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२६ जनवरी और पेट [लघुकथा] - अवनीश तिवारी

अभी अभी नेताजी २६ जनवरी के कार्यक्रम से घर लौट सोफे पर बैठे थे कि उनका ४ साल का बेटा उनकी गोद में कूद चढ़ा और हाथ में लिए तिरंगे को दिखा तुतराने लगा, "पापा पापा ये तिलंगा बाहल से खालिदा"| नेताजी की पैनी नज़रों ने तिरंगे के नीचे के उनकी पार्टी के चिन्ह को पहचान लिया |
गुस्से में तिरंगे को खींच अपने सेक्रेटरी को दिखा गुर्राते हुए नेताजी ने कहा, "देखो अभी नीचे इन तिरंगों को उन कमीने गरीबों में बांटा और सालों ने पेट भरने के खातिर इसे २ मिनट में बेच भी दिया| हरामी के बच्चे पेट के वास्ते देश के झंडे को भी नहीं छोड़ते|"
सेक्रेटरी ने शंका और प्रश्न से भरी नज़रों से नेता को देखा और नेताजी झेंप गए|
पीछे से बच्चा चिल्लाते हुए दौड़ गया - "झंडा उंचा रहे हमाला ... "|

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