
आंखें भी रो रही हैं, ये अशआर भी है नम.
जिस शाख पर खड़ा था वो, उसको ही काटता
नादां न जाने खुद पे ही करता था क्यों सितम.
रिश्तों के नाम जो भी लिखे रेगज़ार पर
कुछ लेके आंधियां गईं, कुछ तोड़ते हैं दम.
मुरझा गई बहार में, वो बन सकी न फूल
मासूम-सी कली पे ये कितना बड़ा सितम.
रोते हुए-से जश्न मनाते हैं लोग क्यों
चेहरे जो उनके देखे तो, असली लगे वो कम.
11 मई 1949 को कराची (पाकिस्तान) में जन्मीं देवी नागरानी हिन्दी साहित्य जगत में एक सुपरिचित नाम हैं। आप की अब तक प्रकाशित पुस्तकों में "ग़म में भीगी खुशी" (सिंधी गज़ल संग्रह 2004), "उड़ जा पँछी" (सिंधी भजन संग्रह 2007) और "चराग़े-दिल" (हिंदी गज़ल संग्रह 2007) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त कई कहानियाँ, गज़लें, गीत आदि राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। आप वर्तमान में न्यू जर्सी (यू.एस.ए.) में एक शिक्षिका के तौर पर कार्यरत हैं।.....
9 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंजिस शाख पर खड़ा था वो, उसको ही काटता
जवाब देंहटाएंनादां न जाने खुद पे ही करता था क्यों सितम.
बहुत सुंदर लिखा है
अमिता
रिश्तों के नाम जो भी लिखे रेगज़ार पर
जवाब देंहटाएंकुछ लेके आंधियां गईं, कुछ तोड़ते हैं दम.
बहुत सुंदर
sundar rachnaa !
जवाब देंहटाएंAvaneesh
अच्छी गज़ल...बधाई
जवाब देंहटाएंमुरझा गई बहार में, वो बन सकी न फूल
जवाब देंहटाएंमासूम-सी कली पे ये कितना बड़ा सितम
बहुत अच्छे....
आभार
गीता
too good
जवाब देंहटाएंAap sabhi ka abhinandan karti hoon aur sahitya shilpi ke samast team ko ki hamari rachnaon ki prastuti ke liye. Paathak aur lekha ek doosre ke poorak hai..kabhi koi kami bhi ho to us or ishara karne mein koi harz nahin..
जवाब देंहटाएंshubhkamnaon sahit
अच्छी प्रस्तुति.........परिचय कराने के लिए शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.