपको अविनाश जी....
जवाब देंहटाएंनव वर्ष में लेखनी और भी निखरकर आये इसके लियें शुभ कामनाएँ...
गीता पंडित
सच कहा बस कलैन्डर बदलते हैं... हालात नहीं..
जवाब देंहटाएंऔर अपने लिये
"वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढा रहा था"
गीता पंडित जी शुभकामनाओं की शमा जलाते रहिएगा
जवाब देंहटाएंऔर मोहिन्दर कुमार जी सच को सच की तह तक पहुंचाने के लिए आपका प्रयास सराहनीय है तथा अभिषेक सागर जी तो विचारों की ऐसी गागर हैं, कि वे सागर नहीं, महासागर हैं।
किशोरों और युवाओं के लिए उपयोगी ब्लॉगों की जानकारी जल्दी भेजिएगा
अविनाश वाचस्पति जी को नये सालकी शुभकामनायें। सभी दृश्य अच्छे हैं।
जवाब देंहटाएंसुषमा जी शुक्रिया।गर जानकारी में हो तो किशोरों और युवाओं के लिए उपयोगी ब्लॉगों की जानकारी जल्दी भेजिएगा
जवाब देंहटाएंएक अच्छे आलेख और नये साल की शुभकामना साथ में स्वीकार कीजिए
जवाब देंहटाएंस्वीकार लीं अनन्या जी, लेकिन देखा कि आपने शब्दों का बहना रोक रखा है। शब्दों के बहाव को रोकिये मत, उन्हें उनके सहज प्रवाह में बहने दीजिए, अगर कोई तकनीकी दिक्कत हो तो अवश्य बतलाइयेगा। शुक्रिया शुभकामनाओं के लिए और आपके लिए खूब सारी शुभ मंगलकामनायें। सुन सकती हैं इस बातचीत को गिरीश बिल्लौरे और अविनाश वाचस्पति की वीडियो बातचीत
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.