रिन्की, बबली जल्दी आओ
खाली प्लाट में दीवार के पीछे
घनी झाडी के पत्तों के नीचे
गली की काली कुतिया के
छोटे-छोटे,प्यारे-प्यारे बच्चे देखें
दो काले हैं, दो चितकबरे
नर्म रूई के फ़ोहे से है सब
आंख मींच कर कूं-कूं करते
भला ये आंखे खोलेंगे कब
बच्चे खडे हैं वहां लाईन लगा कर
कटीले कांटे पत्थर दूर हटा कर
पेड की टहनी और टाट लगा कर
सबने है इक छोटा घर बनाया
कोई ब्रेड तो कोई बिस्कुट लाया
काली ने लेकर उसे झट छुपाया
इधर उधर घूम रही है पूंछ हिलाती
जीभ से पिल्लों को सहलाती
बहस छिडी है उनके नामों को लेकर
मिन्टू बडी देर से खडा सोच रहा है
कैसे एक को घर उठा ले जाऊं मै
इन बाकी सब को चकमा दे कर
मोहिन्दर कुमार का जन्म 14 मार्च, 1956 को पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में हुआ। आप राजस्थान यूनिवर्सिटी से पब्लिक- एडमिन्सट्रेशन में स्नातकोत्तर हैं।
आपकी रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं साथ ही साथ आप अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं। आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में एक हैं। वर्तमान में इन्डियन आयल कार्पोरेशन लिमिटेड में आप उपप्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं।
1 टिप्पणियाँ
मोहिंदर जी, बहुत सुन्दर रचना है आपकी, बिलकुल बचपन सी मासूम, बधाई स्वीकारें |
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