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सच्‍चा जीवनसाथी [कहानी] - संगीता पुरी


शाम के 4 बज चुके हैं , दिन भर काम करने के कारण थकान से शरीर टूट रहा है , इसके बावजूद टेबल पर फाइलों का अंबार लगा है। पिछले एक सप्‍ताह से दो चार छह फाइले छोडकर समय पर घर चले जाने से समस्‍या बढती हुई इस हालात तक पहुंच गयी है। यदि एक एक घंटे बढाकर काम न किया जाए तो फाइलों का यह ढेर समाप्‍त न हो सकेगा। सोंचकर मैने चपरासी को एक कप चाय के लिए आवाज लगायी और फाइले उलटने लगा। अब इस उम्र में कार्य का इतना दबाब शरीर थोडे ही बर्दाश्‍त कर सकता है , वो भी जिंदगी खुशहाल हो तो कुछ हद तक चलाया भी जा सकता है , पर साथ में पारिवारिक तनाव हों तो शरीर के साथ मन भी जबाब दे जाता है। चाय की चुस्‍की के साथ काम समाप्‍त करने के लिए मन को मजबूत बनाया। 
किंतु ये फोन की घंटी काम करने दे तब तो। ऑफिस के नंबर पर भैया का फोन ,मैं चौंक पडा। मुझे मालूम था , तुम ऑफिस में ही होगे। हमलोग एक जरूरी काम से दिल्‍ली आए हैं , तुम्‍हारे घर के लिए टैक्‍सी कर चुके हैं। तुम भी जल्‍द घर पहुंचो
क्‍यूं भैया, अचानक, कोई खास बात हो गयी क्‍या ?’ मेरी उत्‍सुकता बढ गयी थी।
हां खास ही समझो, जॉली, हैप्‍पी और मेघना आ रहे थे, जॉली के विवाह के लिए लडकी देखने। मुझे भी साथ ले लिया , अब होटल में रहने से तो अच्‍छा है , तुम्‍हारे यहां रहा जाए साधिकार उन्‍होने कहा।
जी , आपलोग जल्‍द घर पहुंचिए , मैं भी पहुंच रहा हूं। ऑफिस के फाइलों को पुन: कल पर छोडकर मैं तेजी से घर की ओर चल पडा।
भैया आ रहे थे , मेरे नहीं मानसी के , पर मेरे अपने भैया से भी बढकर थे। जिंदगी के हर मोड पर उन्‍होने मुझे अच्‍छी सलाह दी थी। उम्र में काफी बडे होने के कारण वे हमें बेटे की तरह मानते थे। उनके साले के लडके जॉली का परिचय भी हमारे लिए नया नहीं था। भैया ने हमारी श्रेया के जीवनसाथी के रूप में जॉली की ही कल्‍पना की थी। जॉली को भी श्रेया बहुत पसंद थी। श्रेया का रंग सांवला था तो क्‍या हुआ चेहरे का आत्‍मविश्‍वास , आंखों की चमक और बहुआयामी व्‍यक्तित्‍व किसी को भी खुश कर सकता था। स्‍कूल कॉलेज के जीवन में मिले सैकडों प्रमाण पत्र और मेडल इसके साक्षी थे। एक चुम्‍बकीय व्‍यक्तित्‍व था उसमें , जो बरबस किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। श्रेया को भी जॉली पसंद था , पर एक पंडित के कहने पर हमने उसकी सगाई भी न होने दी थी। उक्‍त ज्‍योतिषी का कहना था कि जॉली की जन्‍मकुंडली में वैवाहिक सुख की कमी है , विवाह के एक वर्ष के अंदर ही उसकी पत्‍नी स्‍वर्ग सिधार जाएगी। इसी भय से हमने जॉली और श्रेया को एक दूसरे से अलग कर दिया था। मेघना से विवाह हुए जॉली के चार वर्ष व्‍यतीत हो गए। एक बेटा भी है उन्‍हें , सबकुछ सामान्‍य चल रहा है उनका , उक्‍त ज्‍योतिषी पर मुझे एक बार फिर से क्रोध आया।
इस रिश्‍ते को तोडने के बाद हमारे परिवार को खुशी कहां नसीब हुई। कहां कहां नहीं भटका मैं श्रेया के लिए लडके की खोज में , पर लडकेवालों की गोरी चमडी की भूख ने मुझे कहीं भी टिकने नहीं दिया। तीन चार वर्षों की असफलता ने मुझे तोडकर रख दिया था। रवि से विवाह करते वक्‍त मैने थोडा समझौता ही किया था , इससे इंकार नहीं किया जा सकता , पर आगे चलकर यह रिश्‍ता इतना कष्‍टकर हो जाएगा , इसकी भी मैने कल्‍पना नहीं की थी। रवि बहुत ही लालची लडका था, वो किसी का सच्‍चा जीवनसाथी नहीं बन सकता था। अपना उल्‍लू सीधा करने के लिए मेरे साथ अपना व्‍यवहार अच्‍छा रखता , पर आरंभ से ही श्रेया के साथ उसका व्‍यवहार अच्‍छा नहीं रहा। समाज के भय से मैने श्रेया को समझा बुझाकर ससुराल में रहने के लिए भेज तो दिया , पर वह वहां एक महीने भी टिक न सकी।

साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-

संगीता पुरी का जन्म 19 दिसम्‍बर 1963 को झारखंड के बोकारो जिला अंतर्गत ग्राम - पेटरवार में हुआ। रांची विश्‍वविद्यालय से अर्थशास्‍त्र में 1984 में स्‍नातकोत्‍तर की डिग्री ली।

उसके बाद झुकाव अपने पिताजी श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा विकसित की गयी ज्‍योतिष की एक नई शाखा गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष की ओर हुआ और सब कुछ छोडकर इसी के अध्‍ययन मनन में अपना जीवन समर्पित कर दिया। गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष पर आधारित अपना साफ्टवेयर भी वे बना चुकी हैं।

सितम्‍बर 2007 से ही ज्‍योतिष पर आधारित अपने अनुभवों के साथ ब्‍लागिंग की दुनिया में हैं। अनेक पत्र पत्रिकाओं के लिए लेखन करती आ रही हैं। ज्‍योतिष पर आधारित एक पुस्‍तक 'गत्‍यात्‍मक दशा पद्धति: ग्रहों का प्रभाव' 1996 में प्रकाशित हो चुकी है।

एक दिन सुबह सुबह घंटी बजने पर दरवाजा खोलते ही श्रेया ने घर में प्रवेश किया , काला पडा चेहरा , कृशकाय शरीर , आंखों के नीचे पडे गड्ढे , बिखरे बाल और रोनी सूरत उसकी हालत बयान् कर रहे थे। बेचारी ने ससुरालवालों का जितना अन्‍याय सही था , उसका एक प्रतिशत भी हमें नहीं बताया था। श्रेया मुझसे लिपटकर रोने लगी , तो मेरी आंखों में भी आंसू आ गए। न संतान के सुखों से बढकर कोई सुख है और न उनके कष्‍टों से बढकर कोई कष्‍ट। अब मैं वहां वापस कभी नहीं जाऊंगी पापा वह फट पडी थी।
क्‍या हुआ बेटे सब जानते और समझते हुए भी मैं पूछ रहा था। मानसी भी अब बाहर के कमरे में आ चुकी थी।
पापा, वे लोग मुझे बहुत तंग करते हैं , बात बात में डांट फटकार , न तो चैन से जीने देते हैं और न मरने ही। सारा दिन काम में जुते रहो , सबकी चाकरी करो , फिर भी परेशान करते हैं , लोग तो नौकरों से भी इतना बुरा व्‍यवहार नहीं करते उसने रोते हुए कहा।
मैं समझ रहा हूं बेटे , तुम्‍हारी कोई गल्‍ती नहीं हो सकती। तुम तो बहुत समझदार हो , इतने दिन निभाने की कोशिश की , लेकिन वे लोग तुम्‍हारे लायक नहीं। तुम पढी लिखी समझदार हो , अपने पैरों पर खडी हो सकती हो , दूसरे का अन्‍याय सहने की तुझे कोई जरूरत नहीं। मैंने उसका साथ देते हुए कहा।
उनलोगों ने सिर्फ लालच में यहां शादी की है, ताकि समय समय पर पूंजी के बहाने एक मोटी रकम आपसे वसूल कर सके। मुझसे नौकरी करवाकर मेरे तनख्‍वाह का भी मालिक बन सके , और घर में एक मुफ्त का नौकर भी। मेरे कुछ कहने पर कहते हैं कि तेरे पापा ने अपनी काली कलूटी बेटी हमारे मत्‍थे यूं ही मढ दी , कुछ दिया भी नहीं
छोडो बेटे , तुम फ्रेश हो जाओ , नई जिंदगी शुरू करो , पुरानी बीती बातों को भूलना ही अच्‍छा है। मैं अब फिर तुम्‍हें उस घर में वापस नहीं भेजूंगा
कहने को तो कितनी आसानी से कह गया था, पर भूलना क्‍या इतना आसान है ? एक परित्‍यक्‍ता को अपनी जिंदगी ढोने में समाज में कितनी मुसीबतें होती हैं , इससे अनजान तो नहीं था मैं। इन दो वर्षों में ही श्रेया की चहकती हंसी न जाने कहां खो गयी है , चेहरे का सारा रस निचोड दिया गया लगता है , आंखों की चमक गायब है , सारा आत्‍मविश्‍वास समाप्‍त हो गया है , बात बात पर उसके आंखों से आंसू गिर पडते हैं , उसकी हालत इतनी खराब है कि कोई पुराने परिचित उसे पहचान तक नहीं पाते।
एक मिष्‍टान्‍न भंडार के पास मैने गाडी खडी कर दी , पता नहीं घर में व्‍यवस्‍था हो न हो। मिठाई , दही और पनीर लेकर पुन:गाडी को स्‍टार्ट किया। हमने जॉली के छोटे भाई हैप्‍पी से श्रेया के विवाह की इच्‍छा अवश्‍य प्रकट की थी , पर वहां उनलोगों ने ही इंकार कर दिया था। जॉली और हैप्‍पी दोनो का विवाह हमारे ही रिश्‍तेदारी में हुआ था , पर कुछ दिनों बाद एक दुर्घटना में हैप्‍पी ने अपनी पत्‍नी रश्मि को खो दिया था। छह माह के पुत्र को हैप्‍पी के पास निशानी के तौर पर छोडकर वह चल बसी थी। कुछ दिन तो हैप्‍पी दूसरी विवाह के लिए ना ना करता रहा , पर बच्‍चे के सही लालन पालन के लिए अब तैयार हो गया था।
घर पहुंचकर मानसी को खुशखबरी सुनाया , भैया आनेवाले थे , उसकी खुशी का ठिकाना न था। वह तुरंत उनके स्‍वागत सत्‍कार की तैयारी में लग गयी। थोडी ही देर में सारे मेहमान पहुंच गए , बातचीत में शाम कैसे कटी , पता भी न चला। श्रेया के बारे में भी उन्‍हें हर बात का पता चल चुका था। कल शाम को हैप्‍पी के लिए लडकी देखने जाना था। हैप्‍पी के साथ साथ लडकी से खास बातचीत की जिम्‍मेदारी मुझे ही दी गयी थी। दसरे दिन मैने ऑफिस से छुट्टी ले ली। शाम लडकी के घर जाने पर मालूम हुआ कि सामान्‍य हैसियत रखनेवाले लडकी के पिता हैप्‍पी और उसके परिवार के जीवन स्‍तर को देखते हुए अपनी लडकी का रिश्‍ता करने को तैयार थे। हैप्‍पी के वैवाहिक संदर्भों या एक बेटे होने की बात उसने लडकी से छुपा ली थी , पर हमलोग विवाह तय करने से पहले उससे सारी बाते खुलकर करना चाहते थे। जब हमने लडकी को इस बारे में जानकारी दी तो उसने उसका गलत अर्थ लगाया , उसने सोंचा कि मात्र बच्‍चे को संभालने के लिए उससे विवाह किया जा रहा है। वह इस तरह के किसी समझौते के लिए तैयार नहीं थी और हमें वहां से निराश ही वापस आना पडा।
लडकी वालों के यहां से आने में देर हो गयी थी। मानसी और श्रेया ने पूरा खाना तैयार रखा था , खाना खाकर हम सब ड्राइंग रूम में बैठ गए। गुमसुम और खोयी सी रहनेवाली श्रेया खाना खाने के बाद थके होने का बहाना कर अपने कमरे में चली गयी। । जॉली तो श्रेया की हालत देखकर बहुत परेशान था , एक ओर हैप्‍पी तो , दूसरी ओर श्रेया .. दोनो की समस्‍याएं हल करने में उसका दिमाग तेज चल रहा था। आज दोनो को ही एक सच्‍चे जीवनसाथी की जरूरत थी , दोनो साथ साथ चलकर एक दूसरे की जरूरत पूरा कर सकते थे, पर इस बात को मुंह से निकालने की उसकी हिम्‍मत नहीं हो रही थी। तभी गर्मी के दिन के इस व्‍यर्थ की यात्रा और तनाव से परेशान भैया ने कहा, इतनी गर्मी में बेवजह आने जाने की परेशानी , लडकी के पिता को ऐसा नहीं करना चाहिए था। उसे अपनी लडकी से बात करके ही हमें बुलाना चाहिए था।
उनकी भी क्‍या गलती ? उन्‍होने सोंचा होगा कि हैप्‍पी को देखकर लडकी मान ही जाएगी। मेघना उन्‍हीं लोगों के पक्ष में थी।
यहां आकर हमने कोई गल्‍ती नहीं की। हमारे सामने एक और अच्‍छा विकल्‍प उपस्थित हुआ है। हैप्‍पी के मुंह से अनायास ही मन की बात निकल पडी। यह सुनकर हमलोग सभी अचंभित थे।
कौन सा विकल्‍प ?’ भैया ने तत्‍काल पूछा।
मेरे कहने का कोई गलत अर्थ न लगाएं, पर आज हमारे समक्ष सिर्फ हैप्‍पी की ही नहीं , श्रेया के जीवन की भी जिम्‍मेदारी है। इन दोनो के लिए दूसरे जगहों पर भटकने से तो अच्‍छा है कि दोनो को एक साथ चलने दिया जाए , यदि हैप्‍पी और श्रेया तैयार हो जाए तो जॉली ने स्‍पष्‍ट कहा।
मुझे क्‍या आपत्ति हो सकती है , आपकी जैसी इच्‍छा हैप्‍पी को इस रिश्‍ते में कोई खराबी नहीं दिख रही थी , सो उसने भैया का तुरंत समर्थन कर दिया।
पर क्‍या श्रेया इस बात के लिए तैयार हो जाएगी भैया ने पूछा।
अभी तुरंत तो नहीं, लेकिन जब वह ससुराल जाने को तैयार नहीं , तो कुछ दिनों में तो उसे तलाक लेकर दूसरे विवाह के लिए तैयार होना ही होगा। मानसी इतने अच्‍छे रिश्‍ते को आसानी से छोडना नहीं चाहती थी , उसे विश्‍वास था कि कुछ दिनों में वह श्रेया को मना ही लेगी। 
जॉली ने हमारे सामने जो प्रस्‍ताव रखा , वह सबके हित में और सबसे बढिया विकल्‍प दिख रहा है। मैं भी दूसरी बार अब कोई भूल नहीं करना चाहता। मुझे भी मालूम है , हैप्‍पी और श्रेया एक दूसरे के सच्‍चे जीवनसाथी बन सकते हैं।

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7 टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छी कहानी है, आज के परिवेश से बिलकुल मिलती-जुलती|

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  2. bahut sunder kahani hai ek achchhe jevan sathi ka milna bahut jaruri hota hai
    badhai
    rachana

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  3. very fine blog studded with imp. links regarding art and literature.happy to notice thisblog.congrats
    dr.bhoopendra
    jeevansandarbh.blogspot.com

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  4. कहानी बहुत अच्छी है | बधाई |
    सुधा ओम ढींगरा

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  5. संगीता बिटिया
    आशीर्वाद
    आपकी अच्छी लगी
    बधाई सवीकार करें
    गुड्डो दादी चिकागो से

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