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धर्म अब इंसानियत हो [कविता] - अम्बरीष श्रीवास्तव

देश के कण कण से औ’ जन जन से मुझको प्यार है
देह न्यौछावर हैं इस पर आत्मा बलिहार है,

शुक्रिया प्रभु आज तेरा जन्म पाया है यहाँ
प्रीति के बंधन यहाँ पर कर्म का अधिकार है

आओ दे दें हाथ में हर एक बच्चे के कलम
मुश्किलों में साथ देती हर कलम तलवार है,

दुश्मनी को दूर रखना दोस्ती दिल में रहे
दूरियां दिल की मिटाने आ गया किरदार है,

खूबसूरत ये धरा है आओ सींचें प्यार से
इन्द्रधनुषी रंग इसके बाग वन श्रृंगार है,

जाति मज़हब भूलकर हम सबको अपना मान लें
धर्म अब इंसानियत हो प्रीति की दरकार है,

आओ नेताओं से पूछें आत्मा उनकी कहाँ
बेचने को क्या बचा है कौन सा व्यापार है,

देश बाँटा प्रांत बाँटे बाँट डाले घर सभी
बाँटकर अब राज ना कर दोमुखी सरकार है,

हाथ में अब शिव धनुष है लाल आँखें हो गईं,
दूर कर आतंक जग से कह रही टंकार है.

आओ चुन लें राह ऐसी देश सेवा में रहें
ये तिरंगा ही कफ़न हो स्वप्न यह साकार है,

मान अब घटने न पाये शान ही बढ़ती रहे
देख आया पास अब गणतंत्र का त्यौहार है,

साहित्य शिल्पी
रचनाकार परिचय:-
उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर में १९६५ को जन्मे अम्बरीष श्रीवास्तव ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से शिक्षा प्राप्त की है।
आप राष्ट्रवादी विचारधारा के कवि हैं। कई प्रतिष्ठित स्थानीय व राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं व इन्टरनेट की स्थापित पत्रिकाओं में उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। वे देश-विदेश की अनेक प्रतिष्ठित तकनीकी व्यवसायिक संस्थानों व तथा साहित्य संस्थाओं जैसे "हिंदी सभा", "हिंदी साहित्य परिषद्" आदि के सदस्य हैं। वर्तमान में वे सीतापुर में वास्तुशिल्प अभियंता के रूप में स्वतंत्र रूप से कार्यरत हैं तथा कई राष्ट्रीयकृत बैंकों व कंपनियों में मूल्यांकक के रूप में सूचीबद्ध होकर कार्य कर रहे हैं।
प्राप्त सम्मान व अवार्ड: "इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड २००७", "अभियंत्रणश्री" सम्मान २००७ तथा "सरस्वती रत्न" सम्मान २००९ आदि|

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