
श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' का जन्म 10 अक्तूबर 1959 को हुआ। आप आपात स्थिति के दिनों में लोकनायक जयप्रकाश के आह्वान पर छात्र आंदोलन में सक्रिय रहे।
आपकी रचनाओं का विभिन्न समाचार पत्रों, कादम्बिनी तथा साप्ताहिक पांचजन्य में प्रकाशन होता रहा है। वायुसेना की विभागीय पत्रिकाओं में लेख निबन्ध के प्रकाशन के साथ कई बार आपने सम्पादकीय दायित्व का भी निर्वहन किया है। वर्तमान में आप वायुसेना मे सूचना प्रोद्यौगिकी अनुभाग में वारण्ट अफसर के पद पर कार्यरत हैं तथा चंडीगढ में अवस्थित हैं।
आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में हैं।
आपकी रचनाओं का विभिन्न समाचार पत्रों, कादम्बिनी तथा साप्ताहिक पांचजन्य में प्रकाशन होता रहा है। वायुसेना की विभागीय पत्रिकाओं में लेख निबन्ध के प्रकाशन के साथ कई बार आपने सम्पादकीय दायित्व का भी निर्वहन किया है। वर्तमान में आप वायुसेना मे सूचना प्रोद्यौगिकी अनुभाग में वारण्ट अफसर के पद पर कार्यरत हैं तथा चंडीगढ में अवस्थित हैं।
आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में हैं।
तू मत डरपा
मैं जानूं
तम की कोख
सवेरा उपजे
उपजेगा मैं मानूँ.
क्लान्त सभी
भयभीत पखेरू
नीड़ खोजते जाते
अस्त हुये
रवि की किरणों से
इन्द्रधनुष उपजाते
सतरंगी स्वप्नो
में आकर
आशा मुझे जगाये
तम का भय
अब शेष नहीं है
पास सवेरा आये
'नया सवेरा'
आयेगा ही
भयातीत हो मानूं
तम की कोख
सवेरा उपजे
उपजेगा मैं मानूँ.
3 टिप्पणियाँ
एक सुन्दर, बढ़िया रचना |
जवाब देंहटाएंअवनीश तिवारी
मुम्बई
अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंअपना ब्लॉग मासिक रिपोर्ट
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.