
पहला दृश्य
वैसे तो मैं बिना सींग की गाय के समान बिल्कुल सीधा सादा आदमी समझा जाता था किन्तु कुछ समय पूर्व ही मेरा नाम हिन्दुस्तान के बदमाश आदमियों की सूची में जोड़ लिया गया था| अभी अभी मुझे छटे हुये बदमाशों की जमात में सूचीबद्ध कर लिया गया है|मेरा नाम बड़ी इज्जत से लिया जा रहा है| सर्व प्रथम शहर के जागरूक चोरों ने मुझे बेईमान एवं बदमाश सिद्ध किया| देखिये कैसे किया| मैं अपने बेड रूम में सो रहा हूं|बगल में पलंग पर पचास बसंत पार कर चुकनेवाली मेरी प्यारी प्रियतमाजी घोर निद्रा में लीन हैं|कमरे में चोर घुस आये हैं| वे गिनती में दो हैं|
"इस कमरे में माल कहाँ होगा"एक चोर फुसफुसाता है|
"अल्मारी में होगा,वह रही अल्मारी|"
"किन्तु चाबी कहाँ है?"
"पलंग पर उसके सिरहाने होगी|"
"मगर साला यह तो तकिये पर सिर रख कर सो रहा है,बदमाश मालूम पड़ता है|"
"चाबी तकिये के नीचे होगी|"
"लगता है कि छटा हुआ आदमी है,तकिये को कैसे हाथों के नीचे दबाकर रखा है|"
मैं अपनी साहित्यिक श्वान निद्रा में शयन करने का आदी हूँ|उन एक जोड़ी देशी चोरों की गतिविधियों का दृश्य पान मन ही मन हनुमान चालिसा पढ़ते हुये कर रहा था|
"पूरा फोर ट्वंटी लगता है|"
"लगता है कि यह सोने का ढोंग कर रहा है|"
"अधखुली आखों के झरोंखों से हमें देख रहा है|"
"किसी को इस प्रकार चोरी से देखना दंडनीय अपराध है|मेरा बस चले तो साले कोहथकड़ी डालकर थाने ले जाऊँ|"
मेरी आत्मा अपराध बोध यानि कि गिल्टी कांशस से ग्रस्त हो चुकी थी इन संभ्रात चोरों को अधखुले नयनों से देखकर मैं बड़ाभारी अक्षम्य अपराध कर रहा था|
"इतना चालाक आदमी मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा" यह कहकर एक चोर सामनॆ वाले कमरे में प्रविष्ट कर जाता है| दूसरा चोर भी उसके पीछे चल देता है,जैसे नेता के पीछे चमचा| अंदर के कमरे से टीन के खाली डिब्बे से टक्राने की आवाज आती है|दोनों चोर भागकर वापस आजाते हैं|हाथ में चाकू हैं|आठ इंच लम्बे रामपुरी चाकू|घबड़ाये हुये हैं किन्तू मुझे और मेरी पत्नी को सोते हुये देखकर आश्चस्त हो जाते हैं|
"कैसी औरत है बीच रास्ते में टीन रखती है,माँ बाप ने सलीका नहीं सिखाया|"
उन दो मे से एक बड़बड़ाता है|"
"देखो जेवर कहाँ हैं|"
"शायद उस डिब्बे में" एकचोर टेबिल पर रखा हुआ डिब्बा उठाकर खोलने लगता है|डिब्बे में से एक डिब्बा निकलता है|चोर झल्लाकर वह डिब्बा भी खोल देता है डिब्बा खोल का यह सिलसिला दसवें डिब्बे पर जाकर समाप्त होता है|अंतिम डिब्बा बिल्कुल खाली है,किसी बुद्धि जीवी के दिमाग की तरह|मुझे अपनी पत्नी के क्रिया कलापों से चोरों को हुई असुविधा के कारण शर्मिंदगी महसूस हो रही थी|बीच कमरे में टीन का डिब्बा रख देना, एक डिब्बे के अंदर नौ डिब्बे रख देना और अंतिम डिब्बा बिल्कुल खाली, भारतीय नारी के चरित्र से किसी तरह् मेल नहीं खाता|पहले मालूम होता तो मैं ऐसी नारी से कभी शादी नहीं करता|चोर आपे से बाहर हो रहे थे|एक मेरी ओर देखकर गुर्रा रहा था
"यह तो नटवर का बाप निकला|"
"फ्राड है साला" दूसरा कोसने लगा|
पहला चोर मेरे हाथ कीबीच की अंगुली में पड़े लोहे के छल्ले को देख रहा है|
"लगता है इस बदमाश को शनि लगा है, तभी तो लोहे का छल्ला पहने है|"
"भुखमरा है साले के घर में कुछ नहीं है|" गुस्से में दोनों चोर चले जाते हैं|
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दूसरा दृश्य
कार्यालय वह स्थान है जहाँ अफ्सर काम करने आते हैं और कर्मचारी बैठने एवं गपशप करने आते हैं|बैठना हमारे देश की संस्कृति में शुमार किया जाता है|आदमी अपने मित्रों के यहाँ बैठने जाते हैंऔर नारी अपनी सहेलियों के यहाँ|कर्मचारी जब थक जाते हैं तो बैठे बैठे खड़े हो जाते हैं और चाय पानी के नेक इरादे से पान ठेले की तरफ चले जाते हैं| एक दफ्तर में भी एक कनिष्ठ अफसर हूँ|जब अफसर हूँ तो सरकारी विधि विधान के अनुसार मेरा एक वरिष्ठ अफसर भी है|लोग उस अफसर को बड़ा साहिब कहते हैं|बड़े लोग बड़े साहब से मिलने आते हैं|लगभग रोज आते हैं| अभी दलाल साहब आये हैं|
" बड़े साहब से मिलना हैं"वह गेट पर तैनात चपरासी से गुफ्तगू करते हैं|
"साहब अभी व्यस्त हैं| "चपरासी इन्द्रियों कागुलाम है,हस्तेंद्री प्राकृतिक रूप से आगे बढ़ जाती है|दलाल एक दस का नोट उसकी हथेली पर रख देता है|चपरासी मेरी ओर देखता है|सामने बैठा हुआ मैं उसे दुश्मन लगता हूं|डर के मारे वह दस का नॊट दलाल को वापस कर देता है और उनके कान में कुछ फुसफुसाता है|जरूर कहा होगा सामनॆ वाला कनिष्ठ अफसर बदमाश है|
अब दलाल साहब बिग बॊस के कमरे में प्रवेश कर गये हैं{मैं भी एक आवश्यक फाइल के संबंध में बिग बी के कमरे में पदार्पण कर लेता हूँ|वहां बाँस की सीढ़ियों[बेम्बू लेडर]की सप्लाई की सौदेबाजी हो रही थी|दलाल साहब ने नोंटों से भरी अटेची टेबिल पर खाली कर दी थी|मेरी खता कहूँ या गुस्ताखी कि मैं उस समय वहाँ हाजिर था|बास ने घुड़की देदी थी"काम नहीं करोगे तो तबादला निश्चित है, गोपनीय चरित्रावली भी..." दलाल साहब को भी आभास करा दिया गया था कि मैं शातिर बदमाश हूं|
अब में कमरे के बाहर हूँ| दलाल साहब भी बाहर आ गये हैं| दलाल को मेरे बदमाश होने पर नाराजी है|
"बहती गंगा में हाथ धोना सीखो" वह मुझे समझा रहा है|
"गंगा बहुत मैली है मुझे हाथ गंदे नहीं करना" मैँने उसे जबाब दिया|
और आजकल मुझे देखकर लोग कहते हैं" देखो वह है बदमाश आदमी, संभलकर रहना उससे|"
------प्रभुदयाल श्रीवास्तव का परिचय जानें साहित्य शिल्पी के रचनाकार पृष्ठ पर।
4 टिप्पणियाँ
वाह ! बड़ी सुन्दरता से व्यंग किया है |
जवाब देंहटाएंलेखन शैली और कथ्य सटीक और प्रशंसनीय हैं |
अवनीश तिवारी
मुम्बई
impressive satire
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा व्यंग्य
जवाब देंहटाएंअरुण खरे
चोरों को प्रतीक बनाकर आज के समय को
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत करता व्यंग्य
पुरुषोत्तम नारायण सागर
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.