
जिंदगी के हर गम को सह लेता हूँ,
आँसूओ को आँखो मे ही पी लेता हूँ,
चहेरे पे दर्द बयान कर नही सकता,
टूट जाता हूँ पर कमज़ोर दिख नही सकता!
कभी दिल को पत्थर कर लेता हूँ,
खुद से ही कई बार लड़ लेता हूँ,
खुशिओ को कई बार द्फन करना पड़ता है,
भावनाओ के समुंदर से निकलना पड़ता है!
कई बार दिल करता है आँसूओ को आने दूं,
अपनी अंदर की पीड़ा को मैं भी बह जाने दूं,
पर चहेरे पे नकली हँसी लानी पड़ती है,
अपने दिल की आग खुद ही बुझानी पड़ती है!
अपनो को पीड़ित देखता हूँ तो बूँदो सा फूट जाता हूँ,
चट्टान सा दिखता हूँ पर अंदर से टूट जाता हूँ,
अपनी पीड़ा को कभी किसी से कह नही सकता,
मैं भी रोना कहता हूँ पर बाप हूँ ना, रो नही सकता!
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4 टिप्पणियाँ
एक मार्मिक अभिव्यक्ति। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (दूसरा भाग)
सुंदर प्रस्तुति राजीव जी, बधाई|
जवाब देंहटाएंnavincchaturvedi@gmail.com
ओह! पिता के ह्रदय की वेदना का मार्मिक चित्रण्।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.