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रिश्तो की वैतरणी [कहानी] - रचना श्रीवास्तव


सूरज जब अपनी किरणों का लिहाफ फैला कर रात को सुला देता है तो हर शय  में उम्मीद का माध्यम गीत  गुनगुनाने लगता है प्रत्येक नया दिन  चुनौती,ख़ुशी आशा न जाने क्या क्या ले के आता है  उसके लिए आज वो दिन था जिसका  पिछले तीन सालों से वह इंतजार कर रही थी .उसकी खिड़की के पास आती डाली पर चिड़ियों  का एक झुण्ड न जाने क्या गुनगुना रहा था उसने चादर से मुंह निकाल  के देखा  हवा में  हिलते पत्ते उसका अभिवादन कर रहे थे और इनके बीच वो सुनहरी चिड़ियों का झुण्ड उसको जगाने के लिए  ,राग पर राग छेड़े जा रहा था आज की सुबह कुछ खास थी ऐसा लग रहा था किप्रकृति का हर नजारा बस उसीके लिए जगा हो . हलाकि उसको रात भर नींद नहीं आई थी खुशियाँ भी कभी कभी नींद को पलकों से दूर कर देती है .अधखुली  आँखों को जगा के सुगन्धा  तैयार होने बाथरूम में घुस गई .

साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-


रचना श्रीवास्तव का जन्म लखनऊ (यू.पी.) में हुआ। आपनें डैलास तथा भारत में बहुत सी कवि गोष्ठियों में भाग लिया है। आपने रेडियो फन एशिया, रेडियो सलाम नमस्ते (डैलस), रेडियो मनोरंजन (फ्लोरिडा), रेडियो संगीत (हियूस्टन) में कविता पाठ प्रस्तुत किये हैं। आपकी रचनायें सभी प्रमुख वेब-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
आज  विश्वविद्यालय उसको जल्दी पहुंचना था पर यहाँ पहुचते पहुँचते  देर हो ही गई थी .   सुगन्धा ने कहा  "माँ तुम पिता जी के साथ आमंत्रित  मेहमानों की जगह पर बैठ जाओ .मै अन्दर जा कर  गाउन ले आऊं". .आज पूरा विश्व विद्यालय कुछ खास अंदाज  में चहक रहा था .दीक्षांत समारोह सभी विद्यार्थियों के जीबन  महत्वपूर्ण दिन  होता है .सुगन्धा  ने देखा जिस कमरे से गाउन मिला था उस के सामने  बहुत भीड़ लगी थी सुगन्धा का नंबर आने मै करीब २० मिनट लग गए .गाउन हाथ लेते ही उसको अजीब सा अनुभव हो रहा था   यही है वो जिसके लिए उसने बहुत मेहनत  की थी .रिश्तों की एक अजीब सी वैतरणी पार की थी उसने ........... 
अमेरिका के एयरपोर्ट पर जब वो  पहुंची तो उसको लगा एक अलग सी दुनिया है कुछ सपनीली सी  सब कुछ अलग बेगाने  चेहरे दूसरी भाषा ..ऊपर लगे निर्देशों को पढ़ती हुई वो बाहर  निकली तो एक अजनबी लड़की के हाथ में अपने नाम की तख्ती देख उसी तरफ बढ़ ली.
माय नेम इस एलेन आप कैसी हैं ?
इस अँगरेज़न को हिंदी बालते देख बहुत आश्चर्य हुआ .मेरे ये भाव उस से छुपे न रहे .वो बोली मेरी बहुत अच्छी दोस्त है नीलम उसने सिखाया  है ज्यादा नहीं पर थोडा थोडा बोल लेती हूँ .
वो हिंदी कुछ अग्रेजी अंदाज़ में  बोल रही  थी मेरे लिए तो मानो उसकी बोली अमृत बूंद थी ऐसा नहीं था की मुझे अंग्रेजी आती नहीं थी पर यहाँ के  उच्चारण को समझने में  थोड़ी परेशानी हो रही थी..
एलेन ने कार में सामान रखने में उसकी मदद की एअरपोर्ट से घर तक पहुचने में एलेन ने उसको अमेरिका और यूनीवर्सिटी के बारे में बहुत कुछ बताया .
सुगन्धा तुम्हारे रहने के किये एक छोटे से घर का इंतजाम किया गया है ताकि तुम को अपना खाना बनाने में आसानी हो कुछ ग्रोसरी भी मैने ला कर रखी है सुबह ११ बजे  तुमको लेने आउंगी कह कर एलेन जाने लगी पर जाते उसने सुगंधा को  माइक्रोवेव का प्रयोग करना सिखा दिया बाकि का बाद में सिखाने का कहकर चली गई .
एलेन के जाने के बाद वो घर का जायजा लेने लगी एक कमरे के इस घर में  सुख सुविधा का सब सामान उपलब्ध था  .बर्तन धोने की मशीन ,कपडे धोने की मशीन माइक्रोवेव ओवन सब कुछ था वो  एक एक चीज को छू कर देख रही थी .माइक्रोवेव के आलावा उसको कुछ भी चलाना नहीं आता था .अजीब मशीनरी घर लगा उसको .कपडे बदल वो पलग  पर आ गई . इतना थकी थी की लेटते ही सो गई
 रात नीद करीब ३ बजे ही खुल गई तो यही है जेटलैक जिसके बारे में एलन कल कह रही थी भारत और अमेरिका के बीच जो समय अंतर  हैं उसका परिणाम है किसी तरह करवट बदल बदल सूरज देव के निकलने का इंतजार करती रही जब प्रकाश ने अपने पंख फैलाये तो उसने भी बिस्तर छोड़ दिया  .एलेन उसको माइक्रोवेव का प्रयोग  करना सिखा गई थी उसने अपने लिए चाय बनाई  और प्याला ले कर  बालकनी में आ गई 
अमेरिका जिस के बारे में कभी उसने सोचा भर था कभी यहाँ आ सकेगी  ये मालूम न था  सुगन्धा बार बार खुद को यकीन दिला रही थी की वो वास्तव में यहाँ है .धुला धुला सा ये शहर बहुत खुशनुमा माहौल बिखेर रहा था पर फिर भी माँ की बहुत याद आ रही थी कभी पहले वो माँ से अलग नहीं रही थी.यहाँ आने का पता चलने पर माँ कितना परेशान  थीं
 
................................."तू कैसे जाएगी ? भारत में  ही कहीं होता तो ठीक पर सात समुन्द्र पार  कैसे भेज दूँ  .न कोई जान न पहचान ".माँ कपडे फैलाती  जा रही थी और बोलती जा रही थीं .".माँ ये अवसर सब को नहीं मिलता अमेरिका मे एशियन महिलाओं की मनः  स्थिति पर शोध करने के लिए पूरे भारत से मुझे चुना गया है  .ये एक्सचें प्रोग्राम के अंतर्गत  किया गया है माँ मेरे लिए वहां पूरा इंतजाम होगा तुम परेशान मत हो ". "परेशान कैसे न होऊं बेटा अनजान देश का मामला है जब तुम्हारे बच्चे होंगे तब तुमको पता चलेगा .माँ क्यों परेशान होती है ".कह के माँ बाल्टी उठा कर छत से नीचे जाने लगी मै भी उनके पीछे होली "माँ तुम यदि इतना परेशान होगी तो मै कैसे जा पाऊँगी माँ मेरी अच्छी माँ कह के वो माँ से लिपट गई ."
"गिराएगी क्या मुझे सीढियों पर ..माँ ने कस के रेलिंग पकड़ ली सुन  तुम मुझे आपना पूरा कार्यक्रम बता दो पता तो रहे बेटी कहाँ जाने वाली है ".
"थैंक्यू माँ थैंक्यू" .कहती वह सीढियों से नीचे भागी .ख़ुशी के मारे पैर ज़मीन  पर नहीं पड़ रहे थे सोच की उलझनों में चाय कब ख़त्म हो गई उसको पता ही न चला.प्याला रख के वो अपना सामान खोलने  लगी कपडे निकाल कर अलमारी में लगा दिए . उफ़ माँ भी न उसके मना  करने के बाद भी आचार मठियां मिठाई मसाले सब रख दिया था कस्टम वालो ने देखा नहीं वर्ना बड़ी मुसीबत हो जाती.उसने घडी देखी १०३०बज रहे थे ओं माँ देर हो गई एलेन के आने से पहले तैयार होना था. .वो जल्दी से बाथरूम में घुस गई .जब तक वो तैयार  हो के बाहर आई ११ बज चुके थे .तभी उसने दरवाजे पर नॉक सुनी .देखा तो एलेन थी 
समय की इतनी पाबंद  थी एलेन .ये उसका पहला सबक था शायद  समय की यहाँ बहुत कीमत है सुगन्धा ने मन में सोचा .
""क्या तुम तैयार हो ?चलें "
"हाँ चलो" ?
यूनीवर्सिटी पहुँचते पहुँचते  २० मिनट लग गए  कार  से उतर कर  वह यहाँ  के मौहौल को देख रही थी .सभी अपने में  व्यस्त चले जा रहे थे हाँ सामने आते व्यक्ति को हेल्लो कहना नहीं भूलते थे .
एलेन के साथ घूमते लोगों से मिलते देर हो गई थी .यहाँ की यूनिवर्सिटी का माहौल कितना स्वतंत्र था एक अजीब तरह की स्वतंतत्रता ,थी यहाँ के मौहौल में कपड़ों की सवतंत्रता विचारों की स्वतंत्रता ....हर तरह की आज़ादी .एलन ने ही उसको घर छोड़ा और बाहर से ही चली गई .
  कपडे बदल कर उसने जर्नल  निकला जो उसको एडवाईज़र मिस्टर एडम ने  दिया था . आज वो इतने लोगो से मिली है पर सिर्फ एक नाम है जो उसको अभी याद है मिस्टर एडम ,उनका  व्यक्तिव इतना  चुम्बकीये था की वह न चाह  कर भी उन्ही के बारे में सोच रही थी .सफ़ेद बालों और हल्की झुर्रियों वाला उनका चेहरा अनुभव की कहानी कहता लगता था .  पहले ही दिन सर कहने पर एडम ने उसको मना कर दिया था केवल एडम कहो बहुत गंभीर आवाज में कहा  था  .सुगन्धा  को कुछ जर्नल और रिसर्च पेपर दे कर हफ्ते बाद मीटिंग  का कह कर विदा ली थी एडम ने .जर्नल के पन्ने को पलटते हुए सुगन्धा बस एडम की ही बातें सोच  रही थी 

हफ्ते भर के बाद एडम से मीटिंग में  बहुत सी बातें हुई महिलाओं की स्थिति उनके विचार उनकी  अभिलाषाएं संवेदनाएं सब कुछ डिस्कस किया हमने ..मीटिंग  खत्म होने के  बाद एडम ने कहा में वैसे तो तुमको बहुत  सी महिलाओं से मिलवाऊंगा  जिनसे मिलके हो सकता है तुम्हारी बहुत सी धारणाएं  टूटे और कुछ नई बने उनकी मनः   स्थिति तुम को समझनी होगी और फिर  लिखना होगा   आज  हम एक एशियन महिला से मिलने जा रहे हैं .बहुत कड़ी सुरक्षा के बाद वो उस महिला के पास पहुचे .एडम ने मुझसे कहा "तुम इस से बात करो मै ऑफिसर के पास हूँ इस लेडी का नाम लिंच  है ".भाषा की परेशानी न हो इस वजह से सुगन्धा  को  एक इन्टरप्रेटर दे दिया गया था .सुगंध ने जैसे ही उसके सेल में कदम रखा उसने सुगन्धा के  पूछने से पहले ही कहना शुरू कर दिया ."हाँ मेरे लिए पैसा सब कुछ है मैने उसको मारा .मुझे कोई सफ्सोस नही है मेरे पैसे  वो उस चुडैल को देना  चाहता था   .मैने मना  किया वह  नहीं माना मैने उसको  सर पर जोर से हिट किया वो वहीँ मर गए मैने ही पुलिस को कौल  किया और आत्मसमर्पण  कर दिया  ."जी मै  जानती हूँ आप की गलती नहीं थी आप आराम से मुझको बताइए ""सुगन्धा ने उसके हाथों को पकड़ते हुए कहा  कहा "मेरा जीवन बहुत अच्छा चल रहा था यहंग और मेरे बीच कोई तकरार नहीं थी पर वो मेरे जीवन में  ग्रहण बन के आई मै चुप चाप सब सहती रही .यहंग ने बाजार से बहुत क़र्ज़ उठाया उस चुडैल के लिए मै चुप रही .पर वो मेरे पैसे भी उसको देना चाहता था .सभी को लगता है की मै सिर्फ पैसा ही चाहती हूँ पर से सच नहीं है मै उसको बर्बादी से बचाना चाहती थी कई बार तो मैने उसको समझाया भी पर जानती हो उसने क्या किया उस चुडैल को घर ले आया और और  मेरे ही सामने ...........................मैने बहुत कुछ सहा है  उस दिन जब वो मेरा ऐ टी ऍम कार्ड के कर  जाने लगा तब  मैने उसको रोकने की बहुत कोशिश की  पर उसने मुझे धक्का दे दिया  मेरे सर में  चोट  लगी खून बहने लगा .और वो औरत बेहयाई से हँसती  रही ..मुझे गुस्सा आया मैने एक फूलदान यहंग पर फेंका मै उसको मारना नहीं  चाहती थी पर ............"'वो हिचकियों से रोने  लगी सुगन्धा ने लिंच के कन्धे पर हाथ रखा तुम ने सच में बहुत सहा है इन्टरप्रेटर को धन्यवाद देके सुगन्धा ऑफिस में  आगई.
मन उदास और ऑंखें नम ..एडम ने कहा की वो घर  छोड़ देता है पर सुगन्धा अकेले रहना चाहती थी .तो उसने बस से जाने का निश्चय  किया .उस ने देखा बस रुक गई थी ये उसका ही स्टॉप था .रास्ता कब बीत गया पता ही ना चला .    एक महिला ही दूसरी की दुश्मन होती है माँ ये अक्सर कहा करती थी आज उसने देख भी लिया था अगले २४ घटे सुगन्धा को किसी से मिलने का मन नहीं हुआ .वो लिंच के दर्द को शब्दों का मरहम लगा लिखती रही .
समय बीतता रहा और वो बहुत सी महिलाओं से मिलती रही .रिश्तों के कई चित्र बनते बिगड़ते रहे .ये देश  जो उसको कभी बहुत शांत और सुंदर लग रहा  था .आज वो इसकी शांति में  शोर को सुन रही थी .महिलाओं की स्थिति अच्छी थी तो बुरी भी कम नहीं थी .मेहमा ने अपनी बेटी को बचाने के किये उस दरिन्दे का खून किया .अकेली महिला का यहाँ रहना शायद उतना कठिन न हो जितना अपने देश में हैं  पर आसान भी न था ,.
आज उसकी  थीसिस  पर हस्ताक्षर करते हुए एडम ने कहा था बहुत खूब सुगन्धा तुमने इन महिलाओं की  मनः स्थिति का बहुत सटीक विश्लेषण किया है .सभी उसके काम से बहुत खुश थे एलेन ने कहा सुगन्धा "मै आऊँगी  कल तुमको एरपोर्ट छोड़ने "."थैंक्स एलेन तो कल मिलते हैं " अपनी रिपोर्ट दोनों हाथों से पकडे सुगन्धा सभी से विदा ले के घर आने के लिए बस में बैठी .अपनी रिर्पोट को गोद में रख सुगन्धा सोच रही थी इस शब्दों को लिखने में उन्हें सजोने में उसने पूरा एक जीवन जिया है .
उस दिन  उस आखिरी महिला से मिलके जब वो घर पहुंची थी  तो उसको बहुत देर हो गई थी  .उसको लग  रहा था की महा प्रलय अब होने को है .दुनिया में अच्छा कहने को कुछ बचा   ही नहीं  है .माँ.... माँ भी एसी हो सकती है .माँ के बारे में अपनी सारी अच्छी सोचों को आज उसने  कफ़न पहना दिया था .उसका मन कर रहा था की रात को ओढ  कर खुद को अपनी  सोचो से छुपा ले .
 .सुबह जब वः  घर से निकली थी तो उसका मन प्रसन्नता के झूले में झूल रहा था और थोडा डरा  हुआ भी था न जाने आज उसकी कौन सी धारणा टूटने वाली है और उनकी  किरचों से उसकी किस सोच का खून होने को है खुश  इसलिए थी क्योंकी  ये उसके अनुसन्धान का अंतिम चरण था .कुछ ही दिनों में वह  घर के लिए उडान भरने वाली थी .
दो घंटे की यात्रा कर के जब सुगंध और एडम   जेल तक पहुंचे तो वहां का अधिकारी उनका  इंतजार कर रहा था  .आज वो ज़ेबा से मिलने वाले थे ऑफिसर ने अटेंडेंट मार्गेट को उन्हें  ज़ेबा तक पहुचने को कहा ".आप ज़ेबा से मिलने आईं  है .पर आप को एक बात कहना चाहती हूँ  ज़ेबा बात करने की स्थिति में नहीं है वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है "मार्गेट ने उनसे  कहा .
"आखिर ऐसा क्या हुआ इसके साथ ".
शादी के पाँच साल बाद इसको बेटी हुई .वो  पाती पत्नी बहुत खुश थे .पर जब वो ३ साल की हुई तो इनको पता चला की वो मानसिक रूप से सवस्थ नहीं है .बच्ची का शारीर बढ़ता रहा पर न वो चल सकतीं थी न बोल सकती थी और न वो खुद से खा सकती थी .इस वेदना से वो गुजर ही रहे थे की ज़ेबा पुनः गर्भवती हुई .इस बार इन्होने सभी सावधानियां  लीं, सभी जाँच कराये .इस बार बेटा हुआ जो समय से पहले होगया पर कुछ ही महीनो में पता चला की वो भी मानसिक विकलांग है .ज़ेबा एकदम मुरझा गई .बेटी अब ९ साल की हो चुकी थी और बेटा ४ साल का .इतने सालों में वो साये की तरह अपने बच्चों के पास रहती न कहीं जाती न कोई इसके घर आता .समाज और दुनिया से ज़ेबा ने खुद को अलग कर लिया था .आप सोच रही होंगी में इतना कैसे जाती हूँ मेरा घर ज़ेबा के घर के पास है .ज़ेबा और हामिद के साथ हमारे  अच्छे सम्बन्ध थे .उस दिन में ऑफिस में बैठी कुछ रिकॉर्ड ठीक कर रही थी फ़ोन बजा मेरे साथी जौर्ज ने फ़ोन उठाया .दूसरी तरफ से आवाज आई" मैने उनको मार दिया .मैने उनको मार दिया  "
"किसको मार दिया "
"बच्चों को "
क्यों ?
  "आई वान्ट  नौर्मल चाइल्ड आई वान्ट  नौर्मल चाइल्ड "
"कैसे मार दिया "
"मैने उनको   ब्लीच पिलाने की कोशिश की पर वो पी  ही नहीं रहे थे मैने बहुत कोशिश की .उनको बांध के भी पिलाना चाहा पर वह नहीं पी रहे थे  मैने तार से उनका गला घोंट दिया .बड़ी मुश्किल से मरे दोनों .
"दोनों कितने बड़े थे"
"लड़की ९ साल की और लड़का ४ साल का  आई वान्ट  नौर्मल चाइल्ड ".
"अपना पता बताइए"" .
ज़ेबा
३४ अल्वा रोड
सनसेट टाउन
मै एकदम घबरा गई उफ़ ....ज़ेबा ने ये क्या कर दिया हम भाग के उसके घर पहुंचे .दोनों बच्चे बेड़ पर लेटे थे और ज़ेबा बस यही कह रही थी आई वान्ट  नौर्मल चाइल्ड तब से बस यही कहती है .देखिये ये हैं ज़ेबा .एडम और सुगन्धा अवाक् रह गए ज़ेबा की हाथ में उसके बच्चों  के कपडे थे एक कोने में बैठी वो  बस यही कह रही थी आई वान्ट  नौर्मल चाइल्ड .इसके बच्चो को इसके न रह्जाने के बाद कौन देखेगा शायद यही सोचा होगा .काश के इससे बात हो पाती.
इस बार विशिष्ठ कार्य के लिए स्वर्ण पदक दिया जाता है   सुगन्धा पाण्डेय  ..को .....अपना नाम सुनकर वो खयालो के बादलों से बाहर निकली तालियों के धूप  से पूरा ओंडीटोरियम  गूँज  रहा था.डिग्री और स्वर्ण पदक ग्रहण करते हुए उसने ऊपर देखा ज़ेबा,लिंच ,मेहमा के चेहरे साफ दिख रहे थे और उनके आसपास बहुत से चेहरे गडमग  होरहे थे .वेदना के एक किनारे  पर वो सब खड़ी थी और दुसरे  पर ........

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9 टिप्पणियाँ

  1. THERE ARE LOT OF HIDDEN STORIES LIKE THESE WOMEN. SOME COME OUT AND SOME DIE WITHIN. SOME WOMEN GET HELP AMD SOME DO NOT.

    THANKS FOR WRITING NICE STORIES.

    BEST REGARDS,
    JAYA SHAH

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  2. aankh bhar aai
    achchha likha hai rachna ji
    shipra

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  3. Rachana jee kahani achhi lagi, Manviy samvedana avam anivary satya ka anupam mail hai...

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  4. jaya ji,shipra aur sharad ji aap sabhi ka aapne bahumulya vicharon ke liye bhut bahut dhnyavad
    rachana

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  5. रचना जी बहुत अच्छी कहानी है . आप हमेशा नारी मन की संवेदनायों, दुःख और व्यथा को बड़ी गहराई से विश्लेषण करके प्रस्तुत करती
    है .आपकी यह कला मुझे बहुत अच्छी लगती है. कहानी पढते पढते जैसे लगता है फिल्म चल रही हो आँखों के सामने. ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई.
    सादर
    अमिता कौंडल

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  6. स्त्री के विषय को लेकर जो कुछ भी लिखा जा रहा है...मन को सुख देता है...

    आपकी कहानी ने भी वही सुख दिया....

    बधाई रचना जी...

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  7. मानवीय संवेदनाओं को उजले दर्पण में परावर्तित करती सार्थक रचना

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  8. Gita ji Amita ji aur Mohindra ji
    aap sabhi ne apne vichr likhe kahani ko pasand kiya aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad
    saader
    rachana

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  9. Rachna,yaha rojana samacharo me yahi sub sunte-sunte hum samvednaheen ho gaya hai.Tumhari kahhani ke patro ne phri se unke bare me sochne ke liye majboor kar diya.
    bahut i dil ko chhu lene bale sabd hai.

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