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कंधे पर नदी [बाल गीत] - प्रभुदयाल श्रीवास्तव

यदि हमारे बस में होता
नदी उठाकर घर ले आते
अपने घर के ठीक सामने
उसको हम हर रोज बहाते|
कूद कूद कर उछल उछल कर
हम मित्रों के साथ नहाते
कभी तैरते कभी डूबते
इतराते गाते मस्ताते|

"नदी आई है आओ नहाने"
आमंत्रित सबको करवाते
सभी निमंत्रित भद्र जनों का
नदिया से परिचय करवाते|

यदि हमारे मन में आता
झटपट नदी पार कर जाते
खड़े खड़े उस पार नदी के
मम्मी मम्मी हम चिल्लाते|
शाम ढले फिर नदी उठाकर
अपने कंधे पर लदवाते
लाये जँहां से थे हम उसको
जाकर उसे वहीं रखआते|

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4 टिप्पणियाँ

  1. .कितने भोले कितने अच्छे होते कितने प्यारे बच्चे . . दिनभर शोर मचाते रहते सबको खूब सताते रहते . हाथ हमारे कभी न आते झलक दिखा के फिर छिप जाते . ..रोते रोते हस्ते बच्चे .सबके दिल में बसते बच्चे . मौला करदे तू कुछ अछ्छा .मुझे बनादे फिर से बच्चा

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  2. वाह... वाह... बहुत खूब. सरल, सरस बाल गीत मन को भाया.

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी प्रतिक्रिया देने वालों को धन्यवाद‌

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