
धूप हो जैसे खिली खिली सी बहुत दिनों के बाद।
देख परिन्दों ने पर खोले, मौसम नें ली अंगडाई,
फूलों पे आ कर बैठी तितली बहुत दिनों के बाद।
खत्म परीक्षा हुई और बस्तों से जान छूटी,
बच्चों की अब टोली निकली बहुत दिनों के बाद।
आई बेटियाँ मायके में घर आँगन महके चहके,
ननद भाभियाँ खेलें किकली बहुत दिनों के बाद।
बचपन की जब मिले सहेली कोई अचानक ही
याद आईं फिर बातें पिछली बहुत दिनों के बाद।
तेरा नाम लिया जब मैंने, फौरन बंद हुई,
शाम ढले जब आई हिचकी बहुत दिनों के बाद।
दहकनों के बुझे बुझे से चेहरे चमक उठे,
आसमान पर छाई बदली बहुत दिनों के बाद।
5 टिप्पणियाँ
व्याकरण का बहुत पता नहीं , फिर भी
जवाब देंहटाएंकाफिया - ई , रदीफ़ - बहुत दिनों बाद
भाव नवीन और सुन्दर |
एक अच्छी गजल |
अवनीश तिवारी
मुम्बई
इतने सुन्दर भावों भरी ग़ज़ल है कि पढते ही मन हरा हो गया
जवाब देंहटाएंसुंदर...
जवाब देंहटाएंमंमोहक गज़ल... बधाई मीनाक्षी जी....
ek ek shel sundr hai bhavon se bhari gazal
जवाब देंहटाएंaap ko badhai
rachana
yeh geet hai ki, gazal hai ki, kavita hai...
जवाब देंहटाएंjo bhi hai ati uttam hai...
padte hi mann sudoor desh ki sair kar aayaa...
aur ek muskaan le aayaa...
sadar dhanyavaad...
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