HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

सब जुटे हैं [नवगीत] - दिनेश सिंह


सब जुटे हैं
खिलाने में फूल गूलर के
भूलकर रिश्ते पुराने
प्रिया-प्रियवर के

गगन के मिथ से जुड़ा है
चाँद तारे तोड़ना
या कि उनकी दिशाओं का
मुंह पकड़कर मोड़ना

सभी वह मिथ धरे हैं
मन में चुरा करके

शीश पर पर्वत उठाना
सिन्धु पीकर सोखना
भूख में सूरज निगलकर
बजाना थोथा चना

बहुत ऊंचे उड़ रहे पंछी
बिना पर के

नेह के नाते बचे जो
देह में खोते गए
हलक तक प्यासे कि पोखर-
कूप के होते गए

हम कहीं के ना रहे
ना घाट, ना घर के 

रचनाकार परिचय:-
१४ सितम्बर १९४७ को रायबरेली (उ.प्र.) के एक छोटे से गाँव गौरारुपई में जन्मे श्री दिनेश सिंह का नाम हिंदी साहित्य जगत में बड़े अदब से लिया जाता है।  सही मायने में कविता का जीवन जीने वाला यह गीत कवि अपनी निजी जिन्दगी में मिलनसार एवं सादगी पसंद रहा है। अब उनका स्वास्थ्य जवाब दे चुका है। दिनेश जी ने न केवल तत्‍कालीन गाँव-समाज को देखा-समझा है और जाना-पहचाना है उसमें हो रहे आमूल-चूल परिवर्तनों को, बल्कि उन्‍होंने अपनी संस्कृति में रचे-बसे भारतीय समाज के लोगों की भिन्‍न-भिन्‍न मनःस्‍थिति को भी बखूबी परखा है , जिसकी झलक उनके गीतों में पूरी लयात्मकता के साथ दिखाई पड़ती है। 


अज्ञेय द्वारा संपादित 'नया प्रतीक' में आपकी पहली कविता प्रकाशित हुई थी। 'धर्मयुग', 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' तथा देश की लगभग सभी बड़ी-छोटी पत्र-पत्रिकाओं में आपके गीत, नवगीत तथा छन्दमुक्त कविताएं, रिपोर्ताज, ललित निबंध तथा समीक्षाएं निरंतर प्रकाशित होती रहीं हैं। 'नवगीत दशक' तथा 'नवगीत अर्द्धशती' के नवगीतकार तथा अनेक चर्चित व प्रतिष्ठित समवेत कविता संकलनों में गीत तथा कविताएं प्रकाशित। 'पूर्वाभास', 'समर करते हुए', 'टेढ़े-मेढ़े ढाई आखर', 'मैं फिर से गाऊँगा' आदि आपके नवगीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । आपके द्वारा रचित 'गोपी शतक', 'नेत्र शतक' (सवैया छंद), 'परित्यक्ता' (शकुन्तला-दुष्यंत की पौराणिक कथा को आधुनिक संदर्भ देकर मुक्तछंद की महान काव्य रचना) चार नवगीत-संग्रह तथा छंदमुक्त कविताओं के संग्रह तथा एक गीत और कविता से संदर्भित समीक्षकीय आलेखों का संग्रह आदि प्रकाशन के इंतज़ार में हैं। चर्चित व स्थापित कविता पत्रिका 'नये-पुराने' (अनियतकालीन) के आप संपादक हैं ।  


आपके साहित्यिक अवदान के परिप्रेक्ष्य में आपको राजीव गांधी स्मृति सम्मान, अवधी अकेडमी सम्मान, पंडित गंगासागर शुक्ल सम्मान, बलवीर सिंह 'रंग' पुरस्कार से अलंकृत किया जा चुका है।  
संपर्क - ग्राम-गौरा रूपई, पोस्ट-लालूमऊ, रायबरेली (उ.प्र.)।

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

  1. नेह के नाते बचे जो
    देह में खोते गए
    हलक तक प्यासे कि पोखर-
    कूप के होते गए

    हम कहीं के ना रहे
    ना घाट, ना घर के


    वाह...वाह....दिनेश जी बहुत सुंदर भाव बोध..

    आभार सुंदर नवगीत के लियें...
    और भी पढ़वाएं..

    शुभ कामनाएँ..
    गीता पंडित .

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...