HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

बेटी तो अंगूर की घर के अंदर मिलती है [होली पर विशेष] - मोईन शम्सी

अपना हर इक यार तो खाया-खेला लगता है,
माल मेरा कटता उनका ना धेला लगता है।

जितने पियक्कड़ फ़्रैंड्स हैं डेली आन धमकते हैं,
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है।

बेटी तो अंगूर की घर के अंदर मिलती है,
अंडों और नमकीन का बाहर ठेला लगता है।

खोल के बोतल सीधे दारू ग़ट-ग़ट पीते हैं,
पैग, गिलास और पानी एक झमेला लगता है।

दबा के पीकर हो के टल्ली डोला करते हैं,
उनमें से हर एक बड़ा अलबेला लगता है।

मना करे जो पी के ऊधम उन्हें मचाने से,
झूमते उन सांडों को बहुत सड़ेला लगता है।

खोल के घर में मयख़ाना ख़ुद पीता है लस्सी,
भीड़ है फिर भी ’शमसी’ बहुत अकेला लगता है।

एक टिप्पणी भेजें

6 टिप्पणियाँ

  1. भूल जा झूठी दुनियादारी के रंग....
    होली की रंगीन मस्ती, दारू, भंग के संग...
    ऐसी बरसे की वो 'बाबा' भी रह जाए दंग..

    होली की शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  2. होली की हार्दिक शुभकामनाएँ......

    जवाब देंहटाएं
  3. dhanyawaad deepak ji, manoj ji and geeta ji ! aap sab ko aur sabhi ko holi mubaarak ! preshak: moin shamsi

    जवाब देंहटाएं
  4. खोल के घर में मयख़ाना ख़ुद पीता है लस्सी,
    भीड़ है फिर भी ’शमसी’ बहुत अकेला लगता है।

    होली की शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...