
पहाड़-
जहां ऊँचाई का प्रतीक हैं
खाई गहराई का
एक अत्यन्त ऊँचा है
दूसरा अत्यन्त नीचा,
न पहाड़ बनता है अचानक
और न ही खाई
पहाड़ को गर्व है अपने
ऊँचे होने पर
तो खाई को अपनी गहराई पर
एक लम्बी परम्परा- इतिहास है
दोनों के निर्माण के लिए
लेकिन-
दोनो ही विकल्प हैं
एक-दूसरे का
दोनों ही स्थिर संतुष्ट हैं
अपने-अपने स्थान पर
अपनी ही स्थिति में
अडिग अंगद के पांव सा
भूत से वर्तमान और भविष्य तक।
4 टिप्पणियाँ
सुन्दर |
जवाब देंहटाएंअवनीश तिवारी
bahut badhiya
जवाब देंहटाएंसुंदर...
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.