रहता नहीं है दिल भी तो अपना कभी कभी
अक्सर हुआ है जा के किसी का कभी कभी
सहरा में सिर्फ़ कांटों भरी झाड़ियाँ नहीं
लाला भी उनमें खिलता मिलेगा कभी कभी
कांटों से ज़ख़्म मिलता है, मरहम गुलाब से
यूँ भी गुलाब बनता मसीहा कभी कभी.
वो ख़्वाब था, वो ख़्वाब है, वो ख़्वाब ही रहा
टूटा हक़ीक़तों से भी नाता कभी कभी
वो ज़िन्दगी मेरी जो चली आँखें फेर कर
इस बेरुखी से दिल मेरा टूटा कभी कभी
छिड़ती है एक जँग- सी देवी ख़्याल में
उससे भी जूझना हमें पड़ता कभी कभी
अक्सर हुआ है जा के किसी का कभी कभी
सहरा में सिर्फ़ कांटों भरी झाड़ियाँ नहीं
लाला भी उनमें खिलता मिलेगा कभी कभी
कांटों से ज़ख़्म मिलता है, मरहम गुलाब से
यूँ भी गुलाब बनता मसीहा कभी कभी.
वो ख़्वाब था, वो ख़्वाब है, वो ख़्वाब ही रहा
टूटा हक़ीक़तों से भी नाता कभी कभी
वो ज़िन्दगी मेरी जो चली आँखें फेर कर
इस बेरुखी से दिल मेरा टूटा कभी कभी
छिड़ती है एक जँग- सी देवी ख़्याल में
उससे भी जूझना हमें पड़ता कभी कभी
3 टिप्पणियाँ
अच्छी गज़ल...बधाई
जवाब देंहटाएंCHHIDTEE HAI EK JANG SEE `DEVI` KHYAAL MEIN
जवाब देंहटाएंUS SE BHEE JOOJHNAA HAMEN PADTAA KABHEE KABHEE
DEVI NAGRANI KEE GAZAL KE KYAA KAHNE
HAI ! MALA MEIN MOTI PIROYE HUEE SEE LAGEE HAI.
वो ख़्वाब था, वो ख़्वाब है, वो ख़्वाब ही रहा
जवाब देंहटाएंटूटा हक़ीक़तों से भी नाता कभी कभी
वो ज़िन्दगी मेरी जो चली आँखें फेर कर
इस बेरुखी से दिल मेरा टूटा कभी कभी
बहुत सुंदर...
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.