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होती व्यर्थ कपॊल कल्पना [बाल गीत] - प्रभुदयाल श्रीवास्तव

एक दिन चाचा गधेराम ने
देखा सुंदर सपना
लेकर नभ में घूम रहे थे
उड़न खटोला अपना|

खच्चर दादा बैठ बगल में
गप्पें हांक रहे थे
रगड़ रगड़ तंबाकू चूना
गुटका फांक रहे थे|

चंद्र लोक की तरफ यान
सरसर बढ़ता जाता था
अगल बगल में तारों का
झुरमुट मिलता जाता था|

हाय हेलो करते थे दोनों
तारे हाथ मिलाते
चंदा मामा स्वागत करते
हंसते और मुस्काते|

जैसे उड़न खटोला उतरा
चंदा की धरती पर‌
कूद पड़े दोनों धरती पर
खुशियों से चिल्लाकर|

पर जैसे ही कदम बढ़ाये
दोनों ने कुछ आगे
देख सामने खड़े शेर को
डरकर दोनों भागे|

नींद खुल गई गधेराम की
पड़ा पीठ पर डंडा
खड़ा हुआ था लेकर डंडा
घर मालिक मुस्तंडा|

कल्पित और कपॊल कल्पना
होती है दुखदाई
सच्चे जीवन कड़े परिश्रम
में ही है अच्छाई

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5 टिप्पणियाँ

  1. कल्पित और कपॊल कल्पना
    होती है दुखदाई
    सच्चे जीवन कड़े परिश्रम
    में ही है अच्छाई
    kavita ke madhyam se achchhi baat kahi aapne
    sunder kavita
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  2. नींद खुल गई गधेराम की
    पड़ा पीठ पर डंडा
    खड़ा हुआ था लेकर डंडा
    घर मालिक मुस्तंडा| Sachchai yahi hai hawa me udane waalo ke liye Poonam Bhalavi

    जवाब देंहटाएं

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