
मच्छर ने खोली दूकान,
बड़े मजे से बैठे बैठे
लगा बेचने बीड़ी पान|
सौ रुपये के तेंदू पत्ते
दो सौ का बीड़ी जरदा,
लाकर घर में शुरू कर दिया
स्वयं ही बीड़ी का निर्माण|
पत्नी रोज काटती पत्ते
बच्चे भरते तम्बाकू,
भांज भांज कर बीड़ी उसने
सजा रखी सुंदर दूकान|
एक दिवस पर उसने देखा
उसके दस के दस बच्चे,
बीड़ी पी रहे मजे मजे से
खाते खाते बंगला पान|
खाँस खाँस कर छ:बच्चों ने
पल भर में दम तोड़ दिया,
डर के मारे मच्छर जी ने
तुरत बंद कर दी दूकान|
अब मच्छरजी घर में रहकर
मानव खून चूसते हैं
सब पर दया बराबर करते
घरवाले हों या हों मेहमान|
4 टिप्पणियाँ
बहुत गहरा संदेश अंतर्निहित है
जवाब देंहटाएंएक बडी अमस्या पर भी आप की कविता ध्यान खींचती है। आप सही मायनों में नन्हे मुन्नों को राह दिखा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसार्थक बाल रचना...
जवाब देंहटाएंसुंदर सन्देश ...
आभार प्रभुदयाल जी...
बधाई आपको...
आज ऐसे ही बाल गीतों की आवश्यकता है....
अच्छी बालरचना...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.