ताउम्र मुझे मारने की कोशिश में वो रहे...
हमने भी की है जिद मगर उसको बचाने की ।
जज्बात से यूं खेलना भाया उसे बहुत ...
शब्दों ने की है जिद मगर उसको बताने की
ये इश्क या जूनून कोई रंज है न ’कान्त’
हमने भी की है जिद मगर उसको मनाने की।
जलसे में आये लोग कन्दील बुझते चल दिये
हमने भी की है जिद मगर उसको जलाने की ।
यूं जम्हूरियत की राह पर सब शख्स चल दिये..
बस मदहोश की है जिद मगर उसको मिटाने की
हमने भी की है जिद मगर उसको बचाने की ।
जज्बात से यूं खेलना भाया उसे बहुत ...
शब्दों ने की है जिद मगर उसको बताने की
ये इश्क या जूनून कोई रंज है न ’कान्त’
हमने भी की है जिद मगर उसको मनाने की।
जलसे में आये लोग कन्दील बुझते चल दिये
हमने भी की है जिद मगर उसको जलाने की ।
यूं जम्हूरियत की राह पर सब शख्स चल दिये..
बस मदहोश की है जिद मगर उसको मिटाने की
9 टिप्पणियाँ
सुन्दर
जवाब देंहटाएंbahut khoob...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंये इश्क या जूनून कोई रंज है न ’कान्त’
जवाब देंहटाएंहमने भी की है जिद मगर उसको मनाने की।
बेहद सुन्दर रचना.........
शुभकामनाओं सहित....
बधाई.....
संदेशपरक है कविता.
जवाब देंहटाएंये इश्क या जूनून कोई रंज है न ’कान्त’
जवाब देंहटाएंहमने भी की है जिद मगर उसको मनाने की।
वाह....
क्या बात है....
आभार और बधाई .... आपको श्रीकांत जी....
ताउम्र मुझे मारने की कोशिश में वो रहे...
जवाब देंहटाएंहमने भी की है जिद मगर उसको बचाने की ।
ati sunder
badhai
rachana
prabhavee kathya... lay men sudhar ho to sone men suhaga hoga.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.