
गूंजता सुमधुर स्वर धरा नभ
छेड़ा किसने स्वप्निल तान .
पल्लवित पुलकित पावन प्रकृति
सुना रही क्या मधुरिम गान .
व्याकुल तन था अंतस अधीर
जीवन प्रस्तर नीरव भान .
सुचि सुर संयत शीतल समीर
आ आ कर भरे हृदय प्राण .
व्यथित विकल विकराल वेदना
कुंठित दुख का नही निदान .
संगीत लहर विमल अनुभूति
जाग्रत प्राण सहज मुस्कान .
पावन अंचल मन प्रांगण मौन
संचित पावक गात म्लान .
झरनों सी झर झर धाराएँ
बिखरे सुर मृदु स्वप्न समान .
धधक धधक कर जल रही अग्नि
फूट फूट नयनों से धार .
बह बह सुर संगीत अलौकिक
हंस हंस भरते जीवन सार .
आतप तापित गरल प्रवाहित
शापित कलुषित उलझी राह .
सरगम सरिता श्वास जगाती
भरती जग जीने की चाह .
4 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर रचना , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंsundar rachana !
जवाब देंहटाएंAvaneesh
pyari kavita
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
एक सुंदर रचना के लियें
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
गीता
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