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भूली याद [ग़ज़ल] - सुमन "मीत"

बढ़ गया दायरा जब तन्हाई का या रब
तू भी बदल गया एक बेवफा की तरह ;

डाला था हमने खुद को तेरी पनाह में
ठुकरा दिया तूने भी एक इंसान की तरह ;

क्या करें शिकवा क्या शिकायत किसी से
तू तन्हा छोड गया एक मुसाफिर की तरह ;

रूह-ए-सकूं मांगा था तेरी निगेहबानी में
दगा दिया तूने भी एक अजनबी की तरह ;

अब तो है शब-ए-गम , तड़प और टूटे ख़ाब
तू आ जाता है कभी सामने एक याद की तरह !!
................................

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2 टिप्पणियाँ

  1. क्या करें शिकवा क्या शिकायत किसी से
    तू तन्हा छोड गया एक मुसाफिर की तरह ;
    mrmik abhivyakti

    जवाब देंहटाएं

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