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संस्कृति व सभ्यता का महाविश्वविद्यालय शिक्षायतन [प्रवासी समाचार] - देवी नागरानी


शिक्षायतन की ओर से आयोजित किया गया २२वां सांस्कृतिक संगीतमय बालदिवस Hindu Temple Society of North America, Flushing, NY में गत १८, दिसम्बर को सम्पन्न हुआ। पूर्णिमा देसाई शिक्षायतन की निर्माता, निर्देशिका, अध्यक्ष एवं संचालिका है, जिन्होंने बड़ी सामर्थ्य के साथ संचालन की बागडोर संभाली. दीप प्रज्वलन और शंख नाद के साथ कार्यक्रम आरन्भ हुआ, जिसमें स्वामी राजा राम मुख्य मेहमान श्री सुरेन्द्र कौशिक जी शरीक रहे. समारोह श्री गणेश शिव वंदना से आगे बढ़ता रहा.

शिक्षायतन के प्रांगण में आना एक अनुभूति है
और साथ में एक अनुभव भी. इस समारोह में भाग लेते हुए ऐसे लगा कि जो बीज पूर्णिमा जी ने कल बोये थे वे आज इतने फले फूले हैं कि बस यूँ कहिये एक महकता हुआ गुलिस्ताँ बन गया है. इस संगठन का विकास अनेक त्रिवेणियों के रूप में हो रहा है - हिन्दी भाषा का विकास, संगीत, नाट्य, वायलिन वादन,शास्त्रीय संगीत, और तबले पर जुगलबंदी, लगता है अमरिका में यह एक अद्भुत महाविश्वविद्यालय है जहाँ हमारी भारतीय संस्कृति पनप रही है. एक मंच पर इस प्रतिभाशाली नवयुग की पीढ़ी को विकसित होता देखकर यह महसूस हुआ जैसे हर युग में रवीन्द्रनाथ टैगोर का एक शांतिनिकेतन स्थापित हो रहा है. विश्वास सा बंधता चला जा रहा है जैसे देश हमसे दूर नहीं है. जहाँ जहाँ इस तरह की संस्कृति पनपती रहेगी वहीं वहीं हिंदोस्तान की खुशबू फैलती रहेगी. श्रीमती पूर्णिमा देसाई का सपना है अपने भारत की सभ्यता संस्कृति को सक्रिय रूप से न्यूयार्क में अपने शिक्षायतन के प्रांगण में एक गुरुकुल की अनुकूलता का स्वरूप देने का है और यह क़दम क़ाबिले तारीफ़ है जिसके लिये वे बधाई की पात्र हैं. इस श्रेष्ट कार्य में उनकी सुपुत्री कविता का भी सहयोगी हाथ है जिन्हें मेरा साधुवाद.

* "मैं हिंदी हूँ, भारत माँ की बिंदी हूँ" अभिव्यक्त करने वाली हस्ताक्षर श्रीमती पूर्णिमा देसाई ने एक भक्ति गीत प्रस्तुत किया. शिक्षायतन की शिक्षा प्रधान पत्रिका "अभ्युदय" का विमोचन भी हुआ. साथ साथ पहल हुई श्रीमद् भगवद् गीता के श्लोक और मन्त्रों के उच्चारण की, जिससे वातावरण पावन हो गया. साज़ और आवाज़ में "वन्दे मातरम" और फिर शिक्षायतन का गायन "हर धरती का रहने वाला " प्रस्तुत किया गया जिसको गाया गया कविता, सुतपा, मोइत्रेयी, केवल और वायलन पर साथ दिया ऋतू ने.

* श्रीमती योशिता चंद्रानी ने अपने भीतर की सितार वादन की अनुभूतियों को अपने विद्यार्थियों की क्षमता में दर्शाया, जिन्होंने सितार पर प्रस्तुत किये राग काफ़ी, भैरवी, सोहन और राग तोड़ी. एक समां सा सुर-सागर का बंध गया और रसपान करते हुए श्रोतागण भाव विभोर होकर संगीत का आनंद लेते रहे.

* त्रिमूर्ति आर्ट स्कूल के निर्देशक श्री अनिल रामबदरी जी के विद्यार्थियों ने जुगलबंदी में लास्य ताँडव पेश किया जिसमें भागीदारी रही शिव के रूप में अमृता और पार्वती के रूप थी सात्विक . प्राण्या नृत्य में सनम राधा बनी और शालिनी बनी कृष्ण. पुरातन संस्कृति के ये पावन दृश्य मनोरंजन के साथ अपना परिचय भी दे रहे थे जिससे विश्वास हुआ कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति हमारी धरोहर है.

* श्री अनिल शुक्ल, राज ढींगरा, रतन धार, ने गायकी की हर धारा को अपनी इल्म और हुनर से एक लहर का स्वरुप प्रदान किया. मीनू पुरुषोतम ने 'ये हकीकत नहीं तो क्या है?' अपने कोकिल स्वर में गाकर श्रोताओं का मन जीत लिया. हाल में तालियों के गूँज प्रतिध्वनित होती रही.

* स्वरांजली ने फ़िज़ाओं में एक मधुर समां बांधा जब विख़्यात सितार वादक श्री पार्थ बोस की उंगलियाँ सितार पर थिरकती हुई राग जयजयवंती और राग पीलू के सुरों में श्रोताओं को बहाव में बहा ले जाने में बखूबी कामयाब रहीं. तबले पर साथ रहा इमरान ख़ान का और तानपुरे पर संगत की श्री इब्राहिम मशरकी ने.

काव्यांजली के अंतर्गत काव्य पाठ करने वाले कविगण रहे, श्रीमती पूर्णिमा देसाई, डॉ.सरिता मेहता, श्री राम गौतम, श्री अशोक व्यास, श्रीमती देवी नागरानी, श्री गोपाल बघेल "मधु", श्रीमती सुषमा मल्होत्रा और श्री आनंद आहूजा. श्रीमती पूर्णिमा देसाई की हाज़िरी में विशेष अतिथि डा॰ कृष्णा एवं श्री दिगविजय गिरनार ने अपने हाथों से सभी कवियों को काव्य श्री" पुरुस्कार से सन्मानित किया.

अंत में दीपक शेनाइ, बिपाशा डे, एवं प्रियंका देबनाथ ने संयुक्त पंजाबी भांगड़ा किया और उसी धमाल के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुई जिसके बाद सभी ने मिलजुल कर राष्ट्रीय गान "जन गन मन" गाया .

* संगीत विभूषण पंडित कमला प्रसाद मिश्रा जी, जो इस संस्था को सुर और साज़ से सींचते रहे है उनकी अनुपस्थिति का आभास रहा. उन्हें २००९ में संगीत सम्राट की उपाधि से निवाजा गया और २०१० में छत्तीसगढ़ भारतीय सन्मान से सुशोभित किया गया है. उन्हें हमारी शत शत बधाई. जयहिंद!

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2 टिप्पणियाँ

  1. पंडित कमला प्रसाद मिश्रा जी, छत्तीसगढ़ अप्रवासी भारतीय सम्‍मान से सम्‍मानित हैं.

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