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बडा मजा आता [फुलवारी] - श्रीप्रसाद {बाल शिल्पी अंक 13} प्रस्तुति - डॉ. मो. अरशद खान


प्यारे बच्चों,
"बाल-शिल्पी" पर आज आपके डॉ. मो. अरशद खान अंकल आपको "फुलवारी" के अंतर्गत श्रीप्रसाद अंकल की कविता "बडा मजा आता" पढवा रहे हैं। तो आनंद उठाईये इस अंक का और अपनी टिप्पणी से हमें बतायें कि यह अंक आपको कैसा लगा।

- साहित्य शिल्पी
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बड़ा मजा आता

रसगुल्लों की खेती होती,
बड़ा मजा आता।
चीनी सारी रेती होती,
बड़ा मजा आता।


बाग लगे चमचम के होते,
बड़ा मजा आता।
शरबत के सब बहते सोते,
बड़ा मजा आता।


चरागाह हलवे का होता,
बड़ा मजा आता।
हर पर्वत बरफी का होता।
बड़ा मजा आता।


लड्डू की सब खानें होतीं,
बड़ा मजा आता।
दुनिया घर में पेड़े बोती,
बड़ा मजा आता।


मिलती रुपए किलो मिठाई,
बड़ा मजा आता।
रुपए होते पास अढ़ाई,
बड़ा मजा आता।

डा0 श्रीप्रसाद, वाराणसी (उ0प्र0)

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3 टिप्पणियाँ

  1. रसगुल्लों की खेती होती,
    बड़ा मजा आता।
    चीनी सारी रेती होती,
    बड़ा मजा आता।
    ----

    तब तो....फिर से हम बच्चे हो जाते, बडा मजा आता।

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut sunder kavita hai sushma ji bahut sahi kaha aapne tab to hum bhi sabhi bachche ho jate.....
    badhai
    sadar,
    amita

    जवाब देंहटाएं

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