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निर्बंध हुआ है हर यौवन ..... होली विशेष [कविता] - श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’



सजनी रजनी तम चुनर ओढ़
अभिकम्पित शुभ्र ज्योत्सना से

होली आहट सुन जाग रही
चुपके चुपके से भाग रही


स्मित अधरों संग खुले नयन
सर पर नीरज द्रुम दल खिलते
अरुणिम अम्बर रंग भरा थाल
उषा बिखेरती है गुलाल

भावी सपने बिहगों के दल
नीले अम्बर में खोल पंख
बंदी पिंजर से हरिल खोल
उन्मुक्त भावना का बहाव
धानी परिधानों से सज्जित
अवनी आँचल से कनक लुटा

सजती क्षैतिज का ले दरपन
बौराई अमवा की डालें
झूमें खाकर मदमस्त भंग
यष्टि में फैलाती सुगंध


बादल निचोड़ ले मुठ्ठी से
कर डाल जलद घन से वर्षा
अम्बर तम मुख मल दे गुलाल
अंतस में स्नेह फुहार लिये

पापों की गठरी ले समेट
मन आंधी मैला कुत्सित मन
कर डाल आज होलिका दहन
चहुँओर निमंत्रण भावों का
निर्बंध हुआ है हर यौवन

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7 टिप्पणियाँ

  1. सभी मित्रों
    आपको एवं आपके परिवारजनों को
    होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.....

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी रचना और अच्छा चित्र भी।होली की शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  3. पापों की गठरी ले समेट
    मन आंधी मैला कुत्सित मन
    कर डाल आज होलिका दहन
    चहुँओर निमंत्रण भावों का
    निर्बंध हुआ है हर यौवन

    होली की शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  4. श्रीकांत जी होली की हार्दिक शुभकामनायें। जिस भाषा और भाव की रचनायें आप लिखते हैं वे दुर्लभ हो गयी हैं।

    जवाब देंहटाएं

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