
वो घड़ी हर घड़ी याद आती रहे
गम भुलाकर जो खुशियाँ सजाती रहे
राख बन के भी खुशबू लुटाती रहे
कभी सुनता क्या बुत भी इबादत कहीं
घण्टियाँ क्यों सदा घनघनाती रहे
प्यार सागर से यूँ है कि दीवानगी
मिल के खुद को ही नदियाँ मिटाती रहे
डालियाँ सूनी है पर सुमन सोचता
काश चिड़ियाँ यहाँ चहचहाती रहे
10 जनवरी 1960 को चैनपुर (जिला सहरसा, बिहार) में जन्मे श्यामल सुमन में लिखने की ललक छात्र जीवन से ही रही है। स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश की कई पत्रिकाओं में इनकी अनेक रचनायें प्रकाशित हुई हैं। स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में भी इनके गीत, ग़ज़ल का प्रसारण हुआ है।
अंतरजाल पत्रिका साहित्य कुंज, अनुभूति, हिन्दी नेस्ट, कृत्या आदि में भी इनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हैं।
इनका एक गीत ग़ज़ल संकलन शीघ्र प्रकाश्य है।
13 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंbeautiful rachnaa hai bandhu.
जवाब देंहटाएंAvaneesh
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकभी सुनता क्या बुत भी इबादत कहीं
जवाब देंहटाएंघण्टियाँ क्यों सदा घनघनाती रहे.
Waah, Khoobsurat bhaav !
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंआप सबके प्रति विनम्र आभार - स्नेह बनाये रखें। साहित्य शिल्पी के उच्चत्तम शिखर पर पहुँचने की कामना के साथ-
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
wah
जवाब देंहटाएंखूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
ati sunder gazal .
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा
जवाब देंहटाएंराख बन के भी खुशबू लुटाती रहे
excellent
अच्छी गज़ल...बधाई
जवाब देंहटाएंgajal bahut hi sunder hai or man ko chune wali
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.