एक थी चिड़ियाँ भोली भाली
घूम रही थी डाली डाली इतने मे आया एक कबूतर
मायूस सा बेजान सा
चिड़ियाँ उससे लगी भली
लेचाला वोह अपनी गली
कबूतर को वोह आई न रास
रहने लगा वोह उससे बेजार कभी आता कभी न आता
दाना खाना डालके जाता
चिड़ियाँ रहने लगी उदास
कौन बजाये उसकी प्यास
हरदम वोह अनसु से रोती
अपना दुःख वोह चुजू से खेती
फिर भी उसको यह हँ आशा
पूरी होगी उसकी अभिलाषा
एक दिन कबूतर आयेगा
प्यार से गले लगाएगा
अच्छी कविता...बधाई
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