मिलन की परीक्षायें समाप्त हुईं। वह छुट्टियों में कहीं घुमने जाने का कार्यक्रम बनाने लगी, कि अचानक विचार आया; क्यों न इस बार छुट्टियां नानी के घर बितायी जायें। वहां अधिक दिनों से गयी भी नहीं हूँ। जब मन की बात अपनी मम्मी को बतायी ; तो वह तुरन्त तैयार हो गईं। उसे अगले दिन ही नानी के घर भिजवाने का प्रबन्ध कर दिया।
मिलन अपने भाई के साथ रेल का सफर तय करती हुई-खेतों, नदियों, नहरों, पेडों आदि का आनंद लेती हुई ननिहाल पहुंची। काफी दिनों के बाद मिलन को घर आया देखकर उसकी नानी झूंम उठीं। और खुशी से गले लगाते हुए कहा- ‘‘आ गई बिटिया, काफी दिनों से देखने की लालसा थी। तुझे तो अपनी पढ़ाई से समय नहीं मिलता आदि ढेरों मीठी-मीठी प्यार भरी बातें कर डालीं। ’
चाय-नाश्ता कर चुकने, हाल-चाल पूछने के बाद प्रारम्भ हुआ नानी के साथ प्यार भरी बातों का सिलसिला। मिलन की छुट्टियों के बारे में नानी ने पूछते हुए कहा- ‘बेटी, बताओ कितने दिनों की छुट्टियां हैं। मेरे समीप कब रहोगी।’
पूरे एक महीने की छुट्टियां बिताने आयी हूँ आपके पास। इस बीच ढेरों कहानियां सुनूंगी। मन भर के बातें करुंगी। मिलन ने नानी को बतलाया।
-अच्छा, मेरी प्यारी सी बिटिया मेरे लिए क्या लायी हो ? नानी ने पुनः पूछते हुए कहा,
- कुछ नहीं, हां! मैंने मन मे सोचा है कि क्यों न इन छुट्टियों के बाद आपको कोई एक सुन्दर सा उपहार देकर जाऊं। मिलन ने नानी की बात का जबाब देते हुए कहा,
-तो फिर उस उपहार को बता तो दो। आखिर क्या है वह उपहार?
-नहीं, अभी नहीं,, नानी उपहार ऐसा दूंगी कि आप खुशी से झूंम उठेंगी। मिलन बोली।
नानी के उत्साह बर्धन और अपनी लगन से मिलन खाली समय में कुछ पैसों से एक कागज की एलबम तरह-तरह के पेंन्सिल रंगों से भरकर तैयार करने लगी। जिसमें उसने भांति-भांति के सुन्दर पेड़ों, चिड़ियों, फूल-पत्तियों आदि के चित्र बनाये। थोड़ी सी भी जगह बच जाने पर वहां कोईन कोई अच्छी सी सीख भरी बात लिख देती- सदा सच बोलो, सुबह जल्दी उठो, बड़ों का आदर करो, र्बिलों को न सताओ, आस-पास स्वच्छता रखो, सभी से भाईचारा रखो आदि सुन्दर कथनों से एलबम को सजा दिया।
बहुरंगी चित्रों अनेक सुन्दर प्रेरक वाक्यों से सजी-संवरी एलबम को जब मिलन ने नानी को उपहार में दिया; तो वह खुशी से झूंम उठीं। ढेरों आशीर्वाद उन्होंने एक ही सांस मे दे डाले।
छुट्टियां समाप्त होने पर जब मिलन वापस घर जाने को तैयार हुई, तब नानी ने उसको नयी कक्षा की किताबें व कपड़े देते हुए कहा- ‘‘बेटी, यह लो अपना पुरस्कार घर जाकर खूब परिश्रम से पढ़ाई करना। अगले बर्ष अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होकर छुट्टियां बिताने मेरे पास अवश्य आना। मैं इन्तजार करूंगी, टा....टा......।
3 टिप्पणियाँ
अच्छी बालकथा...बधाई
जवाब देंहटाएंबढ़िया है
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल कथा।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.