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वे श्रम संस्कृति के सौंदर्य निर्माता कवि है ["अक्सर" के अंक में केदारनाथ अग्रवाल] - कालु लाल कुलमी

यह कई रचनाकारों का शताब्दी वर्ष है। हरेक रचनाकार को अपने-अपने तरह से याद किया जा रहा है। पर्व की तरह आयोजन किये जा रहे है और तमाम साहित्यिक संस्थान और सरकारी संस्थान उनके नाम पर लाखों का खर्च कर रहे हैं। कुल मिलाकर ये आयोजन सुखद है। जो भी हो इसके मार्फत हम उन रचनाकारों के साथ संवाद कर रहे हैं। अक्सर ने केदारनाथ अग्रवाल पर विशेषांक निकाला है। केदार की कविताएं आपको कहीं न कहीं खंगालती है। चुपके से थाप मारती है। अक्सर के इस अंक में केदार को कई तरह से याद किया है। केदार जिस धार के कवि है वहां वे अपने सामाजिक बने रहने और ईमानदार बने रहने में यकीन करते हैं। विपदाओं का सामना करना उन्हें खलता नहीं है। जो कर्मठता और कर्म के प्रति सम्मान इस कवि में हैं वह दुर्लभ है। श्रम केदार के लिए प्रार्थना है। उसके बगेर उनकी जीवनचर्या ही निरर्थक है। अक्सर के इस अंक में जिन आलोचको ने केदार का मूल्यांकन किया है वह केदार को नये सिरे से जानना है। विश्वनाथ त्रिपाठी केदारजी के बारे में कहते हैं ‘‘केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में प्रकृति और नारी का सौंदर्य बहुत चित्रित है। वे जीवन का रस छककर पान करने वाले कवि है सुख, सौंदर्य,श्रम-ये केदारनाथ अग्रवाल के जीवन एवं काव्य-मूल्य के ढॉचे के विभिन्न अवयव हैं। निःसंदेह जिनका स्त्रोत समाजवादी विचारधारा है।... वे श्रम संस्कृति के सौंदर्य निर्माता कवि है‘‘ (पृसं-58)

केदारजी सौंदर्य की जीवनमुखी धारणा के पोषक हैं। उनका सौंदर्य बोध-जीवन और खासकर श्रमशील जीवन से पैदा होता है। उनकी निगाह में जो श्रमशील नहीं है- कामचोर है वह मनुष्य नहीं डॉगर है यानी पशु है,कहते हैं-‘ये कामचोर आरामतलब तोंदियल डॉगर!‘ (पृसं-60,61) प्रेमचंद इस तोंदियल को बेहया कहते हैं। उदय प्रकाश जिसके बारे में कहते हैं कि यह जितना झूठा छोड़ता है उतना ही गरीबों का पेट भरेगा। यह वही परजीवी वर्ग है। जो अपने आराम के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है। केदार ऐसे लोगों की आलोचना करते हैं और श्रमधर्मी समाज को बहुत सम्मान देते हैं। केदार कहते हैं ‘‘जी के काम किये जीने में/संप्रति सांग के लिए सीने में/रूचि की रचना रची मरम से/बांध नहीं बांधे कुकरम के।‘‘(पृसं-64) मर्म से रचना रचते हुए इस कवि ने कुकर्म के बांध नहीं बांधे, आपने को किसी भी तरह से फैलाने की जरूरत न पड़ी। केदार में बड़बोलापन नहीं है। हां कठोरता है। पर वह खोखली नहीं है। उसमें वजन है और वही वजन केदार के व्यक्तित्व का निर्माता है। वे कहीं भी इसको लेकर हकलाते नहीं हैं। जीवन सिंह कहते हैं कि केदार की मुख्य चिंता आदमी बने रहने की है। आदमी सबकुछ करता है लेकिन ‘आदमी‘ बनने की कोशिश सबसे कम करता है। 

‘‘वह/नहीं नहीं नहीं करता कोई काम/
जो उसे करना चाहिए/
आदमी बने रहने के लिए।‘‘ (पृस-84)

बाबा केदार को ‘ओ जन मन के सजग चितेरे‘ कहते हैं।

‘‘आसमान था साफ, टहलने निकल पड़े हम
मैं बोला-केदार ,तुम्हारे बाल पक गये।
चिंताओं की घनी भाप से सीझे जाते हैं बेचारे
तुमने कहा सुनो नागार्जुन
दुख दुविधा की प्रबल आंच में
जब दिमाग ही उबल रहा हो
तो बालों का कालापन क्या कम मखौल है?‘‘(पृसं-96)

मखौल शब्द की आभा में केदार की संवेदना है। केदार इसी बैचेनी के कवि है। वे अपने को साफ साफ अभिव्यक्त करते हैं और जो करना होता वह खुलकर करते हैं। अक्सर के इस अंक में केदार के हर पक्ष पर विचार करने का प्रयास किया गया है। केदार की रचनात्मकता के कई आयाम है। कविता, कहानी, उपन्यास,यात्रावृतांत और पत्र लेखन को केदार ने बहुत बड़ी जमीन दी। मित्र संवाद जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक हिन्दी में दुर्लभ है। अपने समय का पूरा लेखा जोखा है इस किताब में। इस अंक में केदार की अप्रकाशित कहानी ‘प्रेम संबंध‘ है ,एक नाटक ‘जनता का मोर्चा‘ है। इस तरह यह अंक केदार की उसी गति को पकड़ता है जिसमें केदार कालिदास से लेकर आधुनिक पूर्व और पश्चिम-दोनों ही रचनातमकता से अपने को सींचते हैं। परम्परा का यह गहन अनुशीलन ही केदार को केदार बनाता है। वे कहीं भी दयनीय नहीं हैं। अपनी बात कड़ककर कहते हैं और कड़ाई से उसका पालन करते हैं। वसंत की हवा की तरह निर्भय और निश्छल रहते हैं। एक बीते के बराबर चने की तरह सजकर खड़े रहना, सम्मान के साथ अपने को उपस्थित करना, केदार यहां यह है। बालक का ककड़ से ताल को कंपाना। या काल से कविताओं का डेरा डाले लड़ना।

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अक्सर चौदह-पंद्रहःअक्टूबर 2010 मार्च 2011
सं- हेतु भारद्धाज

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9 टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छी तरह से समीक्षा तैयार की गयी है। अक्सर के अंक के मुखपृष्ठ की तस्वीर भी प्रकाशित करते तो अच्छा होता।

    जवाब देंहटाएं
  2. आसमान था साफ, टहलने निकल पड़े हम
    मैं बोला-केदार ,तुम्हारे बाल पक गये।
    चिंताओं की घनी भाप से सीझे जाते हैं बेचारे
    तुमने कहा सुनो नागार्जुन
    दुख दुविधा की प्रबल आंच में
    जब दिमाग ही उबल रहा हो
    तो बालों का कालापन क्या कम मखौल है?

    वाह।

    यह अंक कहाँ मिलेगा?

    जवाब देंहटाएं
  3. यह अंक सचमुच महत्व का होगा। अक्सर को बधाई। कुल्मी जी धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. ‘केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में प्रकृति और नारी का सौंदर्य बहुत चित्रित है। वे जीवन का रस छककर पान करने वाले कवि है सुख, सौंदर्य,श्रम-ये केदारनाथ अग्रवाल के जीवन एवं काव्य-मूल्य के ढॉचे के विभिन्न अवयव हैं। निःसंदेह जिनका स्त्रोत समाजवादी विचारधारा है।... वे श्रम संस्कृति के सौंदर्य निर्माता कवि है‘

    सहमत

    जवाब देंहटाएं

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