
बाद मुद्दत के उससे जो मिलने गया,
देख रजनी सखी मुस्कराने लगी
एक छोटी सी बदली को कर सामने,
ओट में चाँद-मुखड़ा छुपाने लगी
रूप छुपता है कब ऐसे पर्दों से पर,
चाँदनी सारे अंबर पे छायी रही
और गगन-ओढ़नी पे चमकते हुये,
उन सितारों को भी नींद आई रही
खुद में सिमटी रही मानिनी मान से,
मैं रह-रह के उसको मनाता रहा
झूठा गुस्सा भी आखिर हवा हो गया,
चाह की चाँदनी झिलमिलाने लगी
रात रानी की खुशबू लिये गोद में,
एक झोंका बदन को यूँ ही छू गया
सारे दिन की थकन और जहाँ भर के ग़म
मिट गये करके वो जादू गया
मौन अधरों से गाती रही रागिनी,
चुपके सुनता रहा बंद पलकें किये
हाथ थामे हुये निद्रा-पथ से मुझे
ले के सपनों की दुनिया में जाने लगी
अजय यादव अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा आपकी रचनायें कई प्रमुख अंतर्जाल पत्रिकाओं पर प्रकाशित हैं।
आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में हैं।
7 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंबसंत और फागुन के मेल मिलाप के बीच ऐसी रचना सुन्दर संगम सा है |
जवाब देंहटाएंअवनीश तिवारी
bahit achchhi......
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (26.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बाद मुद्दत के उससे जो मिलने गया,
जवाब देंहटाएंदेख रजनी सखी मुस्कराने लगी
एक छोटी सी बदली को कर सामने,
ओट में चाँद-मुखड़ा छुपाने लगी
bahut sunder kavita hai
badhai
amita
मौन अधरों से गाती रही रागिनी,
जवाब देंहटाएंचुपके सुनता रहा बंद पलकें किये
हाथ थामे हुये निद्रा-पथ से मुझे
ले के सपनों की दुनिया में जाने लगी....
बहुत ही सुंदर कविता ...बहुत ही गहरे भाव !
मिट गये करके वो जादू गया
जवाब देंहटाएंमौन अधरों से गाती रही रागिनी.....
अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.