
आया बसंत
बसंती चादर से
सुशोभित वसुंधरा
सूखे पत्ते उड़ते
इधर-उधर
दरख़्तों पर सुशोभित
बासंती कोमल पत्तियाँ
आम बौरा गए
हो गए बासंती
मधुर सुगन्ध से
सुगन्धित वसुन्धरा
साड़ी में लिपटी
बलखाती, मुस्काती
लकदक यौवन के
मद में मदमाती नवयौवना
धूल के गुबार
उड़ते पत्तों का बवंडर
सबको चिढ़ाते
‘शान से इठलाते
बासन्ती पत्तों से लिपटे दरख़्त
ऋतु बदली आया बसन्त
रचनाकार परिचय:-
शरद चन्द्र गौड बस्तर अंचल में अवस्थित हैं। आपका बस्तर क्षेत्र पर गहरा अध्ययन व शोध है।
आपकी प्रकाशित पुस्तकों में बस्तर एक खोज, बस्तर गुनगुनाते झरनों का अंचल, तांगेवाला पिशाच, बेड नं 21, पागल वैज्ञानिक प्रमुख हैं। साहित्य शिल्पी के माध्यम से अंतर्जाल पर हिन्दी को समृद्ध करने के अभियान में आप सक्रिय हुए हैं।
6 टिप्पणियाँ
है झरा इस पल में रस
जवाब देंहटाएंये कौन सा है ,
शब्द हीना हो के भी जो बोलता है,
माँ ! तुम्हारी अर्चना में शब्द एक-एक डोलता है |
बसंत पंचमी की सभी मित्रों को शुभ कामनाएँ...
गीता पंडित
sundar rachnaa
जवाब देंहटाएंAvaneesh
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंआप को वसंत की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
सुन्दर रचना बसंत पर... बसंत पर शुभकामनायें ..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंआप को वसंत की ढेरों शुभकामनाएं!
suresh tiwari
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.