शेर और हाथी ने खेली
जंगल में एक दिन फुटबाल
सभी जानवर थे एकत्रित
भरा खचाखच जंगल हाल|
टीम में हाथी के थे शामिल
स्यार ऊँट भालू बंदर
चतुर लोमड़ी मटक मटक कर
दिखा रही थी अपनी चाल|
उधर शेर की टीम थी भारी
चीता बाघ लकड़ बग्गा
दंड पेलकर हिरन गिलहरी
ठोक रहे लड़ने को ताल|
चीटी बनी रेफरी उनकी
सीटी कसकर बजा रही
खेल शुरु करने की खातिर
लगी हिलाने लाल रुमाल|
शुरु शुरु में ही हाथी ने
बड़े जोर से किक मारी
लगी गिलहरी के माथे पर
गिरी भूमि पर हुई निढाल|
देख गिरा उसको धरती पर
वहाँ मची अफरा तफरी
विसिल बजाकर चीटीजी ने
वहीं खेल रोका तत्काल|
बड़े डाक्टर गधेराम ने
किया निरीक्षण तुरत फुरत
बोला इसका हुआ फ्रेक्चर
निकल गई टाँगों की खाल|
हाथी बहुत फाउल खेला था
क्यों गिलहरी को मारा
करना होगी मुझे ठीक से
इसकी अभी जांच पड़ताल|
हाथी जी को क्रोध आ गया
पकड़ा तुरत गिलहरी को
रखा पेट पर पैर जोर से
भेज दिया उसको पाताल|
यदि खेलना है तो खेलो
खेल बराबर वालों से
भाई अन्यथा हो सकता है
गिलहरी के जैसा हाल
4 टिप्पणियाँ
प्रभुदयाल जी आपकी बाल कवितायें रोचक होती हैं। इस शिक्षाप्रद कविता के लिये बधाई। मैं अपने स्कूल में इसे किसी नन्ही छात्रा को कंठस्थ कराउंगी।
जवाब देंहटाएंअच्छा बालगीत.....बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बच्चों को मेरी अन्य बाल कविताएं भी कंठस्थ करायें कक्षा में गायें तो मुझे अच्छा लगेगा
जवाब देंहटाएंप्रभुदयाल श्रीवास्तव
सादर सुषमा गर्गजी को
जवाब देंहटाएंखिल खिल ठिल हा हा ही ही
अदभुत बच्चों का संसार
उनको देख नहीं लगता क्या?
बच्चे ईश्वर का अवतार|
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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