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वसंत ऋतु [कविता] - डॉ अमिता कौंडल

महके हर कली कली
भंवरा मंडराए रे
देखो सजनवा
वसंत ऋतु आये रे
नैनो में सपने सजे
मन मुस्काए
झरने की कल कल
गीत कोई गाये
खेतों में सरसों पीली
धरती को सजाये रे
देखो सजनवा
वसंत ऋतु आये रे..........

ठण्ड की मार से
सूखी हुई धरा को
प्रकृति माँ हरियाला
आँचल उड़ाए
खिली है डाली डाली
खिली हर कोंपल
प्रेम का राग कोई
वसुंधरा सुनाये रे
देखो सजनवा
वसंत ऋतु आये रे.......

मन में उमंगें जगी
होली के रंगों संग
प्यार के रंग में
जिया रँगा जाए
उपवन में बैठी पिया
तुझे ही निहारूं मैं
वसंती पवन मेरा
ह्रदय जलाये रे
देखो सजनवा
वसंत ऋतु आये रे................

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