बड़े साब के घर रोज ही झक-झक होती, मेम साब बड़बड़ातीं और लड़तीं। पर साब बेचारे कुछ न बोलते। टालने की कोशिश करते या चुप रह जाते।हालांकि आफिस में उनका बड़ा रौब था।
एक दिन की बात है। कामवाली जब आई, उसके चेहरे पर निशान थे और हाथ में भी चोट थी।
मेम साब ने पूछा- तो रो पड़ी, यह सब उसके पति ने किया था।
मेम साब ने लम्बा-चौड़ा भाषण दिया। सुनते-सुनते वह तंग हो गई, उसके मुख से बस एक ही वाक्य निकला-आप साब लोग हैं। हम ठहरे गरीब, निपट गंवार आप जैसे कहां?
मेम साब चुप, कुछ बोलने को न रह गया था।
4 टिप्पणियाँ
achchhi rachna
जवाब देंहटाएंsateek.
जवाब देंहटाएंसच्चाई को प्रस्तुत करती लघुकथा...बधाई
जवाब देंहटाएंacchi baat kahi...
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.