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जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा [ग़ज़ल] - श्यामल सुमन


वो घड़ी हर घड़ी याद आती रहे
गम भुलाकर जो खुशियाँ सजाती रहे

जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा
राख बन के भी खुशबू लुटाती रहे

कभी सुनता क्या बुत भी इबादत कहीं
घण्टियाँ क्यों सदा घनघनाती रहे

प्यार सागर से यूँ है कि दीवानगी
मिल के खुद को ही नदियाँ मिटाती रहे

डालियाँ सूनी है पर सुमन सोचता
काश चिड़ियाँ यहाँ चहचहाती रहे


रचनाकार परिचय:-
10 जनवरी 1960 को चैनपुर (जिला सहरसा, बिहार) में जन्मे श्यामल सुमन में लिखने की ललक छात्र जीवन से ही रही है। स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश की कई पत्रिकाओं में इनकी अनेक रचनायें प्रकाशित हुई हैं। स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में भी इनके गीत, ग़ज़ल का प्रसारण हुआ है।

अंतरजाल पत्रिका साहित्य कुंज, अनुभूति, हिन्दी नेस्ट, कृत्या आदि में भी इनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हैं।

इनका एक गीत ग़ज़ल संकलन शीघ्र प्रकाश्य है।

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13 टिप्पणियाँ

  1. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  2. एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. कभी सुनता क्या बुत भी इबादत कहीं
    घण्टियाँ क्यों सदा घनघनाती रहे.

    Waah, Khoobsurat bhaav !

    जवाब देंहटाएं
  4. एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...

    जवाब देंहटाएं
  5. आप सबके प्रति विनम्र आभार - स्नेह बनाये रखें। साहित्य शिल्पी के उच्चत्तम शिखर पर पहुँचने की कामना के साथ-

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  6. खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं
  7. जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा
    राख बन के भी खुशबू लुटाती रहे
    excellent

    जवाब देंहटाएं
  8. gajal bahut hi sunder hai or man ko chune wali

    जवाब देंहटाएं

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