
गूंजता सुमधुर स्वर धरा नभ
छेड़ा किसने स्वप्निल तान .
पल्लवित पुलकित पावन प्रकृति
सुना रही क्या मधुरिम गान .
व्याकुल तन था अंतस अधीर
जीवन प्रस्तर नीरव भान .
सुचि सुर संयत शीतल समीर
आ आ कर भरे हृदय प्राण .
व्यथित विकल विकराल वेदना
कुंठित दुख का नही निदान .
संगीत लहर विमल अनुभूति
जाग्रत प्राण सहज मुस्कान .
पावन अंचल मन प्रांगण मौन
संचित पावक गात म्लान .
झरनों सी झर झर धाराएँ
बिखरे सुर मृदु स्वप्न समान .
धधक धधक कर जल रही अग्नि
फूट फूट नयनों से धार .
बह बह सुर संगीत अलौकिक
हंस हंस भरते जीवन सार .
आतप तापित गरल प्रवाहित
शापित कलुषित उलझी राह .
सरगम सरिता श्वास जगाती
भरती जग जीने की चाह .
बहुत सुंदर रचना , धन्यवाद
उत्तर देंहटाएंsundar rachana !
उत्तर देंहटाएंAvaneesh
pyari kavita
उत्तर देंहटाएंsaader
rachana
अच्छी कविता...बधाई
उत्तर देंहटाएंएक सुंदर रचना के लियें
उत्तर देंहटाएंआभार आपका ...
गीता