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हवा [कविता] - महेंद्र भटनागर

hindi poem (kavita)
ओ प्रिय
सुख-गंध भरी
मदमत्त हवा!
मेरी ओर बहो —
हलके-हलके!
.
बरसाओ
मेरे
तन पर, मन पर
शीतल छींटें जल के!
.
ओ प्यारी
लहर-लहर लहराती
उन्मत्त हवा!
निःसंकोच करो
बढ़ कर उष्ण स्पर्श
मेरे तन का!
.
ओ, सर-सर स्वर भरती
मधुरभाषिणी
मुखर हवा!
चुपके-चुपके
मेरे कानों में
अब तक अनबोला
कोई राज़ कहो
मन का!
.
आओ!
मुझ पर छाओ!
खोल लाज-बंध
आज
आवेष्टित हो जाओ,
आजीवन
अनुबन्धित हो जाओ!
रचनाकार परिचय:-
महेन्द्र भटनागर जी वरिष्ठ रचनाकार है जिनका हिन्दी अंग्रेजी साहित्य पर समान दखल है। सन् 1941 से आरंभ आपकी रचनाशीलता आज भी अनवरत जारी है। आपकी प्रथम प्रकाशित कविता 'हुंकार' है; जो 'विशाल भारत' (कलकत्ता) के मार्च 1944 के अंक में प्रकाशित हुई। आप सन् 1946 से प्रगतिवादी काव्यान्दोलन से सक्रिय रूप से सम्बद्ध रहे हैं तथा प्रगतिशील हिन्दी कविता के द्वितीय उत्थान के चर्चित हस्ताक्षर माने जाते हैं। समाजार्थिक यथार्थ के अतिरिक्त आपके अन्य प्रमुख काव्य-विषय प्रेम, प्रकृति, जीवन-दर्शन रहे हैं। आपने छंदबद्ध और मुक्त-छंद दोनों में काव्य-सॄष्टि की है। आपका अधिकांश साहित्य 'महेंद्र भटनागर-समग्र' के छह-खंडों में एवं काव्य-सृष्टि 'महेंद्रभटनागर की कविता-गंगा' के तीन खंडों में प्रकाशित है। अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।

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4 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही मधुर रचना है |



    अवनीश तिवारी

    मुम्बई

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर रचना के लियें
    आभार आपका...

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. ओ, सर-सर स्वर भरती
    मधुरभाषिणी
    मुखर हवा!
    चुपके-चुपके
    मेरे कानों में
    अब तक अनबोला
    कोई राज़ कहो
    मन का!
    ati sunder
    badhai
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  4. इस मधुर मलय समीर की किसको प्रतीक्षा नहीं रहती...
    मन आंगन महकाने के लिये

    जवाब देंहटाएं

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