
कितने भी गहरे
चले जाएँ बेशक बीज
तो भी नष्ट नही होते हैं वे
धरती माँ अपनी गोद में
दुलारती रहती है उन्हें
लाड लड़ती रहती है
और उसी से प्रफुल्लित
हो जाता है बीज
उसी प्यार दुलार और स्नेह से
बड़ा हो जाता है वह
कलियाँ खिलाता है
फूल महकाता है
मधुरस टपकता है
दुलार प्यार और स्नेह से
पला बढ़ा बीज|
1 टिप्पणियाँ
सुंदर रचना...आभार व्यथित जी....
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.