
दिल गुलाबी , जिस्म सतरंगा सा है
आज हवाओं में अजब नशा सा है
जवान आरिज़ में और सुर्खियाँ भर दें
बैचैन हाथों में सुर्ख रंग लगा सा है
धीरे - धीरे छा रही होली की बयार
कोई खुश है तो कोई डरा सा है
ज़मीं कहती है प्यार से भिगो दो आसमान
मोहब्बतों से खुद आसमान भरा सा है
तुम मुझे चाह के भी छोड़ नहीं पाओगे
रिश्ता अपना ऐसी डोर से बंधा सा है
होली के साथ फेरे ले लिए सात हमने
ज़माना बनके गवाह चुपचाप खड़ा सा है
कहीं मस्ती , कही हुल्लड़, कहीं ठिठोली देखो
रंगों के रंग में मेरा वतन रंगा सा है
वो मुझे चूम ले और रंग बिरंगा कर दे
ख्वाब "दीपक" निगाहों में एक हरा सा है
6 टिप्पणियाँ
बढिया ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं।
Bahut Khub. Happy Holi.
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
कहीं मस्ती , कही हुल्लड़, कहीं ठिठोली देखो
जवाब देंहटाएंरंगों के रंग में मेरा वतन रंगा सा है
अच्छी प्रस्तुति की बधाई।
होली की शुभकामना। बहुत अच्छी ग़ज़ल है।
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएं रचना बहुत खूब है भाव पूर्ण है l किन्तु इसे ग़ज़ल नही कह सकते है l
जवाब देंहटाएं7500042420
Gjb
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.