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एक चेहरा [कविता] - सुशील सरना


एक चेहरा एक पल में
लाखों चेहरे जी रहा है
कौन जाने कौन सा चेहरा
हंस के आंसू पी रहा है

एक चेहरा लगता है अपना
एक क्यों बेगाना लगे
कौन दिल की बात कहता
कौन होठों को सी रहा है

कत्ल करते रोज इक चेहरा
रोज इक जन्म हो रहा है
एक जागे किसी की खातिर
आगोश में इक सो रहा है

एक चेहरा ख्वाब बन के
ख़्वाबों में बस जाता है
एक चेहरा अक्स बन के
नींदें किसी की पी रहा है

एक चेहरा अपनी दुनिया
हर चेहरे में बसाता है
एक चेहरा दुनिया में
बन के तमाशा जी रहा है,
बन के तमाशा जी रहा है….

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4 टिप्पणियाँ

  1. एक चेहरा दुनिया में
    बन के तमाशा जी रहा है,

    -बहुत बढ़िया पंक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  2. एक चेहरा लगता है अपना
    एक क्यों बेगाना लगे
    कौन दिल की बात कहता
    कौन होठों को सी रहा है
    EXCELLENT LINES ..

    जवाब देंहटाएं

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