टप् टप् टप् टप् रोज टपकते|
अगर पेड़ में रुपये फलते|
सुबह पेड़ के नीचे जाते
ढ़ेर पड़े रुपये मिल जाते
थैलों में भर भर कर रुपये
हम अपने घर में ले आते
मूंछों पर दे ताव रोज हम
सीना तान अकड़के चलते|
कभी पेड़ पर हम चढ़ जाते
जोर जोर से डाल हिलाते
पलक झपकते ढेरों रुपये
तरुवर के नीचे पुर जाते
थक जाते हम मित्रों के संग
रुपये एकत्रित करतॆ करते|
एक बड़ा वाहन ले आते
उसको रुपयों से भरवाते
गली गली में टोकनियों से
हम रुपये भरपूर लुटाते
वृद्ध गरीबों भिखमंगों की
रोज रुपयों से झोली भरते|
निर्धन कोई नहीं रह पाते
अरबों के मालिक बन जाते
होते सबके पास बगीचे
बड़े बड़े बंगले बन जाते
खाते पीते धूम मचाते
हम सब मिलकर मस्ती करते|
3 टिप्पणियाँ
nice very nice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
NA BABA NA AISA MAT KARNA.
जवाब देंहटाएंMURGI WALA HAAL HOGA EN PEDO (TRESS KA BHI)
KAAM KAUN KAREGA.
RAJA MIDAS KI KAHANI SUNI H NA ...
PLZ ..
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.