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सच्ची माणो दादा सबके चाइए [आंचलिक कविता] - राजेश एस भंडारी "बाबु"

आफिस में घुस्नो हे, पियून के चाइए
चपरासी के बाबु से मिलाने सारु चाइए
बाबु के फाइल बढाने सारु चाइए
साब के अगुठो लगाने सारु चाइए
मंत्री के ठेका दिलाने सारु चाइए
बीबी के तो मुस्कुराने सारु चाइए
बेटा हे तो भनाने सारु चाइए
नोकरी नि हे तो पाणे सारु चाइए
नोकरी हे तो ट्रान्सफर सारु चाइए
साब हो तो मंत्री के देने सारु चाइए
मंत्री हे तो पार्टी कोष सारु चाइए
पि एम् के सरकार बणावा सारु चाइए
खेल कराना होई तो कलमाड़ी के चाइए
फ़ोन का ठेका में राजा जी के चाइए
रोड बनाओ तो नगर निगम के चाइए
रेल को टिकिट नि हे तो टी टी के चाइए
बियाव कारणों होई तो घोडा के चाइए
आदर्श में फ्लैट तो फोजी के चाइए
विधायक के डम्पर चलाने सारु चाइए
अपराध नि करो तो भी पुलिस के चाइए
चपरासी से लगाई के मंत्री सबके चाइए
मंत्री बापड़ा के स्विस बैंक सारु चाइए
मरो तो पंजीयन कराणे सारु चाइए
साची माणो दादा सबके घुस चाइए

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राजेश एस भंडारी "बाबु"
१०४ महावीर नगर इंदौर

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