
नहीं लिखती हूं तो मेरे शब्द मुझे आहत करते हैं, इसलिये लिखना मेरी मजबूरी है। ऐसा विचार है कवयित्री गीता पण्डित का। कवि पिता स्व० मदनमोहन शलभ की पुत्री अंग्रेजी साहित्य से स्नातकोत्तर तथा विपणन में एम बी ए शिक्षित गीता जी के प्रथम काव्य संग्रह मन तुम हरी दूब रहना की समीक्षा की समीक्षा आप साहित्यशिल्पी के पुस्तक चर्चा स्तम्भ के अंतर्गत पढ़ चुके हैं|
आज के सामाजिक अवमूल्यन, टूटते परिवार , बिखरते रिश्ते , प्रकृति से अंधाधुंध छेड़छाड़ , नैतिक मूल्यों में गिरावट , बदलती बेकाबू सोच , बाजारवादी गलाकाट प्रति स्पर्धा जैसे तमाम दबावों के बीच जहां पर कोमल कान्त भावनायें मन के भीतरी कोने में दुबकने को विवश हैं वहीं पर इन विषम परिस्थितियों के चलते समकालीन कविता में विचारों सरोकारों की प्रमुखता भी बढ़ गई है और भावनाओं को निजी मान लिया गया है। ऐसे में गीता पंडित की कवितायें शुष्क विचारों से कहीं अधिक भावनाओं की शीतल बयार हैं |
प्रस्तुत है एक साहित्यकार तथा एक नारी के रूप में गीता जी से साहित्यशिल्पी श्रीकान्त मिश्र ‘कान्त’ की बातचीत का संक्षिप्त आलेख। आप प्रश्न से सम्बन्धित पूरी बातचीत संलग्न प्लेयर से सुन भी सकते हैं। [निर्बाध बातचीत सुनने के लिये कृपया प्लेयर में बफर होने की प्रतीक्षा कर लें ]
01 साहित्यशिल्पी : गीता जी ! सबसे पहले आपके प्रथम काव्य संग्रह मन तुम हरी दूब रहना के प्रकाशन के लिये बहुत बहुत बधाई।
गीता पण्डित : आभार आपका ... ....
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02 साहित्यशिल्पी : कबसे आरम्भ किया तथा इसकी प्रेरणा कैसे मिली सबसे पहली बार कब लिखा।

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03 साहित्यशिल्पी : पहले काव्य संग्रह का नाम मन तुम हरी दूब रहना इसके पीछे आपकी सोच।

गीता पण्डित : मैं बहुत समय से स्त्री पर लिखना चाहती थी। स्त्री पर जो भी होता रहा है वह सब मुझे अन्दर तक उद्वेलित करता है। निम्न से लेकर तक उच्च वर्ग तक स्त्री किसी न किसी रूप में प्रताड़ित होती रही है। औरत तो प्रेम है ... वह जीवन देती है फिर उसके साथ यह सब क्यों ........
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04 साहित्यशिल्पी : जन्म लेने के बाद से कन्या बेटी पत्नी एवं प्रेमिका और बाद में मां, नारी को भारतीय समाज में सैद्धांतिक रूप से सर्वाधिक मान्य माना जाता रहा है किन्तु साहित्यिक धरातल पर ..... मात्र शोषित और त्याग करने वाली के रूप में निरूपित किया गया है। साहित्यकार के नाते आपके विचार ...
गीता पण्डित : नारी धरणी कहलाती है। त्याग करना उसके स्वभाव में है। लेकिन आज की स्त्री जीना चाहती है ... आज वह अबला रह्कर नहीं जीना चाहती .... आज वह चाहती है कि उसका अपना अस्तित्व हो ....
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गीता पण्डित : नारी धरणी कहलाती है। त्याग करना उसके स्वभाव में है। लेकिन आज की स्त्री जीना चाहती है ... आज वह अबला रह्कर नहीं जीना चाहती .... आज वह चाहती है कि उसका अपना अस्तित्व हो ....
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05 साहित्यशिल्पी : अस्तित्व के साथ जुड़ा हुआ एक पश्न ..... क्या ऐसा नहीं लगता कि अस्तित्व के नाम पर आज महिलाओं ने एक वर्ग संघर्ष खड़ा कर लिया है। वे भारतीय परिप्रेक्ष्य से भटक सी गयी हैं।
गीता पण्डित : आप सही कह रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन इस सबसे अलग हटना होगा अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिये हमें यह तो देखना होगा कि हम किस रास्ते पर चल रहे हैं। भारतीय संस्कृति तो हमारे अन्दर रची बसी है ..... हमें स्त्री की मर्यादा को रखते हुये अपने अस्तित्व को बनाना है..........(पूरी बात सुनें)
06 साहित्यशिल्पी : गीता जी साहित्य का सम्बन्ध मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं से होता है। भाषा मात्र माध्यम होती है ........ आपने अंग्रेजी साहित्य से स्नातकोत्तर किया है फिर भी साहित्य के लिये अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी को माध्यम क्यों चुना।
गीता पण्डित : हिन्दी हमारी अपनी मातृ भाषा है। .... पापा कवि थे ....... हिन्दी मुझे घुट्टी में पिलायी गयी है
(पूरी बात सुनें)
07 साहित्यशिल्पी : आपको ऐसा नहीं लगा कि अंग्रेजी के साथ अभिजात्यता जुड़ी हुयी है.... कभी ऐसा विचार मन में नहीं आया ...
गीता पण्डित : नहीं कभी ऐसा विचार नहीं आया। अपनी भाषा से ही मैं हर व्यक्ति के मन तक पहुंच सकती हूं। मेरा उद्देश्य ही यही है .....
(पूरी बात सुनें)08 साहित्यशिल्पी : आपके पति प्रवीण जी भी अच्छा लेखन करते हैं। कभी व्यक्तिगत जीवन मे दो रचनाकारों के बीच का अहं .........
गीता पण्डित : यह सम्भव है किन्तु हम दोनों के बीच कभी ऐसा नहीं हुआ ... प्रवीण जी बहुत ही सुलझे हुये व्यक्तित्व हैं। वह स्वयं भी मेरी बहुत सहायता करते हैं ..........
(पूरी बात सुनें)09 साहित्यशिल्पी : चलते चलते .... हमने आनलाइन ब्लाग्स और इनकी भीड़ के बीच इ-साहित्यपत्रिका साहित्यशिल्पी के रूप में एक प्रयोग किया। इसके बारे में आपके सुझाव और विचार...
गीता पण्डित : साहित्यशिल्पी को मैं पसन्द करती हूं यह हिन्दी के लिये निष्पक्ष रूप से काम कर रही है ...... मुझे इसपर लिखना इसको पढ़ना अच्छा लगता है।
(पूरी बात सुनें)10 साहित्यशिल्पी : आपकी कोई दूसरी पुस्तक या कृति आने वाली है ......
गीता पण्डित : हां जी ... दूसरी मेरी प्रकाशित होने वाली है उसका नाम है मौन पलों का स्पन्दन.....
(पूरी बात सुनें)11 साहित्यशिल्पी : बहुत अच्छा लगा आपसे बात करके। हमारे पाठक भी आपके विचार जानकर प्रसन्न होंगे
गीता पण्डित : .......... मेरी दो लघुकथा साहित्यशिल्पी पर हैं वह स्त्री विषय पर ही हैं। मेरा पूरा ध्यान स्त्री पर ही जाता है ..... स्त्री ही मेरा विषय रहे ऐसी प्रार्थना आप सब हमारे लिये करें। कि मैं स्त्री के ऊपर ..........
साहित्यशिल्पी : साहित्यशिल्पी की ओर से आपकी आगामी पुस्तक के लिये शुभकामनायें ......आपका लेखन इसी प्रकार निरन्तर रहे ...... शिल्पी से वार्ता के लिये आपका बहुत बहुत आभार
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23 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया गया साक्षात्कार है। गीता जी और श्रीकांत जी का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंगीता जी को उनकी पुस्तकों के लिये अग्रिम शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंश्रीकांत जी संभव हो तो गीता जी के इस संग्रह से कवितायें भी पढवाईये। अच्छी बातचीत के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंGeeta jee se batcheet achhi lagi, unkee kavitai bhee prastut karne ka kast kare
जवाब देंहटाएंstri sokaron se jude aap ke sundr uttr stri smaj ko labhanvit krenge hi sath hi nvodit lekhikaaon ke liye prerna bhi bnege vastv me stri hi srishti kee duri hai srjn ka sukh aur ksht sahne kee shkti kevl stri me hi hai
जवाब देंहटाएंsadhuvad
ACHCHHE SAKSHAATKAR KE LIYE GEETA JI AUR SHRI
जवाब देंहटाएंKANT JI KO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
bahut achchhi batchit.geeta ji ke vichar jan kar achchha laga .geeta ji ko padhna sada hi achchha lagta hai
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
आभार श्रीकान्त जी....आपसे बातचीत करना
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा...हाँ कडकडाती ठण्ड और
कांपती आवाज...आहा....कभी नहीं भूलेगी...
एक बार फिर
मन से आभारी हूँ आपकी...
शुभ कामनाएँ..
आभार साहित्यशिल्पी का.... इस मंच के लियें...
जवाब देंहटाएंमेरी ढेर सारी शुभ-कामनाएँ..इस ई पत्रिका के लियें...
निरंतर विकास के तरफ अग्रसर रहे...
आभार अनिरुद्ध जी...
जवाब देंहटाएंसस्नेह
गीता
अनिल जी,
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपकी
सस्नेह
गीता
आभार निधि जी...
जवाब देंहटाएंश्रीकान्त जी,
आपसे निवेदन है कि
अपनी पसंद की कुछ कवितायेँ आप
एक एक कर...हम सभी को पढ़वाएं..साभार
सस्नेह
गीता .
आभार शरद जी ...
जवाब देंहटाएंमुझे भी अपनी कवितायेँ यहाँ पढकर
प्रसन्नता होगी ...
सस्नेह
गीता
@ प्राण जी
जवाब देंहटाएंआपकी शुभ कामनाओं के लियें आभरी हूँ...
सादर
गीता
आभार रचना जी... लिखने का उद्देश्य तभी सम्पूर्ण होता है जब वो पढ़ा जाये.....
जवाब देंहटाएंपसंद और नापसंद किया जाये..
मैं आभारी हूँ ...मुझे पढ़ना आपको अच्छा लगता है...
इससे अधिक प्रसन्नता का विषय मेरे लियें क्या हो सकता है..
शुभ-कामनाएँ
सस्नेह
गीता .
aapko bahut bahut badhaee avm shubhkamanayen GEETA JI ....
जवाब देंहटाएं@ विनोद बिस्सा
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपकी शुभ कामनाओं के लियें...
सादर
गीता
इंटरव्यू पढ़ कर और सुन कर अच्छा लगा | गीता जी मेरी बधाई स्वीकार करें | श्रीकान्त जी इंटरव्यू पेश करने का तरीका बहुत भाया |
जवाब देंहटाएंसुधा ओम ढींगरा
स्नेही मित्रो !
जवाब देंहटाएंसाक्षात्कार के लिये अपनाये गये नवीन प्रारूप के प्रति आप सबके उत्साह हेतु आभार।
आगे भी इसी प्रकार स्नेह बनाये रखॆं। साथ ही आग्रह है कि श्रव्य दृश्य माध्यम सहित अन्य सुझाव भी साहित्यशिल्पी को निरन्तर मेल करते रहें। हमारा प्रयास होगा कि आपको शीघ्र गीता जी सहित अन्य रचनाकारों की रचनाओं का स्वरपाठ साक्षात्कार तथा कहानियों का स्वराभिनय इसी मंच पर प्रस्तुत किया जा सके।
@ शोभा .... आभार आपका...
जवाब देंहटाएंसच कहूँ तो इंटरनेट आज के समय में एक ऐसा माध्यम बन गया है जहां पुराने और नए सभी साहित्यकार या कलाकार ग्लोबल दृष्टिकोण से अपनी अपनी जगह बनाने में सफल हो रहे हैं...व्यक्ति विशेष के मन तक पंहुच रहे हैं....यह अत्यंत हर्ष का सुखद अनुभव है...मैं चाहती हूँ कि हम पुराने उन लेखनी धारकों को भी यहाँ पर लाएं...जो किसी कारणवश प्रकाश में नहीं आ सके हैं...लेकिन साहित्य में विशेष योगदान दिया है....
जवाब देंहटाएंआभार आप सभी का, श्रीकान्त जी का और साहित्यशिल्पी का...
शुभ-कामनाएं
गीता पंडित
सार्थक सस्वर साक्षात्कार के लिये आभार एंव गीता जी को उनकी पुस्तक के प्रकाशन पर ढेर सारी बधाई व शुभकामनायें... आने वाली पुस्तक की प्रतीक्षा रहेगी.
जवाब देंहटाएंआभार मोहिंदर जी...
जवाब देंहटाएंशुभ कामनाएँ आपको भी...
सस्नेह
गीता पंडित
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.