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कहाँ गये पक्षी [कविता] - अजय यादव

बहुत अधिक नहीं
बस कुछ साल पहले तक
छोटे बड़े अनेक पक्षी
अक्सर ही दिख जाते थे
इधर-उधर टहलते हुये
जाने क्या खाते थे
इनमें से कुछ तो
पास के पेड़ों पर रहते थे
और कुछ
दूर कहीं से आते थे

पर अब ये पक्षी
जाने कहाँ चले गये है
कहीं नज़र ही नहीं आते हैं
शहरों में तो छोड़िये
गाँवों में भी नहीं मिल पाते हैं
शाम के वक्त
सूने उदास पेड़ इन्तज़ार करते हैं
पर पक्षी लौट कर नहीं आते हैं

कोयल की कूक तो क्या
कौवे की कर्कश ध्वनि को भी
कान तरसते हैं
मोर की अनायास ही याद आती है
जब जब बादल गरजते हैं
इंसान आज चाँद पर जा पहुँचा है
पर इनके लिये
क्या हम कुछ नहीं कर सकते हैं

यही हाल रहा
तो कोयल की कूक, पपीहे की रटन
बस याद ही रह जायेगी
और हमारी अगली पीढ़ी तो
इन्हें सिर्फ चित्रों में ही देख पायेगी
पर प्रकृति
क्या चुपचाप सहेगी ये अनर्थ
क्या मानव की ये गलती
उसके आगे नहीं आयेगी

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4 टिप्पणियाँ

  1. Ajay Yadav ji koi rachana sach ke saamne aaina hai
    कोयल की कूक तो क्या
    कौवे की कर्कश ध्वनि को भी
    कान तरसते हैं
    मोर की अनायास ही याद आती है
    जब जब बादल गरजते हैं
    इंसान आज चाँद पर जा पहुँचा है
    पर इनके लिये
    क्या हम कुछ नहीं कर सकते हैं
    shabdon ke shilp se bimb jhank raha hai

    जवाब देंहटाएं
  2. यही हाल रहा
    तो कोयल की कूक, पपीहे की रटन
    बस याद ही रह जायेगी
    और हमारी अगली पीढ़ी तो
    इन्हें सिर्फ चित्रों में ही देख पायेगी
    पर प्रकृति
    क्या चुपचाप सहेगी ये अनर्थ
    क्या मानव की ये गलती
    उसके आगे नहीं आयेगी

    एसी गंभीर चिंताओं को कविता में अभिव्यक्त होने की आवश्यकता है।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छा लेखन
    और लोग भी पढ़ें इसलिए इसे मैं ले जा रही हूँ

    जवाब देंहटाएं

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