
लिखी है मैंने कहानी एक
खुद अपने खून से,
झेले हैं ....
अपनों से अपमान
और परायों का दर्द
कल्पना नहीं,
और परायों का दर्द
कल्पना नहीं,
यथार्थ को ...
दी है चुनौती
बार बार .....
उगाये हैं,
हथेली पर कैक्टस
चला हूं नंगे पांव
तपती हुयी रेत पर
उपदेश ….,
सभाओं में देना
आसान है
किन्तु मैं …,
'एक आम आदमी'
यह जिन्दगी …
उगाये हैं,
हथेली पर कैक्टस
चला हूं नंगे पांव
तपती हुयी रेत पर
उपदेश ….,
सभाओं में देना
आसान है
किन्तु मैं …,
'एक आम आदमी'
यह जिन्दगी …
बिना टूटे ....
हिम्मत के साथ जी है
झोंकना पड़ता है
हिम्मत के साथ जी है
झोंकना पड़ता है
खुद को कई बार
अपने ही हांथों
बहुधा बरबादी की
अंधेरी डगर पर
अपने ही हांथों
बहुधा बरबादी की
अंधेरी डगर पर
बुद्धिजीवियों का....
'मैं तो करता हूं सम्मान'
किन्तु …,
उल्लू बना देते हैं प्राय:
'मैं तो करता हूं सम्मान'
किन्तु …,
उल्लू बना देते हैं प्राय:
'कुछ लोग'
प्रशंसा के दो शब्द कह कर
मान और अपमान में
कोई अन्तर नहीं है 'कान्त'
देखना है …?
तो बस जाओ
अवहेलानाओं के ...
इस मुहल्ले में आकर
प्रशंसा के दो शब्द कह कर
मान और अपमान में
कोई अन्तर नहीं है 'कान्त'
देखना है …?
तो बस जाओ
अवहेलानाओं के ...
इस मुहल्ले में आकर
4 टिप्पणियाँ
SHRIKANT KO UNKEE MAN-MASTISHK
जवाब देंहटाएंKO JHAKJHORNE WAALEE KAVITA KE
LIYE BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
बुद्धिजीवियों का....
जवाब देंहटाएं'मैं तो करता हूं सम्मान'
किन्तु …,
उल्लू बना देते हैं प्राय:
'कुछ लोग'
प्रशंसा के दो शब्द कह कर
मान और अपमान में
कोई अन्तर नहीं है 'कान्त'
देखना है …?
तो बस जाओ
अवहेलानाओं के ...
इस मुहल्ले में आकर
बिना मुखौटा के सीधे सादे शब्दों में
मन की वेदना को आपने सुंदर तरीके से उकेरा है...
जो हर लेखक की,
हर कवि की पीड़ा है...आभार आपका श्रीकान्त जी....और बधाई सुंदर रचना के लियें...
लेखनी चलती रहे...शुभ कामनाये...
" नहीं लिखती हूँ तो शब्द मुझे आहत करते हैं,
इसीलियें लिखना तो मेरी मजबूरी है,
... गीता पंडित
बुद्धिजीवियों का....
जवाब देंहटाएं'मैं तो करता हूं सम्मान'
किन्तु …,
उल्लू बना देते हैं प्राय:
'कुछ लोग'
प्रशंसा के दो शब्द कह कर
बहुत अच्छी कविता
haasya, samvvedna,sandesh,sabhi chupe hai is rachna main---dhero badahai
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.