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अन्ना अन्ना [व्यंग्य] - शक्ति प्रकाश



(यह व्यंग्य पूर्णतः काल्पनिक और मनगढंत है, इसका किसी जीवित या मत व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है, यदि ऐसा होता है तो यह मात्र संयोग माना जायेगा।)
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वहॉ बड़ा सा तम्बू लगा था, मंच पर कुछ लोग गावतकियों के सहारे अधलेटे पड़े थे, प्रत्यक्षदर्शी बता रहे थे वे अनशन पर थे पर उनके चेहरे पर चमक थी, शौकिया भूखों के मुखमंडल से भूख का प्रमाण परिलक्षित होता भी नहीं, सामने टी.वी. का बड़ा स्क्रीन था जिस पर अन्ना की खबरें लगातार आ रही थीं, लेकिन किसी की दिलचस्पी उन खबरों में नहीं थी, बढ़िया साउन्ड सिस्टम पर एक पैरोडी चल रही थी जिसे कल शाम को ही एक लोकल कवि ने लिखा था, रात को ही किसी ‘ मैडम बैठ बुलैरो में.....’ छाप गायक - गायिकाओं ने गाया था, वहीं बिना टैक्स के चलने वाली लोकल सी.डी. कम्पनी के निर्माता ने संगीतबद्ध कराया था, बताया जाता है कि किसी ने मजदूरी नहीं ली या नहीं दी गई एक ही बात है आखिर इतने बड़े आन्दोलन के प्रति कलाकारों का भी नैतिक दायित्व होता है, हालॉकि सुबह से उसकी दो सौ सी.डी. निकल चुकी थीं, ये दीगर बात थी। नये लड़के लड़की उत्साह में तम्बू के सामने नाच रहे थे -

अन्ना अन्ना, अन्ना अन्ना। प्यारा अन्ना
झुकती है कुर्सी झुकाने वाला चाहिये अन्ना अन्ना, अन्ना अन्ना।
नेतों को फॉसी लगाने वाला चाहिये अन्ना अन्ना, अन्ना अन्ना।
भारत को फिर से उठाने वाला चाहिये
सोने की चिड़िया बनाने वाला चाहिये
अन्ना अन्ना, अन्ना अन्ना। प्यारा अन्ना

मुझे अपनी जनरल नॉलेज पर भारी असंतोष हुआ पिछले तीस साल से मैं अन्ना हजारे को समाजसेवी समझता आया था आज पता चला कि उन्होंने जल्लाद वाला काम भी शुरू कर दिया है और तो और अपन सरकारी नौकरी करते रहे बड़े मियॉ राजा मिडास से मिट्टी को सोना बनाने की टैक्नोलॉजी कब कबाड़ लाये, पता ही नहीं चलने दिया। मैंने शंका समाधान के लिये अपने परिचित पंडित गिरधारी लाल जी घुड़सैनिया की ओर देखा, वे समझ गये-

‘ लगता है फॉसी और सोने की चिड़िया आपको तकलीफ दे रही है?’

‘ आपको नहीं लगता कि ये कुछ ज्यादा है ?’

‘ लगता तो है, लेकिन ये रूपक यानी मैटाफर है, इसमें मर्यादाऐं नहीं रहतीं, अब बाबा तुलसीदास रामभक्ति में लिख गये - कोटि विप्रवध लागहि जाहू , आवहिं सरन तजहु नहिं ताहू, अगर आपकी तरह मायावती जी भी बाबा तुलसीदास और रामजी को लिटरली मानना शुरू कर दें, तो हम बामन हैं कितने? कुल बारह चौदह बहुजनों को रामजी की सरन में जाना है और बामनों का सूपड़ा साफ, इसलिये भावना को समझो बस ....’

‘ समझ लिया लेकिन ये भूख हड़ताल से ज्यादा उत्सव लग रहा है, अब देखिये भूखों के चेहरे पर चमक है, लड़के लड़कियॉ तरह तरह के डान्स फॉर्म दिखा रहे हैं, डिस्को, सालसा, जॉज, पॉप, लाकिंग पापिंग वगैरा ’

‘ कारण है भाई, लेकिन तुम इन्हें दुखी क्यों देखना चाहते हो?’

‘ क्योंकि ये सब भ्रष्टाचार से दुखी हैं और नाच कूद वाला दुख पहली बार देखा है मैंने’

‘ देखो बिना मनोरंजन के तो अब भागवत भी नहीं होती, उसमें चुटकले, सास बहू के संवाद डालकर उसे सरस बनाना पड़ता है हमें, अब चार पॉच दिन एक दूसरे की रोनी सूरत दिखी तो आन्दोलन चौबीस घंटे न चले’

‘ वो भी ठीक है लेकिन बारह तरह की डान्स फार्म..?’

‘ भ्रष्टाचार से इतर महत्वाकांक्षा भी तो कुछ है, यहॉ फिल्म वाले भी मौजूद हैं, एकाध छोरा छोरी पसंद आ जाय तो ..? बिना मेहनत के निकल पड़ी...’

‘ बिना मेहनत......? ये भी भ्रष्टाचार जैसा ही कुछ हुआ? आपको नहीं लगता कि महत्वाकांक्षा भ्रष्टाचार की अम्मा है, नही...जरा नैतिक होकर सोचिये ’

‘ अब तुम तो सतयुग में ही पहुँच गये महाशय कि सपने में संपत्ति दान की तो सुबह उठते ही घरवाली भी महात्मा जी को पकड़ा दी और खुद चान्डाल बन गये ’

‘ खैर छोड़िये लेकिन मंच पर काफी नामी गिरामी लोग हैं वो देखिये बाबा जी....’

‘ हॉ बाबा जी का समर्थन है इस आन्दोलन को, अन्ना से पहले इन्होंने भी काफी काम किया है ’

‘ काम इन द सेन्स?’

‘ अब यार अंगरेजी मत फुरको, काम मतलब भ्रष्टाचार पर अटैक’

‘ भ्रष्टाचार या नेता ? ’

‘ एक ही बात है’

‘ मतलब सिर्फ नेता ही भ्रष्ट हैं ?’

‘ नहीं सरकारी अफसर भी, कर्मचारी भी ’

‘ अच्छा ? ये बाबा जी पैदाइशी पैसे वाले हैं?’

‘ ऐसा कुछ सुना तो नहीं, लेकिन तुम कटखने कुत्ते की तरह बाबा के पीछे क्यों लगे हो?’

‘ नहीं, मतलब बाबा के पास आजकल तो अरबों रूपये की संपत्ति है’

‘ बाबा को इतनी अकल तो है, नेताओं के पीछे लगने से पहले अपना सारा ब्यौरा तैयार कर लिया था’

‘ ब्यौरा तो खैर सारे नेताओं और अफसरों के पास भी मिल जायेगा, ये तो आपको भी पता है कि रिहायशी जमीन का बैनामा एग्रीकल्चरल लैन्ड में कैसे होता है, दो हजार रूपये फुट की जमीन दस हजार रूपये एकड़ में कैसे खरीदी जाती है, गुप्तदान के पैसे को वीर्य गाढ़ा करने और बाल उगाने की महॅगी दवाइयों में कैसे कन्वर्ट किया जाता है’

‘ मतलब ? ये व्यापार है, कोई हमें किसी भाव जमीन बेचे?हम अपनी दवाइयों को किसी भी भाव बेचें? आपकी गरज है तो खरीदो ’

‘ क्यों ? अन्ना ने तो अपने प्राविडैन्ट फन्ड का पैसा भी जनता को दे दिया था, खुद मंदिर के कमरे में रहता है, तो बाबा जी जन हित में दवाइयॉ और गुलाटियॉ फ्री में नहीं सिखा सकते ’

‘ तुम व्यर्थ बहस कर रहे हो यार बाबा के न बाल न बच्चे किस के लिये जोड़ेगा’

‘ महत्वाकांक्षा पंडित जी, अब आप बताओ हिन्दू मत के अनुसार सन्यास जीवन से होता है या समाज से ?’

‘ पहले तो समाज से ही होता है, बाद में जीवन से अपने आप हो जाता है’

‘ लेकिन इस बाबा ने समाज से न लेकर जीवन से ले रखा है, बल्कि पूरी दुनिया को दिला रहा है, ये मत खाओ वो मत खाओ, चालीस दिन का भोजन एक बूंद वीर्य, भोजन से मॉस, मॉस से रक्त, रक्त से मज्जा, मज्जा से वीर्य... इसे कौन समझाये कि इसके नियमों को माने बिना फिदेल कास्त्रो पचास साल तक सत्ता में रहा पिचासी की उम्र में भी दंड पेल रहा है, यहॉ बाबा हिन्दुस्तानियों का वीर्य गाढ़ा करते रहे, क्यूबा में कास्त्रो ने पैंतीस हजार स्त्रियॉ भोगी लीं और पचास साल तक लोकप्रिय भी बना रहा ’

‘ अब तुम छिछोरेपन पर आ गये’

‘ लो जी लो, तुम्हारा बाबा माइक लगा के यही बातें करे तो प्रवचन और हम आपके कान में भी कहें तो छिछोरापन ’

‘ अब छोड़ो यार वो देखो मंच पर सुपर स्टार....फलाना खान’

‘ ये यहॉ क्या कर रहे हैं?’

‘ भ्रष्टाचार का विरोध’

‘ अच्छा ये वही हैं ना जिनकी फिल्म में कन्ट्रोवर्सी तो नहीं होती लेकिन फिल्म रिलीज के पहले जान बूझकर कन्ट्रोवर्सी क्रियेट करते हैं ’

‘ जैसे...?’

‘ जैसे फिल्म रिलीज के पहले किसी खास सूबे के खिलाफ बयान देना परिणाम टाकीजों में आग तो फिल्म हिट, फिल्म रिलीज के वक्त आरिजनल लेखक से नूरा कुश्ती कि उससे धोखा हुआ है, परिणाम एक दूसरे को गाली गलौच फिल्म हिट, कलाकारों को पैसा न देना परिणाम उनका गला फाड़ना फिल्म हिट, ये भी भ्रष्टाचार जैसा ही कुछ है ’

‘ ये बिजनिस स्ट्रेट्जी है भाई ’

‘ बहुत अच्छे, जो ये झूठ बोल कर स्वांग करके करोड़ों कमायें वो स्टेट्जी, वही करके बाबू सौ रूपये कमाये वो भ्रष्टाचार ? अब भी इन्हें अन्ना ने चिट्ठी लिखी थी क्या? जो यहॉ चले आये ’

‘ नहीं समाज के प्रति नैतिक दायित्व है इनका उसका निर्वाह कर रहे हैं ’

‘ कोई निर्वाह फिर्वाह नहीं है पंडित जी, ये अन्ना को कैश करने आये हैं, अन्ना और गॉधी को फॉलो करना तो बड़ा मुश्किल है, महत्वाकांक्षा का हवन करना पड़ता है, सारी संपत्ति समाज को देना पड़ती है’

‘ कमाल करते हो आप मेहनत से कमाई संपत्ति कोई कैसे दे देगा?’

‘ मेहनत? या झूठ और चोरी....हॉलीवुड की कहानियॉ, वहॉ की धुनें, कास्टिंग काउच, कलाकारों का शोषण, रहा सवाल संपत्ति दान करने का या कैरियर दॉव पर लगाने का, वो अन्ना के चेले करते हैं, जानते हैं केजरीवाल आई.ए.एस. थे ’

‘ अब यार सभी तो वैसे नहीं हो सकते’

‘ कौन कह रहा है कि वैसे बनें? पर दिखावा भी तो न करें, अच्छा छोड़िये इनकी बगल में वो शायद लेखक हैं ’

‘ हॉ बहुत मशहूर अंगरेजी लेखक’

‘ जो ये भी कहते हैं कि उन्होंने साहित्य नहीं लिखा है’

‘ ये भी उसकी ईमानदारी है’

‘ नहीं स्ट्रेट्जी है, ताकि समीक्षक उनकी ऐसी तैसी न फेरें, आपको पता ही होगा कि फलाना खान ने उनकी कहानी पर फिल्म भी बनाई थी, फिर दोनों की नूरा कुश्ती भी आपको पता होगी, इससे इनकी किताब की बिक्री चार गुना हुई थी’

‘ अब ये सब तो मशहूर होने के लिये करना पड़ता है’

‘ नेता को भी इलैक्शन जीतने के लिये करोड़ों की दरकार होती है उसे भी घोटाला करना पड़ता है’

‘ ये कुतर्क है’

‘ छोड़िये उनकी बगल में....’

‘ भूतपूर्व हिरोइन हैं, सांसद भी रही हैं, नारी मुक्ति आन्दोलन में अग्रणी रही हैं’

‘ हॉ स्त्री समलैंगिकता के संदर्भ में नारी को मुक्ति दिलाई है इन्होंने, पर सुना है कि इन्होंने स्वयं एक नारी के अधिकार छीने हैं ’

‘ किसके?’

‘ अपने पति की पहली पत्नी के’

‘ अब इनके धर्म में ये जायज है’

‘ नारी मुक्ति में धर्म कहॉ आता है विप्रवर? नारी मुक्ति इंसानियत से शुरू होती है वहीं समाप्त होती है, इंसानियत की बात करते वक्त जाति और धर्म को खूटी पर लटकाना पड़ता है । अच्छा, यदि ये पहली पत्नी होतीं तब...? दूसरी को स्वीकार कर पातीं? बात इनके धर्म की करो तो अगर मुल्क में इनके धर्म का कानून हो तो इनकी करनियों के लिये कम अज कम छै बार इन्हें फॉसी होती, तीन बार पत्थर मारे जाते चार बार कोड़े’

‘ अब आप व्यक्तिगत हो रहे हैं’

‘ धर्म या भ्रष्टाचार दोनों ही नितान्त व्यक्तिगत चीजें हैं, धर्म की तरह भ्रष्टाचार को भी व्यक्ति अपने अनुसार ही परिभाषित कर लेता है, जैसे - मैं किसी व्यक्ति से नहीं ले रहा सरकारी पैसा है या ये तो कमीशन है सिस्टम में है या मैं किसी का दिल नहीं दुखाता वगैरा वगैरा, प्रभो भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ भ्रष्ट आचरण है चाहे किसी भी परिप्रेक्ष्य में हो । सामाजिक सत्य यही है एक समय में एक पुरूष और एक स्त्री यही युगल होता है, आपस में न बने तो अलग होना, अलग युगल बनना दीगर बात है अन्यथा समाज का संतुलन बिगड़ता है। आप जानबूझ कर ऐसे स्त्री या पुरूष से अंतरंग संबंध बनायें जो पहले से किसी युगल में है और अपने साथी से दुखी भी नहीं है तब आपकी स्थिति भ्रष्टाचारी की ही होती है, मुझे खुशी तब होती जब ये भद्र महिला एक स्त्री के लिये चार पतियों के प्रावधान की हिमायत करतीं, द्वितीय पत्नी बनकर तो इन्होंने पुरूष शासित समाज को मजबूत ही किया है जबकि ये नारी मुक्ति की स्वयंभू ठेकेदार हैं, सांसद भी रही हैं


‘ ये आपका अति आदर्शवाद है’

‘ अति आदर्शवाद ही तो अन्ना है, अन्ना के मंच पर पहुॅचने का एक मतलब ये नहीं कि आप भी अन्ना जैसे हैं? आप वहॉ पहुॅचकर ये ही दिखाना चाहते हैं कि आप भी अन्ना जैसे ही हैं, जबकि आप अन्ना के थूक के बराबर भी नहीं ’

‘ तुम तो उत्तेजित हो गये बंधु, खैर छोड़ो चलो मंच पर चलते है आन्दोलन कारियों से परिचय करते हैं ’

‘ लेकिन मैं स्वयं को इस मंच के योग्य नहीं पाता’

‘ छोड़ो यार अगर पूजा के समय शालिग्राम न मिले तो मिट्टी पर कलावा लपेट कर काम चलता है, तुम चेहरे से रूमाल लपेट लो ‘

मैंने रूमाल लपेट लिया, अब हम मंच पर थे

‘ आप ?’ मैंने एक आन्दोलन कारी से पूछा

‘ तुम मुझे नहीं जानते, मैं देश के सबसे बड़े कवियों में से हूँ, एक रात का एक लाख लेता हूँ’

‘ लेने को तो कुछ भद्र महिलाऐं एक घंटे का पॉच लाख तक लेती हैं, वैसे आप किस काम का लेते है?’

‘ कविता सुनाने का’

‘ कविता अच्छा ... एक घंटे में आधा घंटे चुटकले, पंद्रह मिनट जुमले, पंद्रह मिनट कविताऐं उनमें कितनी आपकी हैं कितनी दूसरों की आप जानते ही होंगे, मंच कबाड़ने के लिये कितनी राजनीति आपको करना पड़ती है आप से बेहतर कौन जान सकता है।’

‘ य..ये तो चल रहा है मंच पर, मंच इसे स्वीकार कर चुका है’

‘ तो भ्रष्टाचार भी चल ही रहा है, समाज इसे स्वीकार कर चुका है, और आप सर?’

‘ मुझे नहीं जानते ? मैं देश के बड़े डाक्टरों में से हूँ, एक ऑपरेशन का पॉच लाख लेता हूँ, दिन में पॉच से सात कर देता हॅू, मेरे आठ दस हॉस्पिटल भी हैं ’

‘ इसके बाद भी आई.सी.यू. में पड़े मरीज की आधी दवाइयॉ वापस मैडीकल स्टोर पर भिजवा देते हैं, आपको भर्ती के समय पता होता है कि मरीज मरने वाला है फिर भी वैन्टिलेटर पर पंद्रह दिन तक जिन्दा रखते हैं, मरीज ऐसी हालत में भी नहीं होता कि दबा गढ़ा भी बता सके फिर एक दिन दस लाख का पर्चा चिपका कर आप उसे मार डालते हैं, इतना सब होने के बाद एक्सरे, पैथोलॉजी, दवाइयों पर भी आपका कमीशन तय होता है’

‘ नहीं मेरे हर हॉस्पीटल में एक्सरे, पैथोलॉजी, दवाइयों की सुविधा है, हॉ लेकिन कमीशन बाकी डाक्टर तो लेते हैं, लेकिन ये जायज है देखिये कोई भी डाक्टर तीस के पहले व्यापार शुरू नहीं कर पाता, पैंतीस के पहले शादी नहीं कर पाता चालीस के पहले बच्चे पैदा नहीं कर पाता, इतना त्याग करता है तो उसका भविष्य भी सुरक्षित रहना चाहिये ’

‘ त्याग व्याग छोड़िये, हॉस्पिटल वाले डाक्टर को शादी की जरूरत भी क्या? लेकिन डाक्टरी करते समय जो कसम खाई होती है वो?’

‘ कसम साले नेता नहीं खाते?’

‘ आप उन्हीं के विरोध में हैं श्रीमन्, आपको नहीं लगता कि आपकी फीस इतनी अधिक है कि आप सिर्फ करोड़पतियों के डाक्टर हैं, नेताओं को गाली देने से पहले आपको नहीं लगता कि आप दिन में दो ऑपरेशन निशुल्क करें, दस हॉस्पिटल में से एक को नो लॉस नो प्राफिट पर चलायें ’

‘ मैं अन्ना नहीं हूँ ’

‘ तब मुझे नहीं लगता कि आपको यहॉ होना चाहिये, अच्छा सर जी आप..?’

‘ मैं बहुत बड़ा उद्योगपति हूँ’

‘ हॉ याद आया आप वही हैं जिनके पिताजी लॅगोट में घर से निकले थे, देखते ही देखते देश के सबसे बड़े पैसे वाले बन गये ’

‘ हॉ हॉ...मेरे पिताजी बहुत मेहनती थे’ वे फूले

‘ उससे ज्यादा फितरती’

‘ क्या बकते हो? ’ वे गुर्राये

‘ जोश में आपके पिताजी ने ही बका था कि किसी बड़े राजनेता को उन्होंने बड़े सलीके से रिश्वत पेश की थी - आपके स्वर्गीय दादाजी ने आपके लिये मेरे पास कुछ छोड़ा है आप बताइये मैं उसका क्या करूं?’

‘ वो उन्होंने किया था, हम ऐसा कुछ नहीं करते’

‘ अच्छा चंदा वगैरा..?’

‘ ये सब तो चलता है’

‘ मान लिया लेकिन आपने ये भी माना कि आपके पिताजी फितरती थे’

‘ तो इसमें मेरी क्या गलती?’

‘ बिलकुल नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि गलत तरीकों से अर्जित पूरी संपत्ति आपको अन्ना जी की मार्फत देश को लौटा देनी चाहिये ’

‘ क्या....चू...., अन्ना समझा है क्या?’

‘ नहीं आप उनके पेशाब के बराबर भी नहीं, मुझे खुशी होगी अगर आप इस मंच को छोड़कर अपनी गद्दी सॅभालें, और आप तो शक्ल से ही पत्रकार दिख रहे हैं महोदय’

‘ कमाल है चेहरे पर लिखा है क्या?’

‘ हॉ, चेहरे पर गजब की धूर्तता, अनशन पर लेटे हैं पर कंधे पर झोला, गले में कैमरा.....लेकिन आप यहॉ क्या.....?’

‘ अन्ना का समर्थन ’

‘ किस लिये...?’

‘ देश की खातिर’

‘ अच्छा अभी आपको देश की सुरक्षा से जुड़ा कोई गोपनीय तथ्य मिल जाये तब आप क्या करेंगे?’

‘ अखबार में छापेंगे, टी.वी. पर दिखायेंगे’

‘ संबंधित विभाग तक नहीं पहुचायेंगे?’

‘ अजीब मूर्ख हो, किसी दूसरे पत्रकार के पास भी हुआ तब हमारा बाइट तो गया’

‘ ये तो बाइट सेवा हुई, देश कहॉ है?’

‘ एक ही बात है, देश को पता चल गया ना कि उसकी सुरक्षा किन हाथों में है’

‘ हॉ मगर पाकिस्तान और चीन को भी पता चल गया, सही बताउॅ तो हकीकतन आप ऐसा कुछ नहीं करेंगे, आप उस गैर जिम्मेदार अधिकारी के पास जायेंगे, सौदा करेंगे सौदा न बनने पर छाप देंगें, अच्छा एक आदमी आत्मदाह की घोषणा के बाद चौराहे पर आत्मदाह करे तब आप क्या करेंगे?’

‘ खबर बनायेंगे’

‘ उसे बचायेंगे नहीं?’

‘ अरे खामखॉ खुद जल जला गये तो? फिर उसके बिना जले खबर कहॉ बनी?’

‘ मतलब आपका कोई सामाजिक दायित्व नहीं?’

‘ अबे पत्रकार समाज सेवक नहीं होता, उसके भी बाल बच्चे होते हैं’

‘ हर वो आदमी जो समाज से कुछ भी लेता है समाज सेवक ही होता है, मैं पहले देने को नहीं कह रहा, पहले समाज की सेवाऐं लीजिये बदले में समाज को उसका आधा तो दीजिये, आप नहीं नकार सकते कि आप रोटी भी इसी समाज से खा रहे हैं’

‘ तू तो हर किसी को अन्ना समझ रहा है, नाम तो बता तेरा, कल ही....’

‘ बता दूँगा लेकिन पहले आप अपनी शैक्षणिक योग्यता बताइये’

‘ नहीं बताता बोल क्या करेगा?’

‘ आप बता ही नहीं सकते क्योंकि दो ही पेशे ऐसे हैं जिनमें किसी भी शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं पहला राजनीति दूसरा....’

‘ पिटवाओगे?, चलो नीचे’ पंडित जी मेरे कान में फुसफुसाये। हम नीचे आ गये। 

‘ तुम तो हर किसी से पंगा ले रहे हो, माना ये सब नैतिक रूप से गलत हैं, लेकिन कानूनन वे सही हैं, कानूनन सिर्फ सरकारी कर्मचारी और नेता ही भ्रष्ट होते हैं क्योंकि वे सरकारी होते हैं, प्राइवेट आदमी पर सरकारी कानून लागू नहीं होते ना’

‘ अच्छा, घी मे चर्बी मिलाने को नेता कहता है कि सरकारी कर्मचारी? प्याज और दाल कौन ब्लैक करवाता है, सिन्थैटिक दूध कौन बनवाता है, ऑटो में तीन के बजाय आठ सवारियॉ कौन बैठाता है? आम आदमी का सामना अगर दिन में दो सरकारी एजेन्सी से होता है तो आठ प्राइवेट से, सरकारी से आप कारण पूछ सकते हैं, उसकी शिकायत भी कर सकते हैं, लेकिन प्राइवेट एजेन्सी में ये सुविधा उपलब्ध नहीं है, माना कनज्यूमर फॉरम है लेकिन वो विवाद के लिये है, कल आलू पॉच रूप्ये था आज बीस हो गया इसमें कनज्यूमर फॉरम कुछ नहीं कर सकती, ’

‘ इन सबके उपर सरकारी लोग होते हैं रिश्वत लेकर छोड़ते क्यों हैं?’

‘ सरकारी लोग सबके उपर नहीं होते, पॉच रूप्ये की मैनुफैक्चरिंग कॉस्ट का साबुन बीस रूप्ये में बेचना सरकार तय नहीं करती, पचास पैसे किलो का नमक तेरह रूप्ये किलो बेचना सरकार तय नहीं करती, डाक्टर साहब ऑपरेशन का पॉच लाख लेंगे या शाहरूख खान एक फिल्म का दस करोड़ ये भी सरकार तय नहीं करती। जिन मामलों में सरकारी आदमी रिश्वत लेकर छोड़ता है, छोड़ता है लेकिन बाद में, पंडित जी चर्बी या सिन्थैटिक दूध की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार शुरू किसने किया नेता ने, सरकारी कर्मचारी ने या व्यापारी ने? ’

‘ व्यापारी ने’

‘ और वही सबसे ज्यादा चिल्ला रहा है, अगर शुरूआत नहीं होगी तो छोड़ने पकड़ने का सवाल कहॉ है, ब्लैक मार्केटिंग व्यापार है,? झूठ बोलना स्ट्रेटजी है? मुनाफाखोरी सदाचार है?दरअसल सरकारी दफतरों को प्राइवेट लोग ही भ्रष्ट बनाते हैं’

‘ ये आपने एक पहलू बता दिया, बहुत बार आदमी को मजबूर किया जाता है उसके सही काम के लिये भी रिश्वत देने के लिये ’

‘ माना, लेकिन आप तय कर लें कि नहीं देना है तब कौन ले पायेगा? जन्म प्रमाण पत्र माना बिना पैसे के नहीं बनता लेकिन आप पैसे देकर क्यों बनवाते हैं, सारे लोग मत बनवाइये अगर एक महीने तक पॉच लाख की आबादी वाले शहर में एक भी जन्म प्रमाण पत्र नहीं बनेगा तब उपर से डंडा होगा और बाबू घर घर जाकर बनायेगा ये पक्की बात है । ठेकेदार कमीशन नहीं देगा ठेका कैंसल होगा माना, लेकिन सारे ठेकेदार तय कर लें कि नहीं देना है तब? कितनी बार कैंसल होगा? अगर प्रपोजल पास होने के एक साल तक काम शुरू नहीं होता तो इंजीनियर साहब के पिताजी को भी जवाब देना पड़ेगा । असल बात ये है भी नहीं दर असल भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन चुका है । हम रेलवे बुकिंग की लाइन में बैक डोर खोजते है, बैंक के डिपोजिट काउन्टर पर इधर उधर से हाथ फॅसाते हैं, राशन की लाइन में धक्कामुक्की करते हैं, चौराहे पर लाल सिग्नल तोड़ते हैं, हम कटिया डालकर बिजली लेते हैं, अवैध कालौनियॉ बनाते हैं, हम पानी का बिल नहीं भरते, वहॉ तो कोई हमें मजबूर नहीं कर रहा होता लेकिन ये भ्रष्टाचार है और भ्रष्टाचार आज से नहीं है, ये शाश्वत और चिरंतन है, भर्तहरि महाराज के समय में इसके प्रमाण हैं, वे लिखते हैं - कंचन का लेप राजा के अधिकारी और ढोल के मुख पर मल देने से मीठी आवाज निकलती है ।’

‘ आपने तो हजारों करोड़ खाने वाले नेता और पचास सौ की हेरा फेरी वाले करने वाले आम आदमी को एक ही श्रेणी में रख दिया ?’

‘ पंडित जी नेता और आम आदमी के बीच में भी काफी लोग हैं अफसर, उद्योगपति, ब्लैक मार्केटिये, मुनाफाखोर आप उन्हें क्यों अलग कर रहे हैं ? अब आप आम आदमी की बात करो तो सैद्धान्तिक रूप से तो एक ही बात है कि पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप न किया हो । अन्ना, केजरीवाल, अग्निवेश या किरन बेदी को ये अधिकार है भी, लेकिन जो मुॅह धोकर अन्ना के मंच पर चढ़े हैं उन्हें कोई अधिकार नहीं, व्यावहारिक रूप से सार्थक बात किसी बड़े विचारक ने कही है कि महत्वपूर्ण ये नहीं है कि आपने किस तरह कमाया, महत्वपूर्ण ये है कि कमाई का किया क्या? आम आदमी गृहस्थी चलाने के लिये हेरा फेरी करता है या रिश्वत लेता है तो ये उसकी नहीं तंत्र की कमी है और यदि वह शौक मौज के लिये, बॅगला बनाने के लिये कर रहा है तो नेता और आम आदमी में कोई अंतर नहीं । इसलिये जरूरत तंत्र को है अपना विश्लेषण करने की’

‘ मतलब ? अन्ना जो कर रहे हैं? ’

‘ अन्ना ठीक कर रहे हैं, ये एक अच्छा प्रयास है लेकिन हल नहीं, नैतिकता उढ़ाने की चीज नहीं होती, अगर उढ़ाई जाय तो फाड़ने में भी देर नहीं लगती, ईमानदारी अपने आप से आती है नियम या कानून से नहीं, कानून बनने से उसमें सुराख खोजे जाते हैं, उन्हें बड़ा किया जाता है । सम्राट अशोक ने बुद्ध की नैतिकता हिन्दुस्तानियों को उढ़ाई, अशोक के डर से आप बामनों ने बुद्ध को विष्णु का अवतार भी घोषित कर दिया, अशोक के बाद परिणाम क्या हुआ? नैतिकता की चादर ऐसी फटी कि वह धर्म भारत से बाहर ही हो गया । गॉधी की नैतिकता? अपने बेटे के स्थान पर दूसरे लड़के को स्कालरशिप दिलवाई, परिणाम? उन्हीं की पार्टी में परिवार वाद हावी हुआ ।जे.पी. का समाजवादी आन्दोलन? इस आन्दोलन ने कालान्तर के सर्वाधिक भ्रष्ट और जातिवादी नेता दिये ’

‘ मतलब अन्ना का आन्दोलन?’

‘ अन्ना के आन्दोलन से भी मुझे यही डर लग रहा है, उनके मंच पर पता नहीं कितने अवसरवादी चढ़ गये हैं अगर अन्ना ने जे.पी. और गॉधी से सबक लिया हो तो ठीक है वरना इस देश की रक्षा राम करे’

‘ तो अन्ना इलाज नहीं?’

‘ आप जानते हैं पंडित जी कि भारत का नंबर ईमानदार देशों में अट्ठासीवां है, पहले स्थान पर आइस लैन्ड, फिन लैन्ड, दूसरे पर न्यूजी लैन्ड वगैरा वगैरा नेपाल पाकिस्तान बॉग्ला देश हमसे पीछे हैं । इससे कुछ महसूस होता है? ’

‘ क्या?’

‘ वे देश जिनका जनसंख्या घनत्व हमसे कम है और साक्षरता अधिक वे हमसे आगे हैं, इसके उल्टे हमारे पीछे, इसलिये समस्या का समग्र हल लोकपाल नहीं है, ये उसकी एक सीढ़ी जरूर हो सकता है । इससे यही लगता है कि समस्या का हल शिक्षा और जनसंख्या नियंत्रण है ।’

तभी उपर से एक आन्दोलन कारी नीचे आया

‘ तुम्हें अन्ना ने भेजा है?’

‘ नहीं लेकिन आपको ऐसा क्यों लगा?’

‘ नहीं तुम बेमतलब की बात कर रहे थे इसलिये...मगर तुम हो कौन?’

‘ मैं वो सरकारी कर्मचारी हूँ जिसने कभी रिश्वत नहीं ली, प्राइवेटली अन्ना या गॉधी की पूजा करता रहा लेकिन मेरे कुछ सरकारी साथियों के कारण आप जैसे प्राइवेट डकैत मुझे सरकारी चोर कह जाते हैं और मैं सुन लेता हॅू, आपके मंच पर बैठे प्राइवेट व्यापारी प्याज सौ रूपये किलो बेचते हैं मैं सिर्फ खुशबू लेकर रह जाता हूँ, मैं प्राइवेट मकान बनाने के लिये लोन लेता हूँ तब आपके प्राइवेट उद्योगपति अपने ईमानदार प्राइवेट प्रयासों से प्राइवेट कम्पनी के हित में शेयर मार्केट उछाल देते हैं तो ईंट, सीमेन्ट, सरिया सब महॅगा हो जाता है और सरकारी बैंक का ब्याज भी, मेरी आधी सरकारी तनख्वाह प्राइवेट किश्त चुकाने मे चली जाती है । मैं साल में एक बार आपके ईमानदार प्राइवेट व्यापारियों से दीवाली पर सिन्थैटिक खोवे की मिठाई असली के भाव खरीदता हूँ, तब मैं प्राइवेट अस्पताल पहुँच जाता हॅू जहॉ आपके मंच पर बैठे प्राइवेट डाक्टर साहब मुझे अपने तरीकों से काटते हैं । मैं प्राइवेट कर्जा करके ठीक होता हूँ तो आपके समर्थक प्राइवेट सुपर स्टार फिल्म रिलीज पर कन्ट्रोवर्सी कर देते हैं मैं सरकारी पुलिस वालों के डंडे खाता हुआ सरकारी दफतर पहुँचता हूँ। बचता बचाता प्राइवेट गलियों में होकर सरकारी बैंक में बंधक अपने प्राइवेट घर आता हॅू तो मुझे प्राइवेट गली का प्राइवेट कुत्ता काट लेता है । मैं फिर आपके प्राइवेट डाक्टर साब के पास पहुँचता हूँ, प्राइवेट कर्जा करके ठीक होता हूँ तो सरकारी दोस्त कहते हैं प्राइवेट मिठाई खिलाओ... मैं इस बार दूसरी प्राइवेट दूकान से सिन्थैटिक खोवे की मिठाई असली के भाव खरीदता हूँ फिर प्राइवेट अस्पताल पहुँच जाता हॅू उसके बाद प्राइवेट सुपर स्टार की दूसरी फिल्म की रिलीज आ जाती है बस......मैं सिर्फ इतना ही हूँ, अब जरा चैक कर लीजियेगा कि मेरे संवाद में प्राइवेट और सरकारी का इस्तेमाल कितनी बार हुआ है’

उसने मुझे घूरा...
‘ पागल है......सी.डी. बदलो रे......’

सी.डी. बदल गई थी, नये लड़के लड़की उत्साह में तम्बू के सामने नाच रहे थे-

इन्सां नहीं है अवतार रे मेरा अन्ना हजारे
दूर करेगा भ्रष्टाचार रे मेरा अन्ना हजारे
लोकपाल आयेगा, खुशियॉ लायेगा
भ्रष्टाचार जड़ से ये तो मिटायेगा
जनता की है ये पुकार रे मेरा अन्ना हजारे
इन्सां नहीं है अवतार रे मेरा अन्ना हजारे

पास में कहीं एक भिखारन अपने भिखारी से कह रही थी -

‘ चलो जी कहीं माता का जगराता हो रहा है, प्रसादी तो मिलेगी’

‘ जगराता ? अन्ना अन्ना का गाना चल रहा है, लगता है मदरासियों का जगराता है ’

‘ अब मदरासी हो कि बंगाली परसादी तो मिलेगी’

‘ हॉ भले मदरासी हुए तो कुछ पैसे भी मिल जायें, ठीक है मॅुह काला कर ले, गन्दे कपड़े पहन ले, छोरे को धूल में लिटा ले, मेरी वैसाखी भी निकाल दे, आज दिन भर अंधे का रोल किया है, ऑखें थक गईं हैं’

उसने गाने को ध्यान से सुना और गुनगुनाने लगा -
इन्सां नहीं है अवतार रे मेरा अन्ना हजारे

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4 टिप्पणियाँ

  1. इसका आखिरी हिस्सा पूरे व्यंग्य को बहुत उँचे उठा देता है। अन्ना की मुहिम का समर्थन करते हुए उनके आस पास की जमावट और इस आन्दोलन के भटकने की संभावनाओं की खूब खबर ली है। बधाई शक्ति जी।

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  2. बहुत अच्‍छा। बहुत मनोरंजक। और साथ में बहुत विचारोत्तेजक।

    - आनंद

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  3. बहुत बड़ा लिखा है यह व्यंग्य. क्षमा करें, मैं इसे पढ़ नहीं पाया. इसलिए नो कमेंट

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