
पसीने से तरबतर रामेश्वर ने अपने टूटे-फूटे घर में दरवाज़े के नाम पर लटक रहे मैले कपडे को हटाया और अन्दर प्रवेश किया। कंधे पर लटक रहे झोले को एक तरफ रख दिया। उसका पूरा शरीर दर्द से कराह रहा था। पूरे दिन गलियों-सडकों पर घूमने से क्या मिला? चंद सिक्के और कुछ आटा। इन सबके लिए भी उसको न जाने कितने लोगों के सामने हाथ फैलाने पडे और अनगिनत दुआएं देनी पडी, तब जाकर जो कुछ भी मिला, उसे लोग 'भीख' ही तो कहते हैं और तरस खाकर उसकी झोली में डाल देते हैं। यही सब सोचता हुआ रामेश्वर जमीन पर पसर गया।
रामेश्वर ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई, ''भागू जल्दी से पानी का लोटा तो लाना। बहुत प्यास लगी हुई है।''
थोडी ही देर में भागू पानी का लोटा लेकर आई और रामेश्वर को पानी पिलाया और भागू रामेश्वर के पास ही बैठ गई। भागू रामेश्वर से बातें करते-करते रामेश्वर का झोला संभालने लगी। झोले में हाथ डालने पर एक किताब उसके हाथ आई। वह किताब हाथ में लिए रामेश्वर को गौर से देखने लगी।
''अरे भागू यह किताब रास्ते में पडी मिली। काफी देर तक वहीं बैठा रहा। सोचा जिसकी होगी वह आयेगा, लेकिन कोई नहीं आया।'' रामेश्वर ने कहा।
''हमारे किस काम की यह किताब?'' भागू बोली।
''हाँ बात तो सही है।'' काश हम भी हमारे बच्चों को पढा सकते। भीख मांगते-मांगते मुझे भी शर्म आने लगी है और अपने बच्चों को भी मैंने इस भीख के धंधे में डाल दिया है। बच्चों का जिक्र आते ही तुरन्त रामेश्वर बोला, ''गोमन्द और मीरा कहाँ है? क्या वे अभी तक नहीं आए?''
''भटक रहे होंगे दोनों गलियों में। कुछ मिलेगा तो आ जायेंगे।'' भागू कह ही रही थी तभी गोमन्द और मीरा दोनों ने घर में प्रवेश किया और माँ-बापू के पास आकर बैठ गए। गोमन्द की निगाह क़िताब पर पडी। वह किताब उठाकर पन्ने पलटने लगा।
भागू ने गोमन्द की ओर देखते हुए कहा, ''बेटा! तू बता आज तेरा दिन कैसा बीता? तेरे थैले में क्या है?''
गोमन्द ने अपना थैला बिना खोले ही अम्मा की तरफ सरका दिया। भागू को आश्चर्य हुआ जो अपना थैला किसी को भी नहीं खोलने देता। आज एकबार कहते ही उसने अपना थैला मुझे सौंप दिया। जरूर कुछ बात है।
''गोमन्द क्या हुआ? आज तू उदास लग रहा है।'' भागू ने पूछा।
''नहीं अम्मा, कुछ भी तो नहीं।'' हल्की सी मुस्कान बिखेरते हुए गोमन्द बोला।
''फिर तेरा चेहरा क्यों उतरा हुआ है? और एक बार कहते ही तूने थैला मुझे सौंप दिया। क्या बात है?'' भागू ने गोमन्द के सिर पर हाथ सहलाते हुए कहा।
रामेश्वर और मीरा तो झोली में से रोटी निकालकर खाने में ही व्यस्त थे। उनका ध्यान गोमन्द की तरफ नहीं था।
भागू ने गोमन्द को दुलारते हुए कहा, ''आखिर क्या बात है बेटे?''
इतना सुनते ही गोमन्द सुबक-सुबक कर रोने लगा और अम्मा की गोद में सिर रखकर सो गया।
रोते- रोते कहने लगा, ''माँ आज मैं सुबह जब थैला लेकर निकला तब रास्ते में एक जबरदस्त एक्सीडेंट हो गया और सडक पर बापू जैसा दिखने वाला एक आदमी तडपता रहा। कोई भी उसकी मदद के लिए नहीं रूका। मैं भी दूर खडा देखता रहा। मेरी भी उसके पास जाने की हिम्मत नहीं हुई। उसका थैला सडक पर पडा रहा। उसके सिर से बहुत सारा खून बह चुका था। वह काफी देर तक तडपता रहा। फिर पुलिस वहाँ आ पहुँची। पुलिस ने जाँच पडताल करके पता लगाया कि बिल्लू नाम का यह एक भिखारी था जो भीख माँगकर अपना गुजारा करता था। उसका पूरा परिवार तो पहले ही चल बसा था। भूखमरी के कारण पूरा परिवार धीरे-धीरे मौत की आगोश में समा चुका था। केवल बिल्लू ही बचा था। उसके पीछे रोने वाला कोई नहीं था और ना ही कोई चिता को अग्नि देने वाला।''
''मैं पूरा दिन सड़क के किनारे बैठा सोचता रहा कि ऐसा हमारे साथ भी तो हो सकता है। कल जब लोग हमें भी भीख नहीं देंगे तो हमारा क्या होगा? हम क्या खायेंगे, क्या करेंगे? यही बात मुझे पूरे दिन से परेशान कर रही है।''
भागू गोमन्द की बात सुनकर सोच में पड गयी। उसे भी कल की चिन्ता सताने लगी। सोचने लगी आज तो है खाने के लिए, लेकिन कल क्या होगा?
भागू गोमन्द को सहलाते हुए कहने लगी, ''बेटा सब किस्मत का खेल है। भगवान भूखा उठाता जरूर है, लेकिन भूखा सुलाता नहीं। तू घबरा मत। कल से तू भीख के लिए मत जाना। मैं और तेरे बापू ही जायेंगे। बेटे अभी तो तेरे खेलने-कूदने के दिन हैं।'' कहते-कहते भागू की आँखों से आँसू गिरने लगे।
एक आंसू की बूंद गोमन्द के चेहरे पर गिरी। माँ को रोता देखकर गोमन्द का भी गला भर आया। रूआंसे गले से कहने लगा, ''अम्मा तू रो मत। मैं कुछ काम करूँगा और फिर देखना हम लोगों को कभी भीख मांगनी नहीं पडेगी।''
भागू ने गोमन्द को उठाकर गले से लगा लिया और अपने हाथ से रोटी खिलाने लगी।
''देख तो मीरा कितना प्यार है माँ-बेटे में? जैसे इस घर में सिर्फ ये दोनों ही रहते हों और दूसरा कोई नहीं। मेरी मीरा को मैं प्यार करूंगा। ''आजा बेटी'' कहकर रामेश्वर ने मीरा को अपनी गोद में बिठा लिया।
आधी रात बीत चुकी थी। सब लोग गहरी नींद में थे। लेकिन गोमन्द अब तक केवल करवटें ही बदल रहा था। लाख कोशिश के बावजूद भी वह सो नहीं पा रहा था। उसने मन ही मन पक्का निर्णय कर लिया कि अब मैं भीख माँगने नहीं जाऊँगा। सुबह होते ही कोई न कोई काम सीखने जाऊँगा।
पूरी रात मन में बेचैनी रही। बेचैन आँखों में नींद कहाँ रहती है? इसका एहसास गोमन्द को अब हुआ था। पूरी रात कई वर्षों के समान लग रही थी जो बीतने का नाम ही नहीं ले रही थी।
चिड़ियों की चहचहाट सुनकर गोमन्द उठा। मुँह पर पानी के छींटे मारे और निकल पडा काम की तलाश में।
बाजार में जाकर एक दुकान के आगे बैठ गया। ये दुकान श्यामलाल मिस्त्री की थी जो मोटर साइकिलों के नामी-गिरामी मिस्त्री थे। लोग दूर-दराज से उनके पास अपनी गाडियाँ रिपेयरिंग के लिए लेकर आते थे। गोमन्द कई बार इस दुकान से एक-एक रूपये के सिक्के भीख में ले चुका था। श्यामजी कई बार गोमन्द को टोकते थे कि कोई काम-वाम क्यों नहीं करता। लेकिन फिर बच्चा जानकर एक रूपया दे ही देते थे।
गोमन्द को पक्का यकीन था कि श्यामजी उसे काम पर जरूर रख लेंगे। सवेरे से ही वह दुकान के बाहर श्यामजी की प्रतीक्षा कर रहा था। धीरे-धीरे सारी दुकानें खुलने लगी। बाजार सजने लगा। सभी अपनी-अपनी दुकानें जचा रहे थे।
तभी रास्ते से आते हुए श्यामजी दिखाई दिये। पास आते ही वह उठ खडा हुआ और उसके कुछ कहने से पहले ही श्यामजी बोल पडे, ''अरे नालायक तू इतनी सुबह यहाँ क्या लेने आया है? सुबह-सुबह मैं कुछ नहीं दूँगा। दोपहर में आना।'' कहकर श्यामजी अपनी दुकान खोलने में व्यस्त हो गये।
''श्याम बाबा, मेरी बात तो सुनो!'' गोमन्द के इतना कहते ही वो उस पर झल्ला उठे, ''सुनाई नहीं देता? कहा न दोपहर में आना। गाँव बसा नहीं और भीखमंगे पहले ही आ गये। चल निकल यहाँ से। एक तो स्साला कामचोर राजू नहीं आया। सारा काम मुझे ही करना पडेगा और ऊपर से तू?''
''श्याम बाबा मैं भीख माँगने नहीं आया हूँ। मैं तो काम की तलाश में आपके पास आया हूँ। आप कोई काम दिला दो। अब मैंने भीख माँगना छोड दिया है।'' गोमन्द ने कहा।
''ले पकड झाडू और लग जा सफाई में।'' श्याम जी ने झाडू गोमन्द के हाथ में थमाते हुए कहा।
गोमन्द बहुत खुश हुआ। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। बिना पगार पूछे ही झाडू थाम लिया और लग गया दुकान की साफ-सफाई में।
पूरा दिन काम करते-करते कैसे बीत गया। पता ही नहीं चला।
रात को दुकान मंगल करते समय श्यामजी बोले, ''मन लगाकर काम करेगा तो मैं तेरी जिन्दगी बना दूँगा। तुझे गाड़ियों का बेहतरीन मिस्त्री बना दूँगा। अभी तो मैं तुझे पाँच सौ रूपये महीना ही दे पाऊँगा। लेकिन धीरे-धीरे पगार बढा दूँगा। क्या बोलता है?''
गोमन्द ने तुरन्त हाँ कर दी। मन में बार-बार खयाल आ रहा था कि भीख माँगने से तो यह काम लाख गुना अच्छा है। श्यामजी कितने भले इन्सान हैं। पूरा रास्ता इन्हीं विचारों में गुजरा।
घर पहुँचते ही अम्मा-बापू दोनों गोमन्द को देखकर रोने लगे।
''कहाँ गया था? पूरा दिन तुझे ढूंढते रहे। हमें बताकर तो जाता। क्या हमने कभी तुझे कहीं जाने से रोका है?'' सवालों की झडियों के साथ आँसुओं की बौछारें भी चल रही थी।
''बापू मैं श्यामजी की दुकान में काम पर लग गया हुआ हूँ। श्याम जी मुझे पाँच सौ रूपये महीना देंगे और काम सिखाने का भी वादा किया है। वो कह रहे थे कि तुझे गाडियों का बेहतरीन मिस्त्री बना दूँगा।''
''तेरी यही इच्छा है, तो तू कर, हम तुझे नहीं रोकेंगे।'' कहकर रामेश्वर ने गोमन्द को सीने से लगा लिया।
भागू ने कल की बची हुई रोटी परोस कर गोमन्द के सामने रख दी और बोली, ''ले गोमन्द, अब तो कुछ खा ले। तेरे बाबा और मैंने पूरे दिन से कुछ नहीं खाया है। तेरी ही राह देख रहे थे।''
गोमन्द ने पूरी तरह से सूख चुकी रोटी का टुकडा उठाया और रामेश्वर को खिलाने लगा। रामेश्वर की आँखों से अश्रु धारा बहने लगी।
''बापू अब रो मत। आज के बाद आप लोगों को बिना बताये कहीं नहीं जाऊँगा।'' गोमन्द ने बापू की आँखों से आँसू पोंछते हुए कहा।
''बेटा तुम बहुत समझदार हो। हमने भी समय रहते कोई हाथ का काम सीखा होता तो हमें भी ये दिन ना देखने पडते।'' कहकर रामेश्वर जार-जार रोने लगा।
''बापू जो बीत गया उसे भूल जाओ। श्यामजी कहते हैं कि जब जागो तभी सवेरा। आप कहें तो मैं आपके लिए भी श्यामजी से बात करूं। वह बहुत ही भले इंसान हैं।''
''ठीक है। ले अब तू भी खा।'' कहकर रामेश्वर ने गोमन्द को एक कौर खिलाया।
''और हाँ बापू श्यामजी मुझे एक स्कूल में भी भर्ती करवायेंगे।'' गोमन्द की बात सुनकर रामेश्वर को लगा कि नया सवेरा हो चुका है।
5 टिप्पणियाँ
कहानी अच्छी है | लेखन भी अच्छा है |
जवाब देंहटाएंफिर भी कथ्य कुछ पुराना सा ? कुछ नया चाहिए ? :)
अवनीश तिवारी
KAHANI ACHCHHI HAI
जवाब देंहटाएंBADHAI
RACHANA
अच्छी लगी कहानी...
जवाब देंहटाएंएक अच्छी कहानी के लियें
जवाब देंहटाएंबधाई आपको..
गीता पंडित.
बहुत अच्छी कहानी...बधाई
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