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प्यार और दुलार [कविता] - डॉ. वेद व्यथित

मिट्टीके नीचे
कितने भी गहरे
चले जाएँ बेशक बीज
तो भी नष्ट नही होते हैं वे
धरती माँ अपनी गोद में
दुलारती रहती है उन्हें
लाड लड़ती रहती है
और उसी से प्रफुल्लित
हो जाता है बीज
उसी प्यार दुलार और स्नेह से
बड़ा हो जाता है वह
कलियाँ खिलाता है
फूल महकाता है
मधुरस टपकता है
दुलार प्यार और स्नेह से
पला बढ़ा बीज|

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